
समय रहते सचेत नहीं हुए, तब संभावना है कि आगे विश्व में युद्ध पानी के लिए लड़ा जाए….
पर्यावरण चिंतक – बीरेंद्र श्रीवास्तव की कलम से
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पनी गए न ऊबरे, मोती मानस चून
मनेंद्रगढ़ एमसीबी :- रहीम जी ने पानी के महत्व को बताते हुए सुंदर पंक्तियां में कहा है कि पानी को संरक्षित कर बचा कर रखिए, क्योंकि पानी के बिना मनुष्य के जीवन की आभा, मोती की चमक और चूने का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. कम शब्दों में पानी की बहुअर्थी सार्थकता का उदाहरण रहीम ने बहुत सुंदरता के साथ व्यक्त किया है. कवि की पंक्तियां सरल भाषा में हमें पानी के महत्व और संरक्षण के प्रति सचेत करने के लिए पर्याप्त है.आइये इसी पानी के महत्व पर हम चिंतन करें-
हमारी पृथ्वी की आयु चार अरब 54 करोड़ वर्ष वैज्ञानिकों ने मानी है जिसमें जीवन कई बार प्रारंभ हुआ और समाप्त हुआ है, ऐसा कहा जाता है. आध्यात्मिक पक्ष भी अपने धर्म ग्रंथो में इसे समर्थन देते हैं. आप अच्छी तरह जानते हैं कि पृथ्वी का अस्तित्व तभी तक बचा हुआ है जब तक पृथ्वी पर जल है.ईश्वरीय आस्था या प्रकृति की देन पर यदि हम चिंतन करें तब हमें यह पता चलता है कि समृद्ध वन, जीव जंतु और मानव को पृथ्वी पर भेजने से पहले प्रकृति ने हमारे एवं जीव जंतुओं के जीवन को बचाए रखने और उनके वंशजों की सुख समृद्धि के लिए संसाधनों का प्रबंध कर रखा है. सूर्य के चारों ओर घूमते अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी अपने चंद्रमा के साथ दिन-रात आवश्यक उर्जा के लिए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है लेकिन पृथ्वी ने अपनी चिंता में वनों एवं जीवन को संरक्षित करने के लिए तापमान नियंत्रण और सूर्य के दुष्प्रभाव को रोकने हेतु पृथ्वी की सतह से 15 से 30 किलोमीटर ऊंचाई पर ओजोन परत का कवच बना रखा है. पेड़ पौधों को कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया तथा पृथ्वी के बाहर एवं भूगर्भ में पानी की पर्याप्त मात्रा का संचय कर जीवन को बचाए रखने की पूरी व्यवस्था पहले ही बना रखी है. प्रकृति का सीधा संदेश है कि धरती पर तुम्हारे एवं तुम्हारे वंशजों के लिए पर्याप्त संसाधन मैंने उपलब्ध करा दिया है, लेकिन इसे संरक्षित कर भविष्य के लिए बचाए रखना तुम्हारा कर्तव्य है. प्रकृति स्वयं उसके क्षरण को आंशिक रूप सै बचाने की व्यवस्था भी बनाए रखती है. कुछ स्थानों पर जैव विविधता के माध्यम से कम संसाधनों में जीवन जीने का मंत्र भी देती है.और विपरीत परिस्थितियों में जीवन जीने का अवसर प्रदान करती है लेकिन इस पृथ्वी और जीवन के संरक्षण का संदेश हमें हमेशा ध्यान रखना होगा. ऐसा ना हो कि प्राकृतिक संसाधन उपयोग की सीमाओं के उल्लंघन में पृथ्वी अपने ही आंगन में जन्मे अपने बच्चो का जीवन बचाने में असमर्थ हो जाए.
सामाजिक साहित्य मनीषी कवि रहीम जी ने चार पंक्तियों में जीवन के लिए आवश्यक तत्व पानी के संरक्षण के लिए बहुत ही सरल भाषा में विविध अर्थों के साथ अपने विचार रखने का प्रयास किया है-
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे,मोती मानुष चून
पानी के महत्व को बताती हुई सुंदर पंक्तियां में कहा गया है कि पानी को संरक्षित कर बचा कर रखिए. अलग अलग अर्थ में उन्होंने कहा है कि पानी के बिना मनुष्य के जीवन की आभा, मोती की चमक और चूने का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. कम शब्दों में पानी की सार्थकता का उदाहरण रहीम ने बहुत सुंदरता के साथ व्यक्त किया है. कवि की पंक्तियां सरल भाषा में हमें पानी के महत्व और संरक्षण के प्रति सचेत करने के लिए पर्याप्त है.
