भरतपुर के मुरैलगढ़ पहाड़ से निकली बनास नदी का सौंदर्य “रमदहा जलप्रपात” और चोर बालू
* * रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
रेत पर लिखा कुछ भी रहेगा नहीं
तुमने पत्थर का दिल मुझको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगी मिटेगा नहीं * *
कवि की इन पंक्तियों को सार्थक करने के लिए लिए चलें पर्यटन स्थल रमदहा जलप्रपात–
लेखन एवं प्रस्तुति – बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव,
पर्यटन विशेष:- अपना देश और अपनी माटी से किसे प्यार नहीं होता. देव भूमि भारत की मिट्टी में रहने वाले लोग अपने देश पर गर्व करते हैं क्योंकि प्रकृति ने यहां तीन अलग-अलग ऋतुएं प्रदान की है जिनकी अलग-अलग विशेषता है किंतु वर्षा ऋतु में जब प्रकृति पहाड़ों को नहला-धुला कर पेड़ पौधों से सजाकर उसको निहारती है तब स्वयं अपने हाथों से एक काला डिठौना लगाना नहीं भूलती क्योंकि कहीं सुंदरता पर उसकी खुद की नजर ना लग जाए. इसीलिए हरियाली को अपने आंचल में बांधकर लाने वाली वर्षा ऋतु सर्वश्रेष्ठ ऋतु होने का गौरव प्राप्त करती है इसी वर्षा ऋतु पर शरद ( ठंड,) गर्मी एवं बसंत जैसी ऋतुओं को सींचने सँवारने की जिम्मेदारी भी होती है. कम वर्षा या खंड वर्षा हमेशा से दूसरे ऋतुओं को भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभावित करती रही है. इसीलिए वर्षा ऋतु जब प्रकृति मे हरे-भरे जंगल पहाड़ और घास के मैदान के साथ-साथ खेतों में लहलहाती फसलों की हरियाली देती है तब हमें कुछ देर रुक कर इसे आंखों में भर लेने का आमंत्रण भी देती है.
अपनी सीमाओं के 44% वन क्षेत्र से घिरे छत्तीसगढ़ और इसी छत्तीसगढ़ के 32 वे जिले मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी -भरतपुर (एम सी बी) का उत्तरी क्षेत्र सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला को कई हिस्सों में बाँटकर देवगढ़ पहाड़ियों एवं मुरैलगढ़ पहाड़ियों का निर्माण करती है. उंची नीची पहाड़ियों का इसका सौंदर्य इतना खूबसूरत दिखाई देता है कि लगता है कि किसी तरह इसे हमेशा के लिए कैद कर लिया जाए. इन्हीं पहाड़ियों के पास से गुजरते हुए जब पहाड़ी से निकलते छोटे छोटे झरने का जल स्रोत बाहर की दुनिया देखने बाहर निकलती है तब पानी की धार के आगे हाथ फैला कर अंजूली में जल भरने की खुशी जीवन की अविस्मरणी खुशियों में शामिल पल होता है वही किसी नन्हे बच्चे की तरह स्वच्छ जल की पतली धार जब छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ती है तब कौन जानता है यही पतली धार अपनी सखी सहेलियां को साथ लेकर आगे बढ़ेगी और विशाल नदी का स्वरूप ग्रहण कर पहाड़ों पर चलती होती धीरे-धीरे आगे बढ़कर अपनी रोमांचक यात्रा में कब अचानक नीचे गहराई में कूदकर एक जलप्रपात कबना देगी किसी को पता नहीं होता.
