जीवन के लिए जरूरी जैव विविधता के संरक्षण की ओर एक कदम, अमृतधारा का बायोडायवर्सिटी पार्क” पर्यटन एवं
पर्यावरण चिंतन- 08 वीरेंद्र श्रीवास्तव की कलम से
मनेंद्रगढ़ /एमसीबी:- प्रकृति द्वारा प्रदत्त जंगल पहाड़ झरने नदियां और वनों की अकूत संपदा के पास से जब हम गुजरते हैं तब एक विशेष सुख का अनुभव करते हैं क्या हमने कभी सोचा है कि जब यह जंगल नहीं होंगे तब क्या होगा क्या मानव जीवन इस प्रकृति के बिना संभव है यदि नहीं तब इसके लिए हम क्या कर रहे हैं और हमें क्या करना चाहिए ऐसे ही चिंतन के समाधान ढूंढने की एक कोशिश है हसदो नदी के अमृतधारा जलप्रपात के पास जैवविविधता पार्क……
रात्रि के अंधेरे मे दिखाई देने वाले ब्रह्मांड की निहारिका,और आकाशगंगा का सौंदर्य जितना सुखद और सुंदर दिखाई पड़ता है उतना ही जटिल है जिसकी संरचना की कड़ियां आज हजारों वर्ष के वैज्ञानिक विकास के बाद भी हम ढूंढ़ नहीं पाए हैं. आसमान में चमकते सितारों के बीच जब हम पृथ्वी की ओर देखते हैं तब हमें महसूस होता है कि हम इस ब्रह्मांड की सबसे छोटी इकाई है हमारा सौरमंडल जिसमें एक सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के साथ-साथ नवग्रह घूमते हैं यह पृथ्वी ही है जिसमें मानव जीवन और जीव जंतु रहते हैं अब तक की जानकारी के अनुसार मानव जैसे बुद्धिमान जीव सहित पशु पक्षी जानवर एवं पेड़ पौधों से भरी हमारी पृथ्वी जैसे किसी अन्य ग्रह की खोज नहीं हो पाई है वैज्ञानिक लगातार किसी ऐसे ग्रह की खोज में जुटे हैं जहां मानव को बसाया जा सके लेकिन यह खोज अब तक अधूरी है.
पर्यावरण चिंतन की इस कड़ी में आज शामिल है पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति और उसका जीवन काल. आज नए-नए वैज्ञानिक प्रयोग मानव की सुख सुविधाओं को और बढ़ाने की दिशा में लगातार चिंतित दिखाई देते है लेकिन वह मानव जीवन पृथ्वी पर कब तक रहेगा इस बारे में चिंता कम दिखाई देती है. विश्वस्तर पर छोटे-छोटे प्रयास प्रारंभ किए गए हैं जो अभी भी पर्याप्त नहीं है. 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित सम्मेलन में कई देशों ने संयुक्त रूप से पर्यावरण सुरक्षा के चिंतन एवं बचाव के दिशा तय करने का संकल्प लिया जिसमें आद्र भूमि की सुरक्षा एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने जैसे गंभीर मुद्दों पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. डेढ़ सौ से अधिक देशों से प्रारंभ इस संगठन में आज लगभग 200 देश इस चिंतन में शामिल हो गए हैं 1987 के चिंतन एवं 1992 के चिंतन में यह महसूस किया गया की आर्थिक विकास के लिए पारिस्थितिकी अर्थात जंगल पहाड़ जानवर जीव जंतु और पेड़ों के जीवन को बचाए रखना आज की जरूरत है इस पृथ्वी पर प्रकृति के द्वारा प्रदत्त संसाधन को कम से कम नष्ट किया जाए. हम अपनी जरूरत को इतनी सीमा में बांध दें कि आने वाली पीढ़ी को उनके जीवन के लिए प्रकृति द्वारा प्रदत्त आवश्यक संसाधन मिल सके. आज विश्व के सभी देश इस विषय पर एक मत हो चुके हैं कि जैव विविधता के संरक्षण कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का जीवन की सुख सुविधाओंके लिए उत्सर्जन या औद्योगिक उत्सर्जन, मानव जीवन एवं पृथ्वी के अस्तित्व पर बहुत बड़ा खतरा है यह खतरा जब तक जीवन की समाप्ति तक पहुंचे उसके पहले हमें सचेत हो जाना पड़ेगा.
