अमृत धारा के जंगलों में रामायण काल के ऋषि वामदेव का आश्रम का सिद्ध स्थल
(जहां भगवान श्री राम माता सीता सहित आशीर्वाद लेने पहुंचे थे)
लेखन एवं प्रस्तुति- बीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
मनेंद्रगढ़ एमसीबी :- छत्तीसगढ़ की भूमि भगवान राम की ननिहाल कोशल राज्य से लेकर वनवासकाल के तपस्वी भगवान श्रीराम की कई गाथाओं से भरी पड़ी है. इसी छत्तीसगढ़ का उत्तरी क्षेत्र वर्तमान छग के मनेन्द्रगढ़ जिले के जनकपुर और भरतपुर का हिस्सा रामायण के अरण्यकांड का अहम् हिस्सा था. जंगलों पहाड़ों के बीच वनवासी भगवान श्री राम का जीवन मानव के लिए विषम परिस्थितियों में जीवन जीने के कई दृष्टांत प्रस्तुत करता है बाल्मिक रामायण के अरण्यकांड के छठे सर्ग में अनेक ऋषि मुनियों के नाम दिए हुए हैं जो छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र के घनघोर जंगलों के बीच निवास करते थे जिसमें जटाशंकर में पुलस्त मुनि के पुत्र ऋषि निदाध एवं हसदो नदी के तट पर ऋषि वामदेव के आश्रम की जानकारी दी गई है. जहां भगवान श्रीराम आशीर्वाद लेने एवं शक्ति संपन्न ऋषियों से शक्ति प्राप्त करने उनके आश्रम तक पहुंचे थे.
रामायण काल में पूर्वी सरगुजा अर्थात सामरी पाट का क्षेत्र झारखंड तक फैला हुआ था जहां असुर राज शंबरासुर का निरंकुश शासन चलता था. इसी से जुड़ा वर्तमान सरगुजा का पश्चिमी भाग जो कोरिया मनेंद्रगढ़ एवं सूरजपुर जिले में विभाजित हो गया है अपनी नैसर्गिक सुंदरता के कारण देव भूमि का क्षेत्र कहलाता था. ऋषि मुनियों के आश्रम एवं शक्ति स्थल के केंद्र के रूप में स्थापित इस क्षेत्र पर ज्यादा राक्षसों के आक्रमण होते रहते थे यज्ञ स्थलों को नष्ट करना एवं यज्ञ हवन और शुभ कार्यों में विघ्न डालना उनके दैनिक क्रियाकलापों में शामिल था इसी कारण ऋषि मुनियों ने इन आपत्तियों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को भगवान राम के रूप मे अवतरण के लिए आवाहन किया था.
दंडकारण्य का यह विशाल भूभाग भारतवर्ष के उत्तर एवं दक्षिण को पृथक करता है बाल्मिक रामायण के अनुसार देवासुर संग्राम में शंबरासुर के मारे जाने के बाद यह क्षैत्र रावण के अधिपत्य में आ चुका थाऔर इस क्षेत्र मे प्रवेश किये बिना कोई भी व्यक्ति उत्तर से दक्षिण के क्षेत्र या श्रीलंका तक नहीं पहुंच सकता था यही कारण है कि भगवान राम को वनवासी वेशभूषा में इस दंडकारण के राक्षसों को समाप्त कर शांति स्थापित करना आवश्यक हो गया था .ताकि आगे का मार्ग प्रशस्त हो सके. वर्तमान छत्तीसगढ़ के जनकपुर क्षेत्र के छतौड़ा आश्रम में भगवान श्री राम ने ऋषियों के साथ अपना चौमासा बिताया और योजना बनाकर यहां के आसपास के जंगलों में आक्रमणकारी राक्षसों का वध कर दिया. प्राचीन समय में नदी मार्ग ही ग्रामीणों के आवागमन के मार्ग हुआ करते थे क्योंकि उनके उद्गम स्थल एवं अंतिम स्थल ज्ञात होते थे यही कारण है कि भगवान श्रीराम ने छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में