
आध्यात्मिक आस्था का धरोहर जटाशंकर धाम
(दिव्यास्त्र के जनक महामुनि निदाध की तपस्थली है जटाशंकर आश्रम)
लेखन एवं प्रस्तुति – बीरेन्द्र श्रीवास्तव
एमसीबी छत्तीसगढ़:- अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समेटे दिव्यास्त्रों के जनक महामुनि निदाध का यह जटाशंकर धाम आश्रम अपने रहस्य रोमांच एवं जंगल पहाड़ों की शांति के बीच पक्षियों की मधुर वाणी और आध्यात्मिक आस्था का यह अविस्मरणीय स्थल आपको आमंत्रित कर रहा है. यहां पहुंचकर पशु पक्षियों के साथ अपना कुछ समय बिताने और अपने हाथ से बंदरों को बुलाकर उन्हें बिस्किट खिलौने का रोमांच आप जीवन भर याद रखेंगे क्योंकि शांत बंदरों को बुलाकर अपने हाथ से उनके दोनों हाथों में एक-एक बिस्किट पकड़ाने का रोमांच अपने आप में एक नया अनुभव प्रस्तुत करता है जो आपको यही प्राप्त होगा. आश्चर्य होता है कि विकास की कहानी लिखने वाले शासन प्रशासन का पर्याप्त ध्यान इसके विकास से अब तक क्यों कोसों दूर है. यहां पहुंचने हेतु सुनहरी मार्ग से जटाशंकर तक पक्की सड़क एवं छोटे-छोटे नालों के पुल अपने उद्धार के लिए किसी आस्थावान ईमानदार अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि की बाट जोह रहे हैं, जो इस आध्यात्मिक स्थल को राष्ट्रीय पर्यटन के नक्शे में जोड़ने का प्रयास करेगा. आध्यात्मिक भाषा में हम भगवान भोलेनाथ से विनती करेंगे कि अपने आशीर्वाद से किसी सक्षम अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि को इसके विकास हेतु आकर्षित करें.
आस्था और विश्वास का कोई छोर नहीं होता इसकी सीमाएं कही समाप्त नहीं होती. इसी आस्था के बल पर मानव कठिन से कठिन कार्य बहुत सहजता से पूर्ण कर लेता है आदिवासी जनमानस की आस्था के कारण ही गांव में चैत रामनवमी के अवसर पर भक्त कील लगे हुए झूले पर देवी मां का नाम लेकर झूलते नजर आते हैं कई स्थानों पर कील लगी खड़ाऊ पर खड़े भक्तों को भी आपने देखा होगा. ऐसा कठिन कार्य आस्था और विश्वास के बल पर किया जाता है . विश्वास की शक्ति मानव को अपनी शक्ति सीमा से भी अधिक कुछ कर गुजरने का सामर्थ्य प्रदान करती है. इसी तरह ज्ञान विज्ञान की सीमाएं भी हमारी सोच से भी ज्यादा आगे निकल जाती है. निर्जीव बाण को मंत्र शक्ति से जागृत कर अलग-अलग कार्यों के लिए तैयार करना भी एक बहुत जटिल कार्य है लेकिन ऐतिहासिक शोध के अनुसार महामुनि निदाध मंत्र शक्ति से बाण को जागृत करने की विधा के ज्ञाता थे. भारतीय अध्यात्म चिंतन में पृथ्वी की मानव उत्पत्ति की उम्र को चार युगों में बांटा गया है सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलयुग इन चार युगों में त्रेता युग में अत्याचार का नाश करने भगवान राम का अवतरण हुआ था. भगवान राम पिता की आज्ञा से 14 वर्ष का वनवास का आदेश पाकर जब दंडकारण के वन में विचरण कर रहे थे उस समय ज्ञान विज्ञान के जनक ऋषि मुनि जंगल पहाड़ों के बीच रहकर भी अपने शोध और ज्ञान बढ़ाने का कार्य करते रहे थे. प्राकृतिक चट्टानों से घिरी असीम जल बूंदों को एकत्र कर बहती जलधारा की तपस्थली जटाशंकर धाम इन्हीं पहाड़ों और नदी नालों के कटाव से बनी घाटी की तराई में स्थित मंत्रदृष्टा महामुनि निदाध की तपस्थली रही है.
छत्तीसगढ़ का उत्तरांचल हिस्सा घने जंगल पहाड़ों से गिरा ऐसा वन क्षेत्र है जहां अपने वनवास काल में भगवान राम के चरण पड़े थे. दंडकारण के इस देवभूमि में राक्षसों के आतंक को समाप्त करने हेतु एक लंबा समय उन्होंने यहां बिताया है छत्तीसगढ़ के 32 वें मने.- चिर.- भरतपुर जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के भरतपुर ब्लॉक से छत्तीसगढ़ की सीमा प्रारंभ होती है. जनकपुर के सीतामढ़ी हरचौका में बनवासी भगवान श्री राम का छ.ग. मे प्रथम आगमन हुआ था. रामवन गमन मार्ग के शोधपरक पुस्तक के लेखक डा. मन्नू लाल यदु की पुस्तक “देवभूमि सरगुजा में बनवासी राम” इसकी विस्तृत चर्चा की गई है. कई अन्य स्थलों में उनके संध्या आरती एवं विश्राम कक्ष की जानकारी मिलती है. जिसमें घघरा हरचौका मंदिर एवं छतौड़ा आश्रम में भगवान राम के पड़ाव के साक्ष्य स्वरूप पत्थर की कई गुफाएं आज भी स्थित है. पुस्तक के अनुसार यह क्षेत्र दंडकारण्य का देवभूमि क्षेत्र कहलाता था. अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण इस देवभूमि के अलग-अलग स्थान में कई ऋषि मुनि के आश्रम बने हुए थे. इसकी जानकारी बाल्मीकि रामायण में भी मिलती है. हजारों वर्ष पुराने रामायण के पात्र एवं स्थलों को पृथ्वी के परिवर्तन के साथ आज ढूंढ पाना टेढ़ी खीर है लेकिन साक्ष्यों और किवदंतियों कतथा नदियों पहाड़ों के साथ साथ आवामन के तत्कालीन मार्ग के अनुसार यह मिलने वाले साक्ष्य भगवान राम के वन गमन मार्ग के पुख्ता प्रमाण देते हैं. हमारी आस्था और हमारा विश्वास इसे मजबूती प्रदान करता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार देवगढ़ की पहाड़ियों के आसपास मनेन्द्रगढ़ से सरगुजा अंबिकापुर तक के फैले देवभूमि स्थल में 21 प्रसिद्ध ऋषि मुनि निवास करते थे. इन्हीं मुनियों में से ऋषि पुलस्थ के पुत्र त्रिकालदर्शी महामुनि निदाध इस अंचल में अपनी विशिष्ट विद्या के लिए पहचाने जाते थे. घने जंगलों के बीच स्थित जटाशंकर धाम उनकी तपस्थली रही है.
मंत्र दृष्टा, त्रिकालदर्शी महामुनि निदाध के बारे में जानकारी मिलती है कि मंत्र शक्ति से निर्जीव बाण में शक्ति पैदा करने की विधा में वे पारंगत थे और यही शिक्षा लेने भगवान राम अपने वन गमन के समय महामुनि निदाध के आश्रम जटाशंकर पहुंचे थे. जहां उनका आशीर्वाद एवं मंत्र शक्ति की शिक्षा पाई थी. त्रिकाल दर्शी ऋषि आश्रम होने के कारण यह जटाशंकर धाम तत्कालीन ऋषि मुनियों का सत्संग स्थल भी रहा है. यहाँ महमुनि निदाध ने सबसे पहले अपने सत्संग के प्रवचन में भगवान राम के अवतरण की सूचना सभी ऋषियों को प्रदान करते हुए कहा था कि सभी राक्षसों का नाश करने परम ब्रह्म का अवतार भगवान राम के रूप में हो चुका है, और उनका वनमार्ग यही देवभूमि का क्षेत्र होगा. यही कारण है कि बाल्मीकि रामायण के छठे स्वर्ग में वर्णित मुनियों में हसदो नदी के तट पर निवासरत ऋषि वामदेव का आशीर्वाद प्राप्त कर भगवान राम जब आगे चले थे तब जटाशंकर आश्रम पहुंचकर उन्होंने महामुनि निदाध से मंत्र शक्ति की शिक्षा प्राप्त कर आगे सरगुजा में महामुनि शरभंग का आशीर्वाद प्राप्त किया. जिन्होंने भगवान राम की प्रतीक्षा करते हुए अपना शरीर छोड़ने के लिए देवराज इंद्र के रथ को भी रोक रखा था भगवान राम के दर्शन के बाद उन्होंने अपना देह त्याग किया था. महामुनि निदाध की तपस्थली जटाशंकर धाम का उस समय का स्वरूप कैसा रहा होगा यह कहना जरा मुश्किल होगा लेकिन वर्तमान स्वरूप का शेषनाग के चौड़े फन जैसी चट्टानों की आकृति यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को छाया प्रदान करती है. पहले प्राकृतिक स्थल के ऊपर पहले किसी बड़ी जलधारा के होने की संभावना को बल देती है. अभी भी वर्षा काल में एक जल स्रोत का संकेत देती है. देवगढ़ की पहाड़ियों की बाहों में फैली समतल जमीन पर बसे चपलीपानी गांव से लगभग 150 मीटर गहराई पर उतरने हेतु बनी 730 सीढ़ियां आपको जहां रोमांचित करती हैं वहीं आज के शहरी जीवन से दूर शांत पहाड़ों की वीडियो में पत्थरों की चट्टानों में भरपूर ताकत के साथ चढ़ने उतरने का रोमांच पैदा करती है. जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के इस पहले विधानसभा क्रमांक 1 के जनप्रतिनिधियों द्वारा सीढ़ियां का निर्माण कराया गया है वही आश्रम स्थल के पास पानी के जल कुंड की पक्की संरचना से संरक्षित करने का कार्य कराया गया है. वर्तमान स्वच्छता के प्रति समर्पण का ध्यान रखकर मंदिर परिसर को चमकदार टाइल्स लगाकर आकर्षक बनाने में भरपूर सहयोग प्रदान किया गया है. बाहरी हिस्से में बना भगवान भोलेनाथ का मंदिर सभी आस्थावान भक्तों की पूजा अर्चना का स्थल है जहां आस्था के साथ लोगों द्वारा मनौती के नारियल भगवान शंकर को अपनी मनौती याद दिलाने के लिए बांध दिए जाते हैं. भोलेनाथ से हमारी याचना है कि भक्तों की उचित मनौती को पूरा करें ताकि लोगों की जटाशंकर धाम के प्रति श्रद्धा और विश्वास बना रहे.
धार्मिक मान्यता और किवदंतियों की व्यापकता अंचल के निवासियों के ऊपर निर्भर करती है जिसकी सीमा केवल दूर से दिखाई देती है लेकिन इसकी सीमाओं तक कोई पहुंच नहीं पाया है. पहाड़ की दो चट्टानों के बीच जटाशंकर गुफा की लंबाई एक लंबे समय से 52 हाथ लंबी कही जाती है. 52 हाथ की लंबाई हाथ के छोटे बड़े होने की साथ ही लगभग 70 फीट अंदर पहुंचकर समाप्त होती है. जहां भगवान भोलेनाथ के दरबार के दर्शन होते हैं इस स्थल पर पहुंचकर भगवान भोलेनाथ के जटाओं में बूंद बूंद प्राकृतिक रूप से वर्ष भर जलाभिषेक का प्राकृतिक दृश्य के आप साक्षी बन सकते हैं. यह सौभाग्य बहुत कम लोगों को प्राप्त होता है. यहां पूजा अर्चना तथा जटाशंकर धाम की व्यवस्था हेतु सजग शिवदास बाबा से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह स्थल विगत 100 वर्ष से ज्ञात स्थल है , जो कोरिया राज्य के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव का शिकार गाह रहा है. बिहारपुर ढूलकू और बाँही गांव के पूर्व जमीदार स्वर्गीय पुरुषोत्तम लाल श्रीवास्तव उस समय कोरिया रियासत के शिकार दरोगा थे. रियासत के जंगलों में शेरों का शिकार उस समय राजा की वीरता और सम्मान की निशानी माना जाता था, इसलिए इस जंगल के बीच ही राजा रामानुज प्रताप सिंह देव का शिकार के समय विश्राम व्यवस्था के लिए विश्राम स्थल बनाए गए थे. इसी बीच इस जटाशंकर धाम की जानकारी मिलने पर राजा साहब भी भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने यहां पहुंचे थे एवं यहां पर पहुंचने के लिए रास्ते भी बनवाए गए थे .इस मंदिर की जानकारी एक चरवाहे के द्वारा मिली थी जो जंगलों के बीच अपने गाय भैंसों की लेहड़ लेकर जंगलों के बीच रहता था और यहीं भगवान भोलेनाथ सन्यासी वेश में अपना कमंडल लेकर चरवाहे के पास आते और दूध के लिए कमंडल रख दिया करते. चरवाहा रोज कमंडल दूध से भर देता और भोलेनाथ वापस चले जाते. एक दिन चरवाहे ने पूछ लिया महाराज आप इस जंगल में रहते कहां है, तब उन्होंने उसे साथ चलने को कहा और इस गुफा के पास आकर अंतर ध्यान हो गए तब चरवाहे ने गांव वालों को इसकी जानकारी दी. इस तरह की एक किवदंती कुछ मीडिया का आकर्षण बनी है ,जिसमें भगवान भोलेनाथ ने लंबी तपस्या के बाद जब भस्मासुर को आशीर्वाद दिया था और भस्मासुर ने भगवान भोलेनाथ के ऊपर ही हाथ रखने की कोशिश की तब भगवान भोलेनाथ इसी गुफा में जाकर छुप गए थे और भस्मासुर इस गुफा में घुस नहीं पाया था तब भगवान विष्णु जी ने नर्तकी की का रूप धरकर भस्मासुर को स्वयं अपने हाथों नष्ट कर दिया था. किवदंतियाँ आस्था एवं विश्वास की ऐसी दस्तान होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने समय के अनुसार कुछ संशोधन के साथ घटती बढ़ती रहती है लेकिन इनके छोर की कोई जानकारी नहीं. होती. यही कारण है कि इनकी विश्वसनीयता पर भी कई बार प्रश्न खड़े हो जाते हैं.
कहा जाता है कि राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने यहां की जानकारी मिलने के बाद अमृत धारा के पुजारी श्री रामखेलावन महाराज को यहां की देखरेख और पूजा पाठ के लिए नियुक्त किया था लेकिन घने जंगलों के बीच वे ज्यादा दिन यहां रुक नहीं पाए. बाद में बाबा जगदीश दास जी लगभग 9 वर्ष तक यहां तपस्या किए थे. फलाहारी बाबा के नाम पर विख्यात बाबा जगदीश दास जी के बारे में ग्रामीणों के अनुसार यह कहा जाता है कि शेर भी जटाशंकर आश्रम के पास पानी पीने आया करता था, लेकिन बाबा जगदीश दास जी क उसने कभी कोई अहित नहीं किया. वर्तमान समय में फलाहारी बाबा के शिष्य शिवदास बाबा का आश्रम यहां चपलीपानी में बना हुआ है जहां भक्तगण उनसे जानकारी लेने एवं आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु यहाँ पहुंचते हैं.
जटाशंकर धाम तक पहुंचने के लिए पहले मनेन्द्रगढ़ जिला मुख्यालय से बिहारपुर तक पहुंचना होगा. राष्ट्रीय राजमार्ग 43 से होकर मनेन्द्रगढ़ से कठौतिया लगभग 09 कि.मी. चलने के बाद तिराहे से आगे उत्तर पश्चिम दिशा में छ.ग. राज्य मार्ग क्र. 08 से जनकपुर मार्ग में बिहारपुर तक पहुंच सकते हैं. . बिहारपुर से दाहिने ओर उत्तर पश्चिम दिशा में मुड़ने वाले सोनहत मार्ग पर चलते हुए आपको ढूलकू गांव पहुंचना होगा. यहां तिराहे में पहुंचकर सुनहरी गांव के रोड पर आगे बढ़ना होगा. सुनहरी गांव से 2 किलोमीटर पहले जटाशंकर धाम का भव्य द्वार दिखाई पड़ता है. इसी द्वार से और आगे लगभग 12 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए आप चपलीपानी गांव पहुंचते हैं. यह जटाशंकर धाम पहुंचने का अंतिम गांव है. यहां तक पहुंचने के इस राह पर धने साल एवं मिश्रित वनों का मनमोहक सौंदर्य हमें दिखाई पड़ता है. कहीं-कहीं सड़क किनारे पत्थरों के लौह अयस्क के पथरीले चट्टानों की पतली परत ओढ़े लंबी लंबी पंक्तियों के टुकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि आदिवासी अगरिया समाज की यहां कभी सघन बस्तियां रही होगी जो लौह अयस्क की चट्टानों को गला कर जंगलों में शिकार के लिए तीर (बाँण) बनाने तथा खेती के औजार बनाने का कार्य करते रहे होंगे. बाद में गला हुआ कच्चा लोहा फेंक देने के कारण यहां के चट्टानों में यही लोहा अलग-अलग शक्ल में जम गया होगा. जो लंबी-लंबी धारीदार शक्ल में जमीन पर दिखाई पड़ते हैं. यहां पहुंचने के लिए एक और मार्ग कठौतिया से जनकपुर मार्ग में लगभग 05 किलोमीटर चलकर सलबा गांव से दाहिनी ओर अर्थात उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुड़ता है. यह रास्ता सलवा गांव को जाता है. सलवा से आगे घुटरा ग्राम पंचायत कार्यालय होते हुए नए निर्माणाधीन मार्ग से गरुड़ डोल पहुंचते हैं. इस मार्ग से आगे लगभग 6 किलोमीटर की दूरी में आप ढूलकू मुख्य मार्ग से जुड़ जाते हैं. इसके दाहिने ओर चलते हुए सुनहरी मार्ग पड़कर भी जटाशंकर धाम पहुंचा जा सकता है यह मार्ग अभी निर्माणाधीन है. इस मार्ग से जटाशंकर की दूरी लगभग 05 किलोमीटर की आपकी यात्रा में कमी कर देगा.
जटाशंकर गुफा तक पहुंचने के लिए अंतिम गांव चपलीपानी में बाबा शिवदास के आश्रम से आगे लगभग 2 किलोमीटर चलकर आपको अपनी गाड़ियां रोक देनी पड़ेगी. यही से 730 सीढ़ी नीचे उतरने पर आप पहुंचते हैं जटाशंकर धाम. इस स्थल में लगभग 15 मी का चौड़ा आश्रम स्थल में दो जल कुंड बने हुए हैं, जहां चट्टानों के रिसाव से बूंद बूंद टपकने वाला शुद्ध जल कुंड में इकट्ठा होता है और यही जल यहाँ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के पीने एवं भोजन प्रसाद बनाने के काम आता है यदि आप मित्र श्रद्धालुओं के साथ यहां पहुंचे हैं और अपने भोजन प्रसाद की सामग्री लेकर चलें हैं, तब यहां मंदिर परिसर में भोजन प्रसाद पकाने हेतु बर्तन निशुल्क भोले बाबा के इस आश्रम में उपलब्ध हो जाएगा. लकड़ियां आप पहाड़ियों से थोड़े प्रयास से चुनकर ला सकते हैं आप इस बात की चिंता ना करें कि अधिक लोग हैं पांच से 50 भक्तो के लिए यहां आपको पर्याप्त बर्तन उपलब्ध है. शिवरात्रि के समय आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहां पर सैकड़ो लोटा उपलब्ध रहते हैं. जिहमें जल भरकर आप भगवान भोलेनाथ को अपना जल अर्पण कर सकते हैं. बस आवश्यकता है तो केवल इतना कि आपके द्वारा उपयोग किए जाने के बाद उन बर्तनों को वैसे ही साफ सुथरा मांज धोकर रखने की जिम्मेदारी आपकी है. जैसा साफ सुथरा आपको बर्तन प्रदान किया गया है उतनी ही स्वच्छता के साथ आपको उसे रखना होगा क्योंकि स्वच्छता की साधना भी आपकी भक्ति और आध्यात्मिक की परीक्षा है. हमारा अनुरोध है कि यहां पानी एवं प्लास्टिक बोतल का प्रयोग ना करें. आकस्मिक स्थितियों में उपयोग किए गए प्लास्टिक को अपने साथ ऊपर ले आए और उसे ऐसे स्थान में डाल दें जहां उसका निस्तारण किया जा सके.
ग्राम वासियों की जानकारी के अनुसार आश्रम के बांयी ओर दो चट्टानों के बीच 52 हाथ लंबी गुफा में भोलेनाथ विराजे हैं जहां आपको बैठकर सरकते हुए ही आगे बढ़ना होगा वापस आने के लिए भी इसी तरह पीछे हटते हुए वापस आना है. यहां कुछ स्थान ऐसे हैं जहां आप दूसरे भक्त को जाने का रास्ता कुछ परेशानियों के साथ दे सकते हैं क्योंकि इस गुफा की ऊंचाई ज्यादा नहीं है यहां आने के लिए आप अपने साथ टॉर्च या मोबाइल की रोशनी रख सकते हैं. दो-तीन पहाड़ियों के बीच यह स्थल सैकड़ो वर्षों से यथावत टिका है. जहां भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग दिखाई पड़ता है. आराधना स्थल की प्राकृतिक संरचना, रहस्य, रोमांच एवं आध्यात्मिक आस्था का ऐसा स्थल है, जो आपको इस गुफा मंदिर के अतिरिक्त कहीं दिखाई नहीं पड़ेगा. इस गुफा के रास्ते में भगवान भोले शंकर के गण सांप के भी दर्शन कभी-कभी हो जाते हैं लेकिन उनसे डरे नहीं और उन्हें निकलने का रास्ता दे दें। वह बाहर चले जाएंगे. बाबा शिवदास एवं भक्तों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भोले बाबा के गण होने के कारण अब तक किसी भी भक्त को किसी प्रकार के नुकसान पहुंचाने की जानकारी नहीं है. इसी गुफा में भगवान भोलेनाथ के दरबार में शिवलिंग पर चट्टानों से टपकता प्राकृतिक जलाभिषेक बाबा भोलेनाथ की जटाओं में गिरता रहता है, जो जटाशंकर धाम के नाम को चरितार्थ करता है ऊपर के चट्टानों से टपकता पानी धीरे-धीरे बाहर की टंकी तक पहुंचता है जो भक्तों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पौष्टिक एवं कई मिनरल से युक्त सुपाच्य पानी है. इसी टंकी के जल के पास से एक आम का पेड़ अपने मोटे तने के साथ जमीन में लेट कर बाहर निकलता है और बाहर आकर अपनी सफलता की कहानी भगवान सूरज को अपनी विशाल शाखा और पत्तियां से हाथ जोड़ कर नमन करते हुए उनका साक्षात्कार करता है. रहस्य और रोमांच की कई किस्सों में यह भी एक रहस्यमय प्रश्न है कि जिस तरह की मूर्ति गुफा में विराजमान है वैसी मूर्तियां आसपास के जंगलों में कहीं कहीं दिखाई पड़ जाती हैं जिसमें एक चौरस ठोस पत्थर पर कई छोटे शिवलिंग पत्थरों के बीच एक बड़े शिवलिंग दिखाई पड़ते हैं ऐसा लगता है किसी कुशल हाथों ने पत्थर की चट्टानों के ऊपर कुछ छोटे-छोटे शिवलिंगों के बीच एक बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया है. प्रकृति के इस रोमांच एवं रहस्य से पर्दा उठना अभी शेष है.
अब समय के परिवर्तन के साथ जंगल में बाबा शिवदास आश्रम के पास एक बजरंगबली मंदिर बनाने का प्रयास किया जा रहा है भक्तों की आवागमन को ध्यान में रखकर क्रेटा द्वारा सौर ऊर्जा संचालित हाई मास्क लाइट लगा दिए गए हैं जिसमें लगे कुछ बल्ब प्रकाश देने की कोशिश करते हैं. हां इसी सौर ऊर्जा से बाबा जी के आश्रम में जलती धूनि को प्रकाश मिल जाता है और भक्तों को कहीं-कहीं जिओ नेटवर्क मिल जाने सेघर परिवार तथा मित्रो तक अपनी खुशी बांटने का अवसर मिल जाता है, जो वर्तमान युग की आवश्यकता बन चुकी है. इसी तरह जटाशंकर गुफा आश्रम के पास भी कहीं-कहीं नेटवर्क उपलब्ध हो जाता है जो आकस्मिक जरूरत में आपके काम आ सकता है.
अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समेटे दिव्यास्त्रों के जनक महामुनि निदाध का यह आश्रम अपने रहस्य रोमांच एवं जंगल पहाड़ों की शांति के बीच पक्षियों की मधुर वाणी और आध्यात्मिक आस्था का यह अविस्मरणीय स्थल आपको आमंत्रित कर रहा है. यहां पहुंचकर पशु पक्षियों के साथ अपना कुछ समय बिताने और अपने हाथ से बंदरों को बुलाकर उन्हें बिस्किट खिलौने का रोमांच आप जीवन भर याद रखेंगे क्योंकि शांत बंदरों को बुलाकर अपने हाथ से उनके दोनों हाथों में एक-एक बिस्किट पकड़ाने का रोमांच अपने आप में एक नया अनुभव प्रस्तुत करता है जो आपको यही प्राप्त होगा. आश्चर्य होता है कि विकास की कहानी लिखने वाले शासन प्रशासन का पर्याप्त ध्यान इसके विकास से अब तक क्यों कोसों दूर है. यहां पहुंचने हेतु सुनहरी मार्ग से जटाशंकर तक पक्की सड़क एवं छोटे-छोटे नालों के पुल अपने उद्धार के लिए किसी आस्थावान ईमानदार अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि की बाट जोह रहे हैं, जो इस आध्यात्मिक स्थल को राष्ट्रीय पर्यटन के नक्शे में जोड़ने का प्रयास करेगा. आध्यात्मिक भाषा में हम भगवान भोलेनाथ से विनती करेंगे कि अपने आशीर्वाद से किसी सक्षम अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि को इसके विकास हेतु आकर्षित करें. रहस्य रोमांच एवं प्राकृतिक संरचना का यह आध्यात्मिक आंगन आपको पुकार रहा है हमारा विश्वास है कि एक बार आप सपरिवार यहां पहुंचकर इस तीर्थ धाम का आशीर्वाद जरूर प्राप्त करें. इतना ध्यान रखें कि हाई ब्लड प्रेशर के मरीज अपने स्वास्थ्य को ध्यान रखकर ही नीचे उतरे. विकास के क्रम में स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है अन्यथा पहाड़ियों की यह घाटियाँ कचरो के ढेर के नीचे समाप्त हो जाएंगी. ध्यान रहे इस पवित्र स्थल तक हमारा पहुंचना कचरे की बढ़ोतरी का कारण न बने, बल्कि हमारी कोशिश हो कि इन चट्टानों के बीच कुछ फूल पौधों के बीज डाल दे ,ताकि भविष्य मे उनकी छाया और सानिध्य हमें मिल सके और जंगल मे एक पेड़ लगाने का कीर्तिमान आपके नाम लिखा जाए. प्रकृति की इस सुंदरता की इबारत जब आपके हाथों पूरी होगी तभी कोई भी पर्यटन स्थल अपनी राष्ट्रीय पर्यटन स्थल की ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकेगा……….
बस इतना ही फिर मिलेंगे किसी दूसरे पर्यटन स्थल पर
राजेश सिन्हा 8319654988