
रचनात्मक यात्रा के पड़ाव परिचर्चा संबोधन साहित्य कला विकास संस्थान का आयोजन
कोरिया – मनेंद्रगढ़ आज मनेंद्रगढ़ अंचल के साहित्यकारों और कलाकारों के बीच आकर मैं संबोधन साहित्य कला विकास संस्थान के 45 वें स्थापना दिवस को याद करना चाहूंगा, जो 16 अक्टूबर 1977 को इस अंचल की रचनात्मक प्रतिभाओं को तराशने और समाज में स्थापित करने का उद्देश्य लेकर बैकुंठपुर से प्रारंभ हुआ था. इस संस्था के स्वप्न दृष्टा मेरे साथ स्वर्गीय रूद्र प्रसाद रूप, जितेंद्र सोडी, स्व. एम एल कुरील, वीरेंद्र श्रीवास्तव की कल्पना को साकार होते देख खुशी महसूस कर रहा हूं. संबोधन के वर्तमान सांस्कृतिक विभागाध्यक्ष नागेंद्र जायसवाल, प्रमोद बंसल, सतीश उपाध्याय, से लेकर नए लेखकों की पंक्ति में गौरव अग्रवाल, रमेश गुप्ता, गिरीश तिवारी, श्रीमती रश्मि सोनकर, जैसे कई हस्ताक्षर उभरकर सामने आए. इस संस्था के लेखक *अनवर सुहैल आज हिंदी साहित्य के राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना परचम लहरा रहे हैं. उक्ताशय के विचार छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष गिरीश पंकज ने *संबोधन द्वारा आयोजित रचनात्मक यात्रा के पड़ाव* विषय पर आयोजित परिचर्चा में मुख्य अतिथि के आसंदी से व्यक्त किए.
कार्यक्रम संचालक श्री अनिल जैन ने मुख्य अतिथि का परिचय देते हुए कहा कि सौ से ज्यादा पुस्तकों के लेखक श्री गिरीश पंकज का हिन्दी साहित्य मे योगदान यह है कि इनके साहित्य लेखन पर अब तक 16 शोध प्रबंध हो चुके हैं एवं देश के *सर्वोच्च सम्मान व्यंगश्री, अट्टहास, तथा संसद द्वारा द्वारा राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान* इन्हें प्राप्त हो चुका है आज गिरीश की उपस्थिति से उनकी कर्मभूमि मनेंद्रगढ़ भी गौरव महसूस कर रही है. मंचासीन सांवलिया प्रसाद सर्राफ पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश सिंह, जगदीश पाठक तथा संस्था उपाध्यक्ष हारुन मेमन का स्वागत करते हुए उन्होंने पुष्पगुच्छ से गिरीश पंकज के सम्मान के लिए श्री मती रश्मि सोनकर को आमंत्रित किया. उपस्थित रचनाकारों सहित गिरीश को बधाई देते हुए कहा कि गिरीश पंकज की शीघ्र ही 6400 पेज की सात खंडों में आने वाली *गिरीश पंकज रचनावली* के प्रकाशन की सूचना से आज यह नगर गौरवान्वित है. परिचर्चा में पत्रकार संतोष जैन के प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि कुछ भी अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत जरूरी है, ताकि आप यह जान पाए कि अब तक क्या लिखा जा चुका है. कवि गौरव अग्रवाल की फेसबुक पर लेखन और प्रकाशन के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि फेसबुक एक ऐसी दूधारी तलवार है जो रचनात्मकता को व्यापक मंच देता है, लेकिन यदि गलत हाथों में इसका प्रयोग होगा तब यह सामाजिक हत्या की भूमिका अदा करता है. इसलिए फेसबुक पर किसी भी रचना या फोटो के लेखन और प्रकाशन पर हमें सचेत रहना होगा.लेकिन इसके व्यापक प्रचार- प्रसार माध्यम से अपने रचनात्मक लेखन को जन समुदाय तक पहुंचाने के लिए यह जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना होगा .
कार्यक्रम के अंत में सुर-साधक एवं कवि रमेश गुप्ता जी ने अपने गीत की प्रस्तुति से सभी रचनाकारों को भाव विभोर कर दिया. कार्यक्रम समापन के पूर्व बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने दैनिक जागरण के चेयरमैन एवं प्रख्यात पत्रकार स्व. योगेंद्र मोहन गुप्त के असामयिक निधन पर सदस्यों से 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि देने हेतु आवाहन किया. श्रद्धांजली के पश्चात उपस्थिति के लिए सभी लेखको एवं कलाकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया. देर शाम तक आयोजित इस गरिमामय आयोजन में सतीश उपाध्याय, जयप्रकाश सिंह, जगदीश पाठक, अनिल जैन, निरंजन मित्तल , पुष्कर- तिवारी, नरेंद्र श्रीवास्तव, सांवलिया प्रसाद सर्राफ, हारुन मेमन, गोपाल बुनकर, वीरेंद्र श्रीवास्तव, प्रमोद बंसल, रश्मि सोनकर, रमेश गुप्ता एवं गौरव अग्रवाल की उपस्थिति ने कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान की.