पर्यावरण एवं पर्यटन अंक – 39
स्वेत जलधारा के मधुर संगीत का उद्घोष है “गौरघाट जलप्रपात”
बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से
विशेष आलेख – जब धरती पर कोई जलधारा प्राकृतिक बहाव के अनुरूप अपने ढलान की ओर बहती है तब हम उसे नदी या नाला का नाम देते हैं। कोई भी उद्गम उस गांव में बोली जाने वाली भाषा के अनुरूप नाला या नदी का नाम प्राप्त करती है। नदी के पानी की विशेषता होती है कि जब वह अपने बहाव में अपने सहयोगी नदियों और नालों से जुड़कर अपनी धारा और प्रवाह की गति बढ़ा लेती है तब उसे पत्थर पहाड़ और जंगलों की गहराई भी रोक नहीं पाती। कहीं-कहीं यह अपने सामने आने वाले अवरोध को तोड़ती हुई आगे बढ़ जाती है या अपने बहाव का रास्ता बदल देती है, लेकिन प्रबल वेग से बहने वाली इसी धारा का सामना जब अचानक सैकड़ो फीट गहराई से होता है तब वह पूरे वेग से अपनी संपूर्ण जलधारा के साथ निर्भय होकर नीचे छलांग लगा देती है। इसी ऊंचाई से नीचे तक की जलधारा की छलांग का प्राकृतिक मनमोहन रूप जलप्रपात या झरना कहलाता है। जलप्रपात में बहने वाले पानी का वेग इतना ज्यादा होता है कि सैकड़ो फुट नीचे गिरने पर भी उसकी धार टूटती नहीं है बल्कि 100 फीट ऊंची पानी की एक धार बनाकर लगातार नीचे गिरती रहती है। यह दृश्य आपको कहीं-कहीं दिखाई पड़ता है। लंबी जलधारा का यह आकर्षण हमें अपनी ओर बरबस खींचता है जिसके वशीभूत होकर हम जलप्रपात के पास जाकर उसका मधुर संगीत सुनते हेतु लालायित रहते हैं। बार-बार जाने के बाद भी एक प्यास हमारे मन में बची रह जाती है जो उस जलप्रपात का आकर्षण होता है।
आजकल व्यस्त जीवन के बीच यदि शांति की चाह हो तब आपको प्रकृति आपकी चिंता समाप्त करने और आपको खुशियां लौटाने तथा नई ऊर्जा भरने के लिए अपने पास बुलाती है। इसलिए प्रकृति की गोद मां की गोद कहलाती है जिस गोद में आंखें मूंदकर कुछ क्षण यदि आप बैठ जाएंगे तब वह मधुर स्वर सुनाई देगा जिसे हम प्रकृति का संगीत कहते हैं। आजकल शहरी क्षेत्र से बाहर बहने वाले छोटे-छोटे नालों को भी बांधकर एक ऊंचाई से गिराने का कृत्रिम प्रयास किया जा रहा है जो एक छोटे जलप्रपात का रूप ग्रहण कर लेता है और धीरे-धीरे आगे बहते पानी की उथली धार में हम परिवार सहित अपने बच्चों को छप-छप करते देखकर आनंद लेने की कोशिश करते हैं। मुंबई और पूना के शहरी जीवन से उबे हुए लोग खंडाला के आसपास इसी तरह की झाड़ियां और जंगलों के बीच छोटे-छोटे बनाए हुए जलप्रपात में आनंद ढूंढने की कोशिश करते हैं। लेकिन प्राकृतिक जलप्रपात जो प्रकृति द्वारा स्वयं निर्मित होते हैं उसका आकर्षण और जल धाराओं के प्रवाह का स्वर जब ध्वनि में रूपांतरित होकर हवाओं के बीच से गुजरता है तब इसके संगीत को सुनकर आप भाव विभोर हो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो मां की गोद में लेटने का बहुत दिनों बाद मौका मिला है और मां आपको थपकियां देकर सुलाने का प्रयास कर रही है। ऐसे ही स्वर लहरियों से भरपूर हसदो नदी की जलधारा का एक सुंदर रूप है “गौरघाट जलप्रपात”-