भारतीय उपमहाद्वीप में सभ्यता और इसके विकास का वनों से गहरा नाता है हमारी संस्कृति में वनों के संरक्षण के लिए पूजा पाठ के विधान रखकर भी इसे बचाने और बढ़ाने की चेतना से जोड़ रखा है हमारे आदि पुरुष गुरु ऋषि मुनियों ने इसे पूजा पद्धति से इसलिए जोड़ दिया कि समाज का हर वर्ग पेड़ पौधों जानवरों और जीव जंतुओं को हानि न पहुंचाएं क्योंकि हम अपने आराध्य को छति नहीं पहुंचाते हैं. पूजा पाठ के इस चिंतन को जोड़ना पेड. पौधो और वनों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था. इसी सोच ने देश के आदिवासी समाज को जल जंगल और जमीन के संरक्षण का मूल मंत्र दिया, जिसकी सुरक्षा उनकी संस्कृति और जीवन के हिस्सों से जुड़े हुए हैं. किन्तु आर्थिक विकास के नाम पर जैव विविधता पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को सीमा से ज्यादा नष्ट किया जा रहा है. विश्व स्तर पर आर्थिक विकास की अंधी प्रतिस्पर्धा हमें उस ब्लैक होल की काली सुरंग तक ले जा रही है जिससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं है जहां केवल पृथ्वी और मानव जीवन की समाप्ति ही उसका अंतिम छोर है.
पशु पक्षियों और जंगलों के बीच अपना जीवन बिताने वाले हमारे ऋषि मुनियों का सूक्ति वाक्य है “प्रकृति है तब मानव है” और इसी पृथ्वी और मानव को बचाने के लिए जरूरी है पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को उसके प्राकृतिक स्वरूप में बचाए रखना. विश्व स्तर पर इस चिंतन को सभी देश स्वीकार कर चुके हैं. सरकारें इस तरफ छोटे-छोटे प्रयास कर रही है जिसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, किंतु चिंतन और समाधान की दिशा में उठाया गया एक कदम भी आशाओं से भरा होता है. ऐसी ही एक कोशिश को सराहने और पर्यावरण चिंतन का हिस्सा बनाने हम चल रहे हैं अमृतधारा बायोडायवर्सिटी पार्क. हमारे साथ इस यात्रा में शामिल हैं सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक परमेश्वर सिंह , रिटायर्ड कृषि विज्ञानी पुष्कर तिवारी, और केल्हारी रेंज के रेंजर लवकुश पांडे.
मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से लगभग 25 किलोमीटर दूर नदी के
सर्पाकार बहाव के कछार पर विकसित होते वन्य प्रजातियों को सहेजने हेतु वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग मनेन्द्रगढ़ द्वारा अमृत धारा मार्ग पर बायोडायवर्सिटी पार्क का निर्माण 2019-20 मे किया गया है. जैव विविधता को मानवीय हस्तक्षेप से दूर रखकर इसके प्राकृतिक विकास और संरक्षण की दिशा में यह एक अच्छी पहल है. बिहारपुर रेंज के वन खंड क्रमांक 782 में हसदो नदी का बहाव अपने आसपास प्राकृतिक मिश्रित जंगलों को विकसित करता हुआ आगे बढ़ता है सतपुड़ा के साल वनों के जंगलों के बीच विकसित होता वनों और विविध वन्य जीव जंतुओं, बनौषधियों एवं लुप्तप्राय पेड़ पौधो की वन प्रजातियों के विविधताओं से भरा यह स्थल बेहद मनमोहक दिखाई पड़ता हैं. ऊंचे नीचे पत्थरों पर विकसित होते जंगली पेड़ों और लताओं के बीच ढलान पर छोटे-छोटे बातें नाल प्राकृतिक सौंदर्य के उत्तम नमूने प्रस्तुत करते हैं जहां लगता है बैठकर कुछ देर शांति महसूस की जाए और इन मद्धिम गति से बहते जल बहाव को देखते रहे. ढलान की भूमि पर विकसित होते छोटे-छोटे पौधे जब अपनी ताकत से उठकर खड़े होते हैं तब यह कह पाना बड़ा मुश्किल है कि क्या पत्थरों के में जीवन के अंत हो सकते हैं इन्हीं ढलनों पर श्री संजीवनी एवं कटक की कई प्रजातियों से आप परिचित होते हैं समय के परिवर्तन एवं मानवीय घुसपैठ पशुओं की चढ़ाई एवं अनाधिकृत कटाई तथा वन्य पशुओं का शिकार इसे नुकसान पहुंचा रहा है. कभी यह क्षेत्र अमृतफल आंवला का विशाल जंगल हुआ करता था लेकिन जंगलों के बीच ट्रक खड़ा करके आंवले के फल तोड़ने एवं बेचने की ग्रामीणों की प्रतिस्पर्धा ने पूरे के पूरे आंवले के पेड़ों की को समाप्त कर दिया. 2015-16 में संबोधन साहित्य एवं कला कला परिषद मनेन्द्रगढ़ द्वारा अमृत धारा मे विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में अंचल के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पर्यावरण चिंतक राम प्रसाद गौतम ने कहा था कि इस स्थल का नाम अमृत धारा हसदो कीअमृत की तरह बहती जलधारा एवं अमृत फल आंवले के घने जंगलों के कारण रखा गया है किंतु चिंता का विषय है कि आज अमृत फल अआंