मनेंद्रगढ़ के चित्रगुप्त मंदिर में कायस्थ समाज ने की कलम-दवात की पूजा, मेधावी छात्रों को मिला सम्मान
मनेंद्रगढ़। सुबह की हल्की ठंडक में जब चित्रगुप्त मंदिर के प्रांगण में घंटियों की गूंज सुनाई देने लगी, तब तक कायस्थ समाज के लोग एक-एक करके मंदिर में जुटने लगे थे। महिलाएं पारंपरिक साड़ी में, पुरुष धोती-कुर्ता या सफेद परिधान में, बच्चे उत्साह से भरे हुए—हर किसी के चेहरे पर आज की पूजा का उल्लास साफ झलक रहा था। मौका था एम द्वितीय, यानी भगवान चित्रगुप्त की पूजा का, जिसे कायस्थ समाज “कलम-दवात पूजा” के रूप में मनाता है।
मंदिर में भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति के समक्ष जब कलम, दवात, बही-खाता और पुस्तकें सजीं, तो पूरा वातावरण मानो ज्ञान और श्रद्धा से भर उठा। वैदिक मंत्रों की ध्वनि के बीच पूजा शुरू हुई। महिलाएं थाल में दीप सजाकर आरती उतार रहीं थीं, बच्चे हाथ जोड़कर प्रणाम कर रहे थे। वहीं बुजुर्ग अपने अनुभवों की बातें करते हुए अगली पीढ़ी को समाज की परंपराओं से जोड़ने की बात कर रहे थे।
भगवान चित्रगुप्त को लेखा-जोखा का देवता माना जाता है। कहा जाता है कि वे हर इंसान के कर्मों का हिसाब रखते हैं। इसलिए कायस्थ समाज में कलम-दवात की पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि शिक्षा, ज्ञान और न्याय के प्रति सम्मान का प्रतीक है। समाज मानता है कि कलम के बिना न तो ज्ञान संभव है, न ही न्याय।
कार्यक्रम में समाज के वरिष्ठ सदस्य सत्येंद्र सिन्हा ने कहा, “कायस्थ समाज का मूल आधार शिक्षा है। हमें अपने बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए। भगवान चित्रगुप्त हमें यह सिखाते हैं कि सत्य और लेखन का पालन ही जीवन का सबसे बड़ा धर्म है।” उनकी बातों पर उपस्थित लोगों ने सहमति में सिर हिलाया।
इसी दौरान मंच पर एक के बाद एक नाम पुकारे जाने लगे—ये वे छात्र-छात्राएं थे जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में 85 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए थे। जैसे ही हर बच्चे को सम्मान चिह्न और प्रमाणपत्र मिला, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। अभिभावकों की आंखों में गर्व की चमक थी।
कार्यक्रम में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष लखनलाल श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। उन्होंने कहा, “भगवान चित्रगुप्त की पूजा सिर्फ आस्था का नहीं, बल्कि हमारे समाज की वैचारिक शक्ति का प्रतीक है। कलम-दवात की पूजा का मतलब है कि हम ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। हमें गर्व है कि कायस्थ समाज हर क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।”
वहीं कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव ने कहा, “चित्रगुप्त पूजा समाज को जोड़ने का उत्सव है। यह पूजा हमें सिखाती है कि जीवन के हर कर्म का लेखा रखना चाहिए—चाहे वह समाज के लिए हो या खुद के लिए। ईमानदारी और जिम्मेदारी यही भगवान चित्रगुप्त का संदेश है।” उन्होंने आगे कहा कि आज की युवा पीढ़ी को शिक्षा और सेवा दोनों में आगे आना चाहिए।
मंच पर बैठे अरविंद श्रीवास्तव, वीरेंद्र श्रीवास्तव, सुरेश श्रीवास्तव और अन्य गणमान्यजन लगातार समाज के बच्चों की उपलब्धियों की प्रशंसा कर रहे थे। कार्यक्रम के बाद जब भंडारे की व्यवस्था हुई, तो श्रद्धालु पंक्तिबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण करने लगे। बच्चों की हंसी, महिलाओं की बातचीत और मंदिर में गूंजते “जय चित्रगुप्त भगवान” के जयकारों ने पूरे वातावरण को भक्ति में डुबो दिया।
पूजा के अंत में समाज के लोगों ने एक स्वर में संकल्प लिया—“हम अपने समाज की पहचान, शिक्षा और संस्कार को बनाए रखेंगे।” यह वाक्य सुनते ही ऐसा लगा मानो पीढ़ियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी।
कलम-दवात की पूजा का संदेश
कायस्थ समाज के अनुसार कलम-दवात पूजा का अर्थ है ज्ञान, न्याय और ईमानदारी की साधना। भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा गया है, जिन्हें सृष्टि के हर प्राणी के कर्मों का लेखा-जोखा रखने का दायित्व सौंपा गया था। कलम और दवात उनके ज्ञान और न्याय के प्रतीक हैं। इसलिए कायस्थ समाज इस दिन कलम-दवात की पूजा कर ज्ञान की आराधना करता है।
मनेंद्रगढ़ का यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व का रहा, बल्कि समाज के बौद्धिक और सांस्कृतिक मूल्यों का जीवंत प्रतीक भी बना। दिन ढलते-ढलते जब मंदिर की घंटियां धीरे-धीरे शांत होने लगीं, तब भी श्रद्धालुओं के चेहरे पर संतोष और गर्व झलक रहा था—जैसे उन्होंने केवल भगवान की पूजा नहीं की, बल्कि अपनी परंपरा, संस्कृति और शिक्षा के सम्मान का पर्व भी मना लिया हो।
राजेश सिन्हा 8319654988