मवई नदी के तट पर सीतामढ़ी हर चौका से आगे बढ़कर इसी नदी मार्ग के द्वारा आगे की यात्रा में घघरा गांव के रापा नदी जो आगे बनास में मिल जाती है वहां भी एक पड़ाव डाला लेकिन शीघ्र ही छोटे पड़ाव के बाद आगे बढ़ते हुए छतौड़ा आश्रम पहुंच गए . ऋषि मुनियों का क्षेत्र होने के कारण सभी के आशीर्वाद एवं युद्ध नीति पर ज्ञान अर्जन करने के अपने उद्देश्य के अनुरूप वे आगे बढ़े बाल्मिक रामायण में ऋषि वाल्मीकि ने इस क्षेत्र में निवास करने वाले मिहिमुंडा,पुतस्त, जैसे 21 मूर्धन्य ऋषियों के नाम दिए हैं जिनके आशीर्वाद हेतु तपस्वी भगवान श्री राम छतौड़ा के बाद आगे चलते हुए हस्दो नदी के तट पर ऋषि वामदेव का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और आगे बढ़कर जटाशंकर गुफा में निवासरत सर्वशक्ति संपन्न, दिव्यास्त्रों के निर्माता, मंत्र दृष्टा, त्रिकालदर्शी पुलस्त मुनि के पुत्र ऋषि निदाध से मंत्र शक्ति का ज्ञान लेने पहुंचे थे.
छत्तीसगढ़ में श्री राम शोध संस्थान के प्रणेता डॉ मन्नू लाल यदु के अनुसार रामायण कालीन ऋषि वामदेव का आश्रम हसदो नदी के किनारे था जो संभवत हंसदो नदी पर बने अमृत धारा जलप्रपात के आसपास कहा जाता है किंतु छतौड़ा,घघरा और सीतामढ़ी हर चौका की तरह पत्थरों से बने ऋषि वामदेव के किसी आश्रम की जानकारी अब तक यहां ज्ञात नहीं है किंतु यह जिज्ञासा एवं कौतूहल का विषय है कि ऐसे सिद्ध ऋषि का आश्रम एवं सिद्ध स्थल हसदो नदी के किनारे कहां पर रही होगी इन्हीं के समाधान के लिए एक दल अमृत धारा के पास के जंगलों में यहां वहां भटकता रहा जिसमें लेखक के साथ शामिल हो गए पत्रकार प्रवीण निशि,सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र श्रीवास्तव ,पुजारी पंकज वैष्णव, सिद्ध संंत श्रीसंतशरण महाराज के शिष्य ललन यादव हमारे साथ थे.
जानकारी के अनुसार वर्तमान समय में सिद्ध संत महात्मा भी अपने चौमासा स्थल बिताने या आश्रम और सिद्ध मंदिरों के निर्माण के लिए ऐसे ही सिद्ध स्थलों की तलाश करते हैं जो ऋषि मुनियों की तपस्या एवं सिद्ध स्थल रही हो ऐसे ही स्थलों की तलाश में गायत्री तीर्थ हरिद्वार शांतिकुंज की स्थापना के पूर्व युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जब स्थल चयन के लिए हरिद्वार के कई स्थानों पर भ्रमण कर रहे थे तब कई स्थान के भ्रमण के पश्चात अंत में अपने सहयोगियों के साथ वह एक दलदली गंगा नदी का किनारे की भूमि पर खड़े हुए.और इसे गायत्री तीर्थ भवन स्थल बनाने का निश्चय किया. सहयोगियों की जिज्ञासा शांत करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्थल प्राचीन काल में किसी सिद्ध ऋषि मुनि की सिद्ध स्थली रही है इस भूमि पर बना आश्रम विश्व को अध्यात्म और शांति का संदेश देगा और आज शांतिकुंज हरिद्वार करोड़ों जनमानस का प्रमुख तीर्थ के रूप में विख्यात है जो तप एवं साधना के लिए विश्व भर में ऊर्जा केंद्र के रूप में जाना जाता है.
इसी तरह के उद्देश्य से अपना चौमासा बिताने और यज्ञ हवन करने की आशा लिए अपने चौमासा आश्रम के लिए स्थल तलाशने छपरौर आश्रम के सिद्ध संत श्री संत शरण महाराज हसदो नदी के तट पर जंगलों की खाक छनते रहे हैं. 1999 में उन्होंने जंगल के अलग-अलग स्थलों पर किसी सिद्ध ऋषि मुनि की प्राचीन आश्रम के स्थान को ढूंढने का प्रयास किया और अंत में जो स्थल चयन किया गया वह भूमि सिद्धि से भरपूर स्थल है. हसदो नदी के वर्तमान जलप्रपात से लगभग 01 किलोमीटर दूर जंगल में हसदो आगमन के धारास्थल की ओर है. उनके शिष्य ललन यादव के साथ-साथ एक लंबी यात्रा कर हम उस स्थल पर पहुंचें और उस स्थल की मिट्टी को हमने भी प्रणाम किया. आसपास जानकारी लेने पर ग्राम वासियों से पता चला कि ककिवदंतियों में यही स्थल ऋषि वामदेव का आश्रम स्थल था जहां भगवान राम सीता एवं लक्ष्मण ने यहाँ पहुंच कर उनका आशीर्वाद लिया था एवं उनके साथ कुछ समय बिताया था. यही से अपनी आगे की यात्रा में बढ़ते हुए ऋषि निदाध के आश्रम जटाशंकर तक पहुंचे थे. त्रिकालदर्शी मंत्रदृष्टा ऋषि निदाध के आश्रम में उन्होंने तरकश मे रखे वाणों को मंत्रशक्ति से जागृत करने की शिक्षा पाई थी. अपनी आगे की यात्रा में उन्होंने देवगढ़ पहाड़ी में जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुंचकर आशीर्वाद लिया था.
ऋषि वामदेव के सिद्धि से तप्त इस स्थल पर संत श्री संत शरण महाराज जी ने दो चौमासा बिताया है एवं इस सिद्ध स्थल की ऊर्जा को महसूस किया है. इसी ऊर्जा को महसूस करने संत शरण महाराज के शिष्य श्री ललन यादव जी को एवं अमृत धारा में नर्मदा शिवलिंग मंदिर के सहयोगी पुजारी पंकज वैष्णव जी एवं नरेंद्र श्रीवास्तव को उस स्थल की मिट्टी साधक निशि जी ने पहले स्वयं उठाई और फिर पुजारी जी को उठाकर दी और मुट्ठी बंद कर उसे महसूस करने की बात कही इसमें पुजारी पंकज ने बताया कि मुट्ठी में बंद मिट्टी मुट्ठी के अंदर अपनी शक्ति से फूटती है और ऐसा लगता है की यह फटफट की आवाज के साथ फूटकर बाहर निकलने की कोशिश करती है . बहरहाल जंगल के बीच स्थित इस पत्थरों की चट्टानों से बना यह एक ऊंचा स्थान है जो आसपास जंगली पेड़ पौधों एवं जड़ी बूटियां से गिरा हुआ क्षेत्र है शिष्य ललन यादव ने बताया कि अपने चौमासा के दौरान सिद्ध संत श्री संत शरण महाराज ने एक काले नाग को उसके बिल तक आगे आगे चलकर पहुंचाया था और क्षमा मांग कर कहा था कि आप रास्ता भटक कर इस स्थान पर आ गए हैं यह आपके लिए उचित नहीं है इसी तरह आश्रम के सामने सुबह 4:00 बजे खडे शेर के दर्शन भी शिष्यों ने उनके साथ किए थे जो स्वयं कुछ समय बाद अंतर ध्यान हो गया था. महाराज जी ने बताया कि यह दिव्य आत्माएं हैं जो दर्शन एवं स्थल की शक्ति पूजा के लिए यहां आती हैं.
हसदो तट पर स्थित इस स्थल के साथ किवदंतियों में कही गई वर्णित ऋषि वामदेव आश्रम के स्थल होने में कितनी सत्यता है यह समय और काल के पन्नों में तब तक के लिए कैद है जब तक इसकी स्पष्ट पुष्टि नहीं हो जाती, लेकिन सिद्ध संत श्री संत शरण महाराज के हवन कुंड एवं आश्रम से यह बात तय हो जाती है कि यह एक सिद्ध स्थल रहा होगा और इसके विकास के लिए आध्यात्मिक संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए जिसमें एक आश्रम के निर्माण के साथ-साथ यह एक आस्था स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. इस स्थल की ऊर्जा को आस्थावान जनमानस यहां पहुंचकर आशीर्वाद के रुप में प्राप्त कर सकते हैं.
राष्ट्रीय राजमार्ग 43 मे मनेन्द्रगढ़ मुख्यालय से कटनी – गुमला मार्ग पर लगभग 19 कि मी. दूर मलयागिरी चंदन के पनपते वन वनों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है और हसदो नर्सरी के समीप नागपुर के ग्राम लाई में एन एच 43 छोड़कर बांई ओर 8 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व दिशा में हसदो नदी का नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण अमृतधारा जलप्रपात का लगा हुआ बोर्ड आपका ध्यान आकर्षित करता है जंगलों के बीच ऊंची नीची पहाड़ियों से चलते हुए 8 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद जब आप अमृत धारा के विशाल जलप्रपात के नजदीक पहुंचते हैं तब पहाड़ों से बहकर आती नदी की चौड़े पाट की धारायें आपको मंत्र मुग्ध कर देता है जहां पत्थरों के टूट जाने से अलग-अलग हिस्सों में विभाजित हसदो नदी का विशाल पाट अपनी जल राशि की बाहें फैलाए लगभग 90 फीट नीचे गिरकर एक सुंदर जलप्रपात का निर्माण करती है. यही से जंगलों के बीच गुजरते हुए लगभग 01 किलोमीटर भीतर अंदर नदी के जलधारा के आगमन दिशा में सिद्ध संत की आराधना स्थली और मान्यताओं के अनुसार ऋषि वामदेव का आश्रम स्थल है. इस सिद्ध स्थल पर पहुंचकर आप भी एक विशेष ऊर्जा को महसूस कर सकेंगे. इन्हीं चट्टानों पर यहां मृत – संजीवनी जैसी जंगली जड़ी बूटियां उपलब्ध है जिसमे चिपके रेत कणों को साफकर मिश्री के साथ मिलाकर श्री संत शरण महाराज स्वयं इसे पीते थे और स्वयं मे शक्ति और ऊर्जा महसूस करते थे। यह उनके नित्य प्रति के पूजापाठ एवं यज्ञ हवन के बाद सुबह के पेय में शामिल था.
सौर ऊर्जा एवं विद्युत व्यवस्था के साथ-साथ आकर्षण के बगीचे एवं बच्चों के झूलों की व्यवस्था ने इसे और आकर्षक बना दिया है जहां बच्चों के खेलने कूदने के लिए भी पर्याप्त संसाधन मौजूद है . यहाँ स्थापित भोले शंकर के मंदिर में आप पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं कहा जाता है कि इस मंदिर मे स्थापित नर्मदेश्वर शिवलिंग आपके जल डालने से नित्य प्रति धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है इसलिए आप जब भी अमृत धारा परिवार सहित जाएं तब इस मंदिर के साथ-साथ इस सिद्ध स्थल की मिट्टी के दर्शन जरूर करें और माथा टेक कर इस स्थल की ऊर्जा ग्रहण करने का प्रयास करें. हमारा विश्वास है कि यहां पहुंचकर आप एक अलग चैतन्यता महसूस करेंगे
बस इतना ही………….
फिर मिलेंगे किसी अगले पर्यटन पर
राजेश सिन्हा 8319654988