….. सतपुड़ा पहाड़ी श्रृंखला की पहाड़ी मुरैलगढ़ पर बसे भरतपुर विकासखंड के आदिवासी ग्राम धोबा ताल के पास एक छोटे जलधारा के रूप में बनास नदी निकलती है जो अपने आसपास छोटे-छोटे नदी नालों की जल धाराओं को अपनी बाहों में समेट कर अपनी धारा के साथ मिला लेती है .आगे चलकर सोन नदी के प्रवाह में स्वयं को विलीन कर देती है. यही सोन पवित्र गंगा नदी के साथ समुद्र तक की यात्रा तय करती है. अपनी लंबी यात्रा के दौरान बनास नदी पहाड़ पर चलते-चलते अचानक अपनी धारा के साथ पहाड़ियों से सैकड़ो फुट नीचे उतरकर अपनी विशाल धाराओं के साथ यहां लंबे चौड़े “रमदहा” जलप्रपात का निर्माण करती है. नदी की विशाल बाहों मे भरी जलराशि का गिरता जलप्रपात अपने चारों ओर पानी की उड़ती छोटी-छोटी बूंद की मनोरम धुंध ऐसा आभास कराती है मानो कोई बादल अभी अभी छूकर गुजर गया हो . यही पानी की उड़ती बूंदें अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ आपको भी भिगोती हुई गुदगुदा कर एक नए संवेदना का एहसास करती है. इस जलप्रपात में पहुंचने के बाद कई घंटे बैठने के बाद भी आप अपनी नजरें इस प्राकृतिक सौंदर्य से नही हटा पाते .. ऐसा लगता है कि यहीं बैठकर जलधारा के गिरने का आकर्षण और उसकी बूंद से निकलने वाली ठंडक को अपने भीतर महसूस करते रहें.
रमदहा जलप्रपात का यह मनोरम स्थल छत्तीसगढ़ प्रांत की उत्तरी सीमा जनकपुर (भरतपुर) से लगभग 35 किलोमीटर दूर है. यहां से मध्य प्रदेश की सीधी एवं सिंगरौली जिले के साथ-साथ उत्तर प्रदेश का हिस्सा भी जुड़ता है जिससे आसपास के प्रदेश के गांव और शहरों से पर्यटकों को रमदहा जलप्रपात लगातार आकर्षित करता रहा है यही कारण है समय के अनुसार यहां पर्यटकों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है.रमदहा जलप्रपात की जलधारा लगभग 60 फीट चौड़ाई की कई छोटी धाराओं में विभाजित होकर नीचे गिरती है . पहाड़ी रास्ते से चलती नदी अपने साथ चट्टानों की बारीक रेत भी लेकर चलती है और जलप्रपात के साथ रेत के लंबे चौड़े मैदान का निर्माण करती है जिसमें अपने प्रिय साथियों के साथ खेलना दौड़ाना और गीली रेत पर पहुंचकर छोटे-छोटे रेत के घर तथा कलाकृतियाँ बनाकर जीवन के अनछूए एहसास को देने और जीवन के लिए संग्रहित करने की प्रतिभा केवल इस जलप्रपात में संभव है.
वनांचल के बीच हरी भरी हरियाली से लदी इस जलप्रपात के नीचे चोर बालू की उपस्थिति हमारी खुशियों को कुछ ही समय में मातम में बदल सकती है अतः इसके प्रति सावधान रहे. इस जलप्रपात की धारा के नीचे पहुंचकर नहाने का आपका लोभ आपको नीचे चोर बालू के क्षेत्र में पहुंचा देता है जहां धारा के साथ ऊपर से गिरते बारीक रेत ( बालू ) में आपका पैर फंस जाता है और ऊपर से आने वाले रेत और पानी की धारा आपके पैर को रेत में और गहराई तक फंसा देती है. इस रेत में आप जितना पैर निकालने की कोशिश करते हैं उतना ज्यादा फँसते चले जाते हैं इसलिए जलप्रपात का सौंदर्य दूर से ही देखना उचित है या जलप्रपात से दूर बहने वाली नदी की धार मे नहाने का आनंद लेना उचित है. जलप्रपात की धारा के नीचे चोर बालू ने अब तक लगभग 10 पर्यटकों की यहां समाधि बना दी है.
पर्यटकों के लगातार आवागमन एवं प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के विकास को ध्यान में रखते हुए पिछली कांग्रेस सरकार ने इस अंचल के पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए काफी कार्य किया है कच्ची सड़कों को पक्की सड़क बनाकर पहूँच को सहज बना दिया गया है. जनकपुर -कोटा डोल मार्ग (राज्य मार्ग क्रमांक 03 ) से आगे बढ़कर 18 किलोमीटर पहुंचकर बड़वा कला गाँव से दाहिनी ओर अर्थात पूर्व दिशा में आगे बढ़ना है जो आगे आपको करवा गांव से होते हुए बेनीपुर गांव तक पहुंचा देगी. इसी बेनीपुर गांव के अंतिम छोर में दाहिनी और बोर्ड दिखाई देता है जिसमें लिखा है “रमदहा जलप्रपात” इसी मार्ग पर आगे चलते हुए लगभग तीन किलोमीटर की यात्रा पूर्ण करते ही रमदहा जलप्रपात का सुंदर आकर्षण हमें दूर से ही दिखाई देने लगता है.
अपने चारों ओर ऊंचे पेड़़ का आकर्षण समेटे रमदहा क्षेत्र का आकर्षण इसके विकास हेतु निर्मित स्वागत द्वार से ही प्रारंभ हो जाता है. सीमेंट कांक्रीट से बाँस के डिजाइन की कारीगरी के कलाकार के प्रति श्रद्धा से भर देती है . स्वागत द्वार के दोनों और प्रहरी के लिए स्थल बनाए गए हैं आगे सड़क मार्ग के दोनों ओर सीमेंट कंक्रीट के बने बाँस की कलाकृतियों की फेंसिंग व्यवस्था जहां सुरक्षा का वातावरण पैदा करती है वही इस रास्ते को खूबसूरती प्रदान करती है. यात्रा की थकान कम करने के लिए यदि कुछ देर ठहरने और बैग में रखें पानी पीने का मन करें तब इसी शिल्प में लकड़ी डिजाइन में बने सोफा बेंच में बैठकर आप अपने साथ चलने वाले बच्चे और बुजुर्ग बैठकर सुस्ता सकते हैं नदी के बहते पानी के किनारे वन भोज का आनंद लेने के लिए या कुछ देर प्रकृति के नजारों को देखने के लिए छोटे-छोटे आकर्षक (पगौड़ा) झोपड़ियां बना दी गई है जहां बैठकर आप प्राकृतिक नजारों और दृश्यों को अपने परिवार सहित कैमरे की तस्वीरों में कैद कर सकते हैं. इस मार्ग पर चलते हुए दूर से ही पेड़ों की पत्तियों के बीच रमदहा जलप्रपात का दृश्य आपके पैरों की गति बढ़ा देता है. जलप्रपात और नदी का बहता पानी हर कदम पर आपको नई ऊर्जा प्रदान करता है. ठीक जलप्रपात से 300 मीटर दूरी पर बनाया गया विश्राम स्थल एवं कैंटीन आपकी सुविधा के लिए उपलब्ध है अपनी सुंदर शिल्प कला से बनी यह झोपड़ी नुमा विश्राम स्थल बांस से बनी झोपड़ी का एहसास कराती है. यहां के आकर्षक वातवरण में बैठकर कुछ देर सुस्ताने का आपका भी मन हो जाएगा क्योंकि यहां से जलप्रपात पूरी तरह दिखाई पड़ता है. आगे बढ़कर आप जलप्रपात से 100 मीटर दूरी तक जाकर उड़ते पानी की बूंदों और धुंध का आनंद ले सकते हैं किनारे पहुंचकर रेत की टीलों पर अपनी कलाकारी को प्रदशित कर सकते हैं . परिजनों के नाम लिखकर पानी की धार के साथ उसे बार-बार लिखकर मिटते देख सकते हैं और याद कर सकते हैं उन पंक्तियों को जिसमें किसी कवि ने लिखा था –
* * रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
रेत पर लिखा कुछ भी रहेगा नहीं
तुमने पत्थर का दिल मुझको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगी मिटेगा नहीं * *
अपने खूबसूरत यादों के साथ यहां के प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छता का ध्यान आप भी जरूर रखें कचरा न फैलाएं एकबार उपयोग वाली प्लास्टिक पन्नी एवं पानी बोतल की बजाय प्रकृति में नष्ट होने वाले कागजों का उपयोग करें. ताकि प्रकृति की यह खूबसूरत वादियां हम इसी स्वरूप में अपनी आगे वाली पीढ़ी को सौंप सके. यहां पर स्वच्छता का जगह-जगह ध्यान रखा गया है यही कारण है कि महिला एवं पुरुष शौचालय का भी निर्माण स्वच्छता को ध्यान में रखकर बनाया गया है हालांकि अभी कैंटीन प्रारंभ नहीं हुई है संभवत नवंबर दिसंबर में जब पर्यटकों की आवाजाही तेज हो जाएगी उसका संचालन नियमित रूप से प्रारंभ हो जाएगा. ग्राम समितियां को यहां के प्रबंधन का कार्य सोपा गया है लेकिन ग्राम समितियां को अच्छा कार्य संचालन करने के लिए नियमित आय के श्रोत होना आवश्यक है जो पर्याप्त पर्यटकों के आवजाही से ही संभव है. नवंबर दिसंबर के महीना में पर्यटकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और यह समय उचित है कि ग्राम समितियां अपना कार्य प्रारंभ कर सके क्योंकि ज्यादा पर्यटकों के आने से ग्राम समितियां अपने न्यूनतम खर्च के आय के स्रोत पैदा कर सकेंगे
देर से ही सही लेकिन रमदहा जलप्रपात को पिछली कांग्रेस सरकार ने पर्यटन के लिए एक संसाधन युक्त आकर्षक स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है. एक छोटा मंदिर पर्यटकों की आध्यात्मिक चेतना को ध्यान में रखकर बनाया गया है जहां आप ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं किनारे किनारे चलती पहाड़ियों पर वृक्षों की लंबी श्रृंखला और नीचे बनास नदी का कल कल बहता पानी जहां एक हो शांति का एहसास कराता है वहीं इसकी खूबसूरती बरबस ही इस दृश्य को कैमरे में कैद करने को उत्साहित करती रहती है.
रमदहा जलप्रपात छत्तीसगढ़ पर्यटन की प्रामाणिक सूची में शामिल है. इसके आकर्षण की गूंज अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी सुनाई पड़ती है यहां तक पहुंचाने के लिए वायु मार्ग से रायपुर या बिलासपुर पहुंचकर रेल मार्ग या सड़क मार्ग से आपको अनूपपुर होते हुए मनेन्द्रगढ़ पहुंचना होगा. एमसीबी जिले का मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से आगे जनकपुर 110 किलोमीटर की यात्रा के लिए स्वयं की गाड़ी या टैक्सी से आपको जनकपुर तक पहुंचना होगा हालांकि यहां मनेन्द्रगढ़ से जनकपुर तक की बस सुविधा उपलब्ध है किंतु जनकपुर में अच्छे होटल नहीं होने के कारण आपको वहां रुकने में परेशानी हो सकती है है इसलिए सड़क मार्ग में टैक्सी ही एक उपयुक्त साधन आपकी रमदहा यात्रा के लिए कहीं जा सकती है. जनकपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर जनकपुर- कोटाडोल मार्ग (राज्य मार्ग क्र.03) से होते हुए 18 कि.मी. दूरी पर बड़वा कला गांव और उसके बाद दाहिनी ओर सड़क से करवां फिर बेनीपुर होते हुए रमदहा जलप्रपात तक पहुंचा जा सकता है. इसी प्रकार मनेन्द्रगढ़ से जनकपुर मार्ग पर पड़ने वाले बहरासी ग्राम के तिराहे से भी एक छोटे रास्ते के द्वारा लगभग 10 किलोमीटर की यात्रा तय कर आप रमदहाजलप्रपात तक पहुंच सकते हैं. लेकिन इस मार्ग में दो छोटी पहाड़ी नदियां सिंघौर और बनास आपको पार करना होगा इन नदियों पर अब तक पुल नहीं बनने के कारण अपनी बड़े चके की गाड़ी या टैक्सी से ही आप यह यात्रा भी पूरी कर सकते हैं. यह छोटा रास्ता आपको जून महीने से लेकर अक्टूबर महीने तक नदियों में ज्यादा पानी होने के कारण बंद हो जाता है इसलिए इस मार्ग का उपयोग केवल 8 महीने ही किया जा सकता है. इस यात्रा के बीच में अपने साथ कुछ नाश्ते या खाने की व्यवस्था एवं पीने के लिए पानी आपको साथ रखना होगा क्योंकि यहां ऐसी व्यवस्थाएं रमदहा जलप्रपात के आसपास नहीं मिल पाएगी लेकिन आपकी अपनी छोटी व्यवस्था आपको खुशी महसूस कराएगी और यात्रा के बीच आपको चिंता मुक्त रखेगी.