अपनी पृथ्वी के संबंध में आपकी जानकारी को साझा करते हुए इतना कहना चाहूंगा कि आप सभी जानते हैं की पूरी पृथ्वी पर उपलब्ध पानी का 97% पानी समुद्र और महासागर में खारा पानी है जिसका उपयोग हमारे लिए नहीं है. मात्र तीन प्रतिशत मीठा पानी मानव जीवन वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं के लिए उपलब्ध है जिसका लगभग दो प्रतिशत पानी ग्लेशियर एवं बर्फ की चट्टानों में ध्रुवीय क्षेत्र में संग्रहित है एक प्रतिशत से भी कम लगभग दशमलव 62 प्रतिशत जल भूजल स्रोत में उपलब्ध है और शेष पानी हमें झीलों नदियों तालाबों से प्राप्त होता है इतने कम मीठे पानी की उपलब्धता के बावजूद हम अपने आसपास के जल स्रोत झील एवं नदियों को लगातार समाप्त कर रहे हैं या कचरो से इतना गंदा कर रहे हैं कि उसका पानी उपयोगी नहीं रह जाता और कचरे को पाटकर जल श्रोत समाप्त कर दिया जा रहा है. नदी तालाब की भूमि एवं कगारों पर पेड़ों को लगाने की बजाय उसकी तटीय जमीन पर कब्जा कर आवासीय एवं व्यवसायिक उपयोग की सोच नदियों के अस्तित्व को समाप्त करने की नई सोच को जन्म दे रही है. हम अपने भौतिक सुविधाओं के लिए अपने ही जीवन दायिनी मातातुल्य नदी तालाबों को और पृथ्वी को समाप्त कर देने पर आमादा हो रहे हैं.
शोध छात्रों एवं वैज्ञानिकों की चेतावनी की ओर नजर डालें तब यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि बढ़ती आबादी के कारण उनके भोजन और ऊर्जा आपूर्ति के लिए पानी पर लगातार दबाव पड़ रहा है विश्व की बढ़ती आबादी के बीच अनुमान है कि 2030 तक पानी की जरूरत हमारे जलापूर्ति से 40% अधिक होगी. इसकी भरपाई हम आखिर कैसे कर पाएंगे. ताजा पानी की बढ़ती मांग का दबाव ऊपरी जल स्रोत के साथ-साथ भूमिगत जल स्रोत पर भी बढ़ रहा है जबकि भूमिगत जल स्रोत कुल तीन प्रतिशत मीठे पानी का मात्र दशमलव 64% ही है इसी तरह प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 1970 के बाद लगभग एक तिहाई नदी तालाब झील पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन के कारण नष्ट हो चुके हैं. इसका प्रभाव जीव जंतुओं पर दिखाई पड़ने लगा है. हमारे जीवन के नष्ट होने की चिंता इस पर भी होनी चाहिए कि वर्तमान शोध आंकड़ों के अनुसार मीठे पानी पर निर्भर 84% जीव जंतुओं की आबादी में या तो गिरावट आई है या वह समाप्त हो चुके हैं. विश्व के कई देशों की चिंता के साथ हमारी चिंता मे यह शामिल होना चाहिए ताकि इसके लिए आवश्यक धन राशि एवं सामाजिक संसाधन जुटाए जा सकें.
आज इस चिंतन में जब हम यह अच्छी तरह जानतै हैं कि केवल तीन प्रतिशत मीठे जल स्रोत पर टिकी पृथ्वी का संपूर्ण वन एवं जीवन टिका है, तब हमे यह भी सोचना होगा कि यदि पानी नहीं होगा तब जीवन बचेगा या समाप्त हो जाएगा क्योंकि इसी मीठे पानी से फल,सब्जियां, अन्न सहित जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ मिलता है. पूरी दुनिया अपने उद्योग धंधे खेती एवं पीने के पानी के लिए इसी पानी का उपयोग करती है. ऐसी स्थिति में मीठे जल के स्रोत एवं संचय केंद्र रोज बढ़ती भौतिक सुविधाओं के कारण सीमा से अधिक उपयोग और प्रदूषण के कारण समाप्त हो जाएंगे, तब यह संभावित है कि अपना जीवन बचाने के लिए विश्व के कई देश पानी के लिए युद्ध करेंगे.
समय के परिवर्तन के साथ हमारी कोशिश होनी चाहिए कि परिस्थितियों के बिगड़ने से पहले हम सचेत हो जाए और अपने नदी, तालाब, झील जैसे जल स्रोतों को समाप्त करने, कब्जा करने या प्रदूषित करने से पहले एक बार जरूर विचार करें. हमारा चिंतन हमारे परिवार,हमारे देश एवं हमारे वंशजों को सुरक्षित रखेगा…..
बस इतना ही –फिर मिलेंगे, चिंतन के अगले पड़ाव में
पर्यावरण चिंतन क्रमांक -16