संबोधन एवं वनमाली सृजन केंद्र द्वारा #साहित्य पत्रकारिता का# विषय पर संगोष्ठी आयोजित.
इतिहास गवाह है कि पत्रकारिता एवं साहित्य का लंबे समय से संबंध रहा है, लेकिन पत्रकारिता का एक अंश हड़बड़ी में रचा हुआ साहित्य है, जो यथार्थ की घटनाओं पर लिखा जाता है जबकि साहित्य यथार्थ और काल्पनिक घटनाओं का संयुक्त लेखन है. अच्छी एवं प्रभावी पत्रकारिता पत्रकार के लेखन कौशल पर निर्भर करता है, किंतु चिंता का विषय है कि वर्तमान पत्रकारिता में घटनाओं और दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग में मानवीय पक्ष कमजोर हो रहा है. समाज में उत्पन्न विभिन्न दबाव में वर्तमान पत्रकारिता अपने सच्चाई का बयान करने से भी पीछे हट रही है. पत्रकारिता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य मे इस देश की पत्रकारिता का आजादी की लड़ाई में विशेष योगदान रहा है. देश की आजादी के लिए भावना भरने का कार्य पत्रकारिता और पत्रकारों के कंधों पर था. जिसमें वे सफल रहे हैं. उपरोक्त विचार छत्तीसगढ़ के रायपुर से पधारे सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार श्री गिरीश पंकज ने साहित्य एवं पत्रकारिता के अंतर्द्वंद व्याख्यानमाला में व्यक्त किये.
आजादी के ऐतिहासिक पक्ष को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी जैसे साहित्यकार जेल में रहने के बावजूद भी पत्रकारिता से जुड़े रहे. गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रसाद पत्रिका में लगातार लिखते रहे. उनकी सुप्रसिद्ध रचना पुष्प की अभिलाषा जेल से लिखी रचना है.वीर सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने समाचार पत्र के माध्यम से 1920 में अपनी बात महात्मा गांधी तक पहुंचाई थी, और कहा था कि देश को पूर्ण आजादी की मांग उठानी चाहिए और यह मांग वर्धा से उठनी चाहिए. उनके वर्षो पहले कहे विचार को गांधी जी ने कई वर्षों बाद बाद पूर्ण स्वराज को आंदोलन का रुप देकर आजादी का बिगुल फूंका था. साहित्यकार एवं पत्रकार को जोड़ने वाली सशक्त कड़ी मे माधवराव सप्रे ने सन् 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र समाचार पत्र इस अंचल के पेंड्रा से निकाला था. जो कुछ वर्षों बाद बंद हो गया. यह उनका पत्रकार व्यक्तित्व था, लेकिन हिंदी कहानी टोकरी भर मिट्टी के लिए उन्हें प्रथम कहानीकार होने का श्रेय प्राप्त है. छत्तीसगढ़ मित्र पत्र के माध्यम से उन्होंने स्वदेशी अपनाने और विदेशी सामानों का विरोध करने की बात कही थी. जिसे गांधी जी द्वारा बाद में अपनाकर स्वदेशी अपनाओ और विदेशी का बहिष्कार का नारा तथा खादी को अपनाने की बात कही गई. जो हमारे आत्मविस्वास का आधार बनी. यह सभी तथ्य साबित करते हैं कि साहित्य और पत्रकारिता का एक अटूट संबंध है जिसे प्रतिभा और समाज की कसौटी पर कसना आज की आवश्यकता है.
वरिष्ठ साहित्यकार बीरेंद्र श्रीवास्तव ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पत्रकारिता का सीधा संबंध उसकी प्रामाणिकता से भी होता है, क्योंकि पत्र पत्रिकाओं के लेख एवं समाचार , न्यायालयों में भी दस्तावेज की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं और समय-समय पर जनहित याचिकाओं में भी इसका उपयोग होता है, इसलिए संपादक एवं पत्रकार की समाचारों के प्रति जिम्मेदारी बढ़ जाती है. हल्की पत्रकारिता पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि समाचारों में की गई किसी भी गलती को स्वीकार करने और संशोधन छापने से पत्र की महत्ता बढ़ती है, कम नहीं होती, क्योंकि आपके द्वारा गल्ती से भी दिए गए गलत आंकड़े हमेशा के लिए आम लोगों के मस्तिष्क में छप जाते है.जिसका गलत प्रभाव दूर तक पत्र पत्रिका की प्रमाणिकता को प्रभावित करता है.
पत्रकार विनय पांडे ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मै गंभीरता से महसूस कर रहा हूँ कि व्यावसायिकता के इस दौर में पत्र पत्रिकाएं आर्थिक दबाव झेल रही है, किंतु पत्र पत्रिका के स्तर को बनाए रखने के लिए ,मापदंडों से परे किसी को भी संवाददाता या पत्रकार बनाना चिंता का विषय है. स्वस्थ पत्रकारिता के साथ विश्वसनीय समाचारों के लिए राज्य व केंद्र सरकारों को संवाददाता बनाने हेतु मापदंड तय करना चाहिए. जिनका पालन कराने हेतु भी शासन का हस्तक्षेप भी जरूरी है. आज पत्र-पत्रिकाओं में मानवीय संवेदनाओ को स्थान न देना. मृत संवेदना के समाचारों में भी संशोधन बेहद चिंता का विषय है. मैं चाहूंगा कि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े संपादक एवं स्वामी इस दिशा में आगे बढ़कर अवश्य चिंतन करें.
साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने कहा कि पत्रकारिता में विदेशी भाषाओं का बढ़ता प्रयोग चिंताजनक है जिससे हम अपनी भाषा की शुद्धता नहीं रख पा रहे हैं. आवश्यकतानुसार देशज शब्दों और स्थानीय भाषा बोली का प्रयोग या देश के अन्य भाषाओं का प्रयोग भी हिंदी में स्वीकार करना ज्यादा उचित होगा. चिंता का विषय है कि टीवी पर बच्चों के कार्टून चैनल में भी बच्चों केबहन भाई जैसे शब्दों के बजाय ब्वॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड जैसी बातें हमारी संस्कृति में जहर घोल रही है, जिस पर विराम लगाना समय की मांग है.
पत्रकार मृत्युंजय चतुर्वेदी ने कहा कि विज्ञापनों का दबाव आज इतना ज्यादा हो गया है कि हम इन विज्ञापनों के कारण टेलीविजन पर एक साथ परिवार के साथ बैठकर कोई भी समाचार एवं सीरियल नहीं देख सकते. इस तरह के दबाव हमारे सांस्कृतिक विरासत को निगल रहे हैं और हम मूकदर्शक बने हुए हैं. हमारी सांस्कृतिक मूल्यों को तोड़ने वाले इस प्रयास का सामूहिक विरोध होना बहुत जरूरी है.
संजय सिंह सेंगर ने कहा कि पत्रकारिता की गलत नीतियों पर प्रश्न उठाना होगा गलत समाचार देने वाले समाचार पत्रों का विरोध आम जनता जिस दिन करने लगेगी, तब पत्र और पत्रकारिता दोनों में बदलाव स्पष्ट दिखाई देने लगेगा.
साहित्यकार विजय गुप्ता ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों की मजबूती हमारे धार्मिक ग्रंथों में समाहित हैं जो बच्चों को सही मार्गदर्शन करने में सहायक हो सकती है उन्होंने केंद्रीय विद्यालय की पुस्तकों में हमारी धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों को पाठ्यक्रम में जोड़कर बच्चों तक पहुंचाने की एवं समस्त विद्यालयों में इसे लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया
डॉ निशांत श्रीवास्तव ने कहा कि बढ़ती उम्र के बदलाव में बच्चों को आज मार्गदर्शन बहुत जरूरी है इसलिए अच्छी पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं का पढ़ना आवश्यक है साहित्यकारों एवं पत्रकारों को वर्तमान समय के अनुसार मोबाइल में भी अच्छी और प्रेरक साहित्य सहज भाषा में उपलब्ध कराना चाहिए इसी तरह विद्यालयों में भी एक घंटे का समय पत्र पत्रिकाएं पठन-पाठन के लिए उपलब्ध करवाना चाहिए आवश्यकतानुसार बच्चों को सम्मानित करके इसके प्रति रुझान बढ़ाना भी एक अच्छा खत्म होगा
साहित्यकार गिरीश पंकज के मुख्य आतिथ्य मे देर शाम तक निदान सभागार मनेन्द्रगढ़ मे आयोजित इस संगोष्ठी में वैचारिक सहभागिता के साथ प्राचार्य राजकुमार पांडे, विनय पांडे ,साहित्यकार गौरव अग्रवाल, बीरेंद्र श्रीवास्तव , सतीश उपाध्याय, पुष्कर तिवारी, नरेंद्र श्रीवास्तव, हारुन मेमन , परमेश्वर सिंह, डॉ निशांत श्रीवास्तव और प्राचार्य संजय सिंह सेंगर की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की.
राजेश सिन्हा