कोरिया जिले में स्थित इस जलप्रपात की कहानी हसदो के उद्गम से शुरू होती है। सड़क मार्ग से जब हम यहां से हसदो उद्गम पहुंचने के लिए सोनहत की पहाड़ियों की ओर लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं तब हमें सोनहत की पहाड़ी की तराई में बसे ग्राम मेन्ड्रा के खेत के मेंढ़ में (लकड़ियों से बांधकर बनाई गई) ढोढ़ी में भरे पानी से पतली धार के रूप में निकलती एक जलधारा दिखाई देती है। गांव वाले इसे हसदो का उद्गम कहते हैं। जी हां यह वही नदी है जो आगे चलकर कोरबा के पास बांगो नदी से मिलकर बांगो बांध बनाती है और देश को ऊर्जा देने वाली नदियों का सम्मान पाती है। पहले यहां एक महुआ का पेड़ था जो लगातार पानी बहने एवं दलदली जमीन के कारण अब गिर चुका है। हसदो उद्गम के आसपास कई छोटी-छोटी जलधाराएं निकलकर हसदो के मुख्य धारा को समृद्ध करती हुई हमें दिखाई पड़ती हैं। कैमूर की पहाड़ियों की बिखरी पहाड़ियों में शामिल सोनहत की पहाड़ी से दो नदियां गोपद और हसदो अलग-अलग दिशा की ओर निकलकर आगे बढ़ती है। एक ही पहाड़ी से निकलने वाली गोपद और हसदो की कहानी भी काफी दिलचस्प है। उत्तर दिशा से निकलकर गोपद आगे बढ़ते हुए सोन और गंगा में मिल जाती है और इसी पहाड़ी के दक्षिण दिशा से निकलकर हसदो आगे बढ़ती हुई महानदी बेसिन का हिस्सा बन जाती है। प्रकृति का यह करिश्मा हमें सोनहत की पहाड़ियों में दिखाई पड़ता है, जो एक माता की दो संतानों की अलग-अलग दिशा में चलने और फलने फूलने की कहानियों को समृद्ध करता है।
गौरघाट जलप्रपात के नाम के संबंध में अलग-अलग विचार यहां गांव वालों के हैं। यहां आसपास के जंगलों में पाया जाने वाला वन भैंसा को भी गौर कहा जाता है इसी शक्तिशाली गौर का लंबा मुख की तरह बनी चट्टानों से बहती जलधारा इसे गौरघाट का नाम देता है। कुछ लोगों का विचार है कि गौर नाम के हिरणों का इस क्षेत्र में पहले पाया जाना और हसदो के घाट पर पानी पीना मिलकर गौरघाट का नाम प्राप्त करता है। इस जलप्रपात का स्वच्छ जल जब लंबी धारा के साथ नीचे गिरता है तब स्वच्छ उजले पानी की धारा का चट्टानों से टकराकर छोटी-छोटी बूंदो में परिवर्तित होकर हवा में बिखर जाना और सूर्य की किरणें को परिवर्तित करने का दृश्य भी इसे गौरवर्णी अर्थात श्वेत वर्ण के कारण गौरघाट जलप्रपात का नाम देती है।
प्राकृतिक वातावरण में पेड़ पौधों की हरी भरी वादियां और मौसमी थपेड़ों से दरकती हुई चट्टान के छोटे से जगह के बीच स्थान बनाकर जब कोई जंगली बीज अंकुरित होकर बाहर सिर निकालता है और बाहर की दुनिया देखने की कोशिश करता है तब उसके जीवन के संघर्ष और जिजीविषा की शक्ति ही उसे पेड़ बनने तक की हिम्मत देती है। ऐसे कई पेड़ पौधे यहां देखने को मिलते हैं जिनकी पकड़ एक चट्टान से बंधी होती है। लगता है तेज हवा का एक झोंका अभी इसे गिरा देगा लेकिन बारिश की हवा और पानी से लड़कर खड़े होने वाले वृक्ष को गिरा पाना इतना आसान नहीं होता। संघर्ष करना और स्वयं को ऊंचाइयों की ओर ले जाने का ज्ञान यहां प्रकृति ने जगह-जगह बिखेर रखा है। जरूरत केवल इतनी है कि आपकी दृष्टि क्या देखना और सीखना चाहती है। नदी का बहाव भी छोटे-छोटे नालों से कूड़े करकट से भरे गंदे पानी को भी समेट कर अपने गले लगाती है और चलते-चलते उसे रेत के बारीक कणों के साथ खूब साफ करती हुई धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। यही नालों का गंदा जल जलप्रपात तक आते-आते स्वच्छ धवल जलधारा बनकर इतनी सुंदर हो जाती है कि इसके समीप आने वाला कोई भी पर्यटक “बहुत ही सुंदर” कहने के लिए बाध्य होकर काफी देर तक इसे निहारता रहता है और तृप्त नहीं हो पाता।
वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने जंगलों की गोद में गिरते इस जलप्रपात तक आने वाले प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को इसकी पूरी खूबसूरती से दिखाने के लिए लगभग 40 फीट ऊंचा वॉच- टावर बना रखा है। यहां से आप आसपास का प्राकृतिक नजारा देख पाएंगे। एक-एक मंजिल पर चढ़कर प्राकृतिक खूबसूरती का दृश्य की फोटोग्राफी करना आपको हर क्षण एक नई खुशी में शामिल करता है यही कारण है कि आपको तीसरी मंजिल तक पहुंचने में भी नई खुशी का एहसास होता है। इसी जलप्रपात के किनारे सुरक्षित ऊंचे स्थान पर कुछ गोल कमरे नुमा संरचना बनाई गई है जो बाहर से एक कमरे का जंगल में सुरक्षित मकान दिखाई देता है। अक्सर इस तरह के मकान गांव में आदिवासियों के द्वारा घास फूस की छप्पर डालकर बनाए जाते हैं लेकिन यहां यह मॉडल के रूप में ऊपर में गोल छत में ग्रामीण खपड़े की डिजाइन इसे आकर्षक बनाती है। इसके एक किनारे का हिस्सा बाहर से पाइप के द्वारा एक भूमिगत टंकी से जोड़ दिया गया है जो स्वच्छता व्यवस्था के लिए बनाई गई है। लेकिन जगह-जगह टूटी हुई टंकियां और पाइप इसकी एक अलग कहानी कहती हैं । आसपास के ग्रामीण भी इस संरचना की कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए। बाघ अभ्यारण के जंगलों से जुड़े इस स्थल पर आकस्मिक स्थिति में आप इस एक कमरे में झोपड़ी के मकान में अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं। घाट की ओर जाते हुए एक स्थान पर बने शिव मंदिर के सामने आस्था के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रणाम कर सिर झुकाना हमारी परंपरा में शामिल है। यह एक ग्रामीण परिवार को यहां ठहरने तथा अपने परिवार का भरण पोषण करने का आधार भी बनता है। पर्यटकों की आस्था को देखते हुए एक दुकान में नारियल अगरबत्ती एवं बच्चों के बिस्किट एवं पाप कर्म का मिलना भी एक और परिवार को रोजी-रोटी देता है तथा इसकी उपस्थिति आपको सुनसान जंगल के बीच इस पर्यटन स्थल पर आपके एकाकीपन के दूर करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराता है। स्थानी ग्राम जीवन से जुड़े हुए उनके कारण कभी आकस्मिक विपरीत परिस्थितियों में यह आपका सहयोगी भी बन जाता है। जलप्रपात का आकर्षण आपको लगातार अपने और पास आने का निमंत्रण देता है किंतु सावधान आपकी छोटी सी चूक जीवन मरण का प्रश्न बन सकती है। वन विभाग ने इसे महसूस करते हुए जलप्रपात को देखने एवं फोटोग्राफी के लिए सुरक्षित सीमेंट से बने ठोस लकड़ी नुमा जाली की आकर्षक फेंसिंग बना रखी है जो हमें दूर से जलप्रपात के दर्शन के लिए प्रेरित करती है। जाली के भीतर आप अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं।
जलप्रपात के नीचे उतरने का रास्ता काफी कठिन है फिर भी कुछ लोग काफी दूर से पत्थरों की प्राकृतिक सीढ़ीओ से उतरकर नीचे पहुंचकर नदी में नहाने का आनंद भी लेते हैं। यहां पहुंचकर ठीक चलप्रपात के नीचे जाकर नहाना आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि बहते पानी का दबाव नीचे पत्थर की चट्टानों को काटकर नीचे गुफा नुमा स्थान बना देती है जो रेत से भर जाने के कारण दिखाई तो नहीं देता लेकिन यदि इसमें कोई व्यक्ति फंस जाएगा तब रेत में उसका पैर धंसता चला जाता है। ध्यान रहे आपकी एक गलती आपका जीवन समाप्त कर सकती है। इसलिए जलधारा के नीचे नहाने की मनाही है। इसे गंभीरता से समझना होगा। बारिश एवं ठंड के दिनों में जलप्रपात के नीचे इकट्ठा जल का नीलापन अपनी गहराई का एहसास कराती है जिसके प्रति सावधानी ही हमारे प्राकृतिक आनंद को और बढ़ाने में सहायक होगी।
प्रकृति के खूबसूरत नजारे को देखने वाले प्रकृति प्रेमियों को यहां तक पहुंचने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से मध्य भारत के वनाच्छादित प्रांत छत्तीसगढ़ के कोरिया या मनेन्द्रगढ़ जिला मुख्यालय तक पहुंचना होगा। जहां आपको ठहरने एवं भोजन की अच्छी व्यवस्था मिल सकती है मनेन्द्रगढ़ (एमसीबी) या कोरिया जिले तक पहुंचने के लिए आपको रायपुर बिलासपुर रांची, बनारस, अनुपपुर से सीधी बस सुविधा उपलब्ध है। यदि आप रेल से यात्रा करना चाहते है तब आप छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के मार्ग में अनूपपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर बस या रेल द्वारा दोनों जिला मुख्यालय तक पहुंच सकते हैं। यहां पहुंचकर आप अपनी स्वयं के गाड़ी या टैक्सी से गौरघाट तक की यात्रा कर सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के कटनी – गुमला मार्ग में मनेन्द्रगढ़ से 40 किलोमीटर दूर सर्पिली घाटी के अंतिम ढलान के मुख्य मार्ग पर स्थित नगर रेलवे स्टेशन से 200 मीटर पहले वन अवरोध नाका अकलासराय मार्ग पर पहुंचते हैं। इसी अकलासरई गांव की ओर हमें मुड़ना होगा। उत्तर पूर्व दिशा में यहां से 8 किलोमीटर की दूरी पर पहुंचते ही आप गौरघाट जलप्रपात पहुंच जाते है। जिसके बीच 6 किलोमीटर कच्चा रास्ता आपको भी आफकी यात्रा में शामिल होगा। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की पक्की सड़क से कुछ दूर चलकर आपको एक बोर्ड दिखाई देता है जो गौरघाट की ओर इंगित करता है। लेकिन 06 किलोमीटर का जंगली मार्ग आपको बड़े चके की गाड़ी जीप या एस यू व्ही ले जाने हेतु प्रेरित करता है। कभी-कभी आश्चर्य लगता है कि छत्तीसगढ़ राज्य एवं वन विभाग इतने खूबसूरत पर्यटन स्थल के प्रति इतना उदासीन क्यों है। 06 किलोमीटर के कच्चे मार्ग को आज 15 वर्षों बाद भी पक्की सड़क नहीं बनाई जा सकी है। सड़क का अब तक नहीं बनना कई प्रश्नों को जन्म देता है। क्या इसे पर्यटकों के आवागमन से होने वाले विपरीत प्रभाव से वन विभाग दूर रखना चाहता है यदि ऐसा है तब वॉच टावर और जंगल में आदिवासियों के बनाए गए छोटे झोपड़ी नुमा मकान की संरचना के निर्माण पर इतना खर्च क्यों किया गया। क्या यहां पर पर्यटन विकास करके गांव एवं ग्राम वासियों को रोजगार एवं विकास से नहीं जोड़ना चाहते, जैसे कई प्रश्नों से हम जूझ रहे हैं। हम प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे कि जिला प्रशासन यदि यहां तक पक्के पहुंच मार्ग निर्माण का प्रस्ताव राज्य शासन को इसके पर्यटन विकास एवं ग्रामीण रोजगार की संभावनाओं के पक्ष के साथ भेजेगी तब इसके और विकास के नए रास्ते खुलेंगे और इसकी स्वीकृति जरूर मिलेगी। बैकुंठपुर मुख्यालय से इसकी दूरी मात्र 35 किलोमीटर एवं बैकुंठपुर रोड छरछा रेलवे स्टेशन से मात्र 23 किलोमीटर की दूरी तय करके गौरघाट तक पहुंचा जा सकता है
मनेन्द्रगढ़ से जंगलों के बीच प्राकृतिक विरासत का आनंद लेते हुए यदि आप यहां की जैव विविधता एवं ग्रामीण संस्कृति से परिचित होने के शौकीन हैं तब आपको मनेन्द्रगढ़ से कठौतिया राष्ट्रीय राजमार्ग 43 से 10 किलोमीटर चलकर उत्तर पूर्व दिशा में बाएं मुड़कर जनकपुर मार्ग में आगे बढ़ना होगा। 06 किलोमीटर चलने के बाद जनकपुर मार्ग छोड़कर दाहिनी और उत्तर दिशा में सलबा गांव की ओर चलते हुए आगे बढ़कर हसदो की सहायक नदी घुनैठी नदी का पुल (हर्रिटोला गांव में) पार करते हुए आप 27 किलोमीटर की दूरी पर गरुड़डोल गांव पहुंच जाते हैं। यहां से आगे बाला गांव होते हुए अकलासरई गांव तक पहुंचते हैं जो लगभग 42 किलोमीटर दूर है। यहां से 12 किलोमीटर और आगे बढ़ने पर दाहिने मुड़ने पर आपको गौरघाट का कच्चा रास्ता दाहिनी और दिखाई देता है। यहां से 06 किलोमीटर के चलने के बाद मनेन्द्रगढ़ से 60 किलोमीटर दूरी पर आप गौरघाट पहुंच सकेंगे।
वन्य जीवन की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाती यहां के जंगल जैव विविधता से परिपूर्ण है जिसमें कई प्रजाति के वृक्षों एवं जड़ी बूटियां लुप्तप्राय प्रजाति के वृक्षों का संरक्षण यहां की विशेषता है। छोटी-छोटी जल धाराओं के आसपास विकसित होने वाले खरपतवार के बीच भुई आंवला आपको जगह-जगह दिखाई पड़ता है। हल्के लाल रंग के डंठल तथा आंवले की तरह छोटी-छोटी पत्तियों के नीचे सरसों के दाने जैसे भूईं अआवले आपको कतारबद्ध दिखाई पड़ते हैं। इसी तरह भूमि में काफी गहराई तक अपनी जड़ों को फैलाएं केई जड़ी बूटियां भी इस अंचल की पहचान बनकर उभरी है। इस जलप्रपात के मुख्य गांव अकला सरई के जंगलों में रात के साथ-साथ दिन में उड़ने वाले विशेष प्रजाति के जंगली उल्लू अपनी वंश वृद्धि कर रहा है जो प्राणी विज्ञानियों एवं जैव विविधता के संरक्षण हेतु चिंतित वैज्ञानिकों के लिए आशावादी सकारात्मक परिवेश को इंगित करता है। इस दुर्लभ प्रजाति के उल्लू की विशेषता है कि यह रात की बजाय दिन में भी कीट पतंग का शिकार करता है किसान मित्र की श्रेणी का यह छोटी प्रजाति का उल्लू कीड़ों और खेतों की मेढ़ में रहने वाले चूहों का शिकार करता है। यही इसकी विशेषता है। जीव विज्ञानी एवं पर्यावरण प्रेमी श्रीमती चंदन त्रिपाठी की यह खोज इस अंचल की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के प्रति आशान्वित करता है। वन्य जीव प्रेमियों के लिए यह बहुत ही खुशी की बात है। भालू, बंदर एवं खरगोश की उपस्थिति के साथ सियार जैसे वन्य प्राणु की बहुतायत यहां के वन्य जीवन की समृद्धि के नए द्वार खोलती है।
लगभग 60000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का यह छत्तीसगढ़ राज्य अपने 45% हिस्से में प्राकृतिक वन विरासत को समेटे है। छत्तीसगढ़ के वन और यहां की जैव विविधता पर्यावरण एवं प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को बार-बार यहां बुला रहा है। प्रकृति की इस खूबसूरती को देखने और जीवन की आपाधापी में व्यस्त जीवन को शांति के देने के लिए इस बार गौरघाट पर्यटन के लिए आप अपनी यात्रा निर्धारित कर सकते हैं। निश्चित मानिए यह अंचल अपनी समृद्ध प्राकृतिक विरासत सेआपका मन मोह लगा और व्यस्त जीवन के बीच शांति के साथ नई ऊर्जा भरने का कार्य करेगा।
बस इतना ही, फिर मिलेंगे किसी अगले पड़ाव पर……