जनकपुर में रुकने के लिए शासकीय विश्रामगृह एवं वन विभाग के विश्रामगृह के साथ-साथ छोटे लाज उपलब्ध हो सकते हैं. भोजन की व्यवस्था के लिए एक दो छोटे होटल खुल गए हैं. यदि सादे स्थानीय ग्रामीण भोजन में आपकी रुचि है तब भरतपुर में सैकड़ो वर्ष पुराने चांग देवी के महामाया मंदिर पहुंचकर आप जहां देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं वही एक छोटी राशि भुगतान करने पर पुजारी जी के द्वारा दोपहर भोजन प्रसाद की व्यवस्था की जाती है जो फोन नंबर पर अग्रिम सूचना देकर आप माता का आशीर्वाद एवं भोग प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं. आपके इस यात्रा का सुखद आनंद एवं रुकने की व्यवस्था के लिए मनेन्द्रगढ़ में अच्छे होटल भोजन एवं चाय नाश्ते के प्रबंध की उचित व्यवस्था है व्यावसायिक नगरी होने के कारण यहां से आप अपनी यात्रा सुबह प्रारंभ कर शाम तक वापस भी आ सकते हैं. मनेन्द्रगढ़ से जनकपुर मार्ग के रास्ते पर यही बनास नदी कई स्थानों पर आपके सामने से गुजरती है, जिस पर अब पुल बन जाने से रास्ता अब आसान हो गया है. ध्यान रखें वर्तमान समय में रमदहा जलप्रपात का स्वरूप बहुत बदल चुका है इसलिए यदि कभी आप रमदहा जलप्रपात देखने गए होंगे तब भी आप एक बार फिर से रमदहा का सौंदर्य देखने के लिए जरूर पहुंचे. आपको रमदहा जलप्रपात में एक क्रांतिकारी परिवर्तन महसूस होगा
भगवान श्री राम के वनवास काल की स्मृतियों से जुड़ी दंडकारण्य का यह वनांचल क्षेत्र अपनी प्राकृतिक छटा जंगल पहाड़ और झरनों के अलौकिक सौंदर्य के साथ-साथ आपको बार-बार बुला रहा है यह वही झरने है जहां पर भगवान श्री राम ने ऋषि मुनियों के साथ अपने चौमासे बिताये हैं और इस क्षेत्र के राक्षसों का वध किया है. देव संस्कृति एवं ऋषि संस्कृति को अभय दान देकर उन्होंने प्रकृति में भी अपनी दार्शनिकता भरी है. संतों एवं ऋषियों की तपस्थली के रमदहा जलप्रपात देखना आपके जीवन की ऐसी घड़ी होगी जिसे आप कभी भी भूल नहीं पाएंगे यह हमारा विश्वास है. बस फिर क्या है बनाइये योजना और निकल जाइए अपने मित्रो और परिवार सहित इस रमदहा जलप्रपात के पर्यटन के लिए. (धन्यवाद)
फिर मिलेंगे अगले पर्यटन स्थल पर
राजेश सिन्हा 8319654988