
मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण सिर्फ दिखावा ? 30 दिनों से बैठी आंदोलन में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिका की नही सुन रही सरकार
छत्तीसगढ़ में 2013 में मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना बनाया गया था जहां महिलाओं की स्थिति सुधार कर जीने लायक आत्मनिर्भर बनाना था। लेकिन जहां कई वर्षों से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं, और शासन को अपनी मांगों को ध्यानाकर्षण करवा रही है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार उनकी बातों को अनसुना कर रही है जहां मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों का 10 हजार रूपए से अधिक मानदेय बढ़ा दिया है वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ढाई हजार रुपए देकर शासन की विभिन्न काम को करवा रही है। इनके द्वारा शासन की हर योजना में कार्य किया जाता है चाहे बीएलओ का काम, स्वास्थ्य विभाग का काम, नगर पालिका का काम और अपने विभाग का तो कार्य करती हैं जहां आज के महंगाई में एक सिलेंडर की कीमत 1100₹ है वही इतना कम वेतन देना महिला सशक्तिकरण का मजाक ही है जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण के नाम पर लाखों रुपए खर्च करती है वही आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता कुपोषण को हटाने का कार्य कर रही हैं, वही छत्तीसगढ़ सरकार से 20 फरवरी को हुई कैबिनेट बैठक मेंआशा लगाए बैठी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका को निराशा हाथ लगी वही कैबिनेट की बैठक में जो 5 साल जनता के नाम पर जीत कर आए विधायक को वेतन, महंगाई भत्ता, पेंशन जैसे मुद्दे को कैबिनेट में रखा गया यह आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के साथ एक मजाक ही था। जहां कई वर्षों से आंदोलनरत हैं जिनकी आवाज को दबाने के लिए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से 48 घंटे का मोहलत दिया जाता है, और हटाए जाने की धमकी भी दिया जाता है। लगता है इस बार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका दबने वाली नहीं है सरकार को जगाने के लिए अब हर रोज नए नए तरीके से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका प्रदर्शन करेंगी।
संपादक- राजेश सिन्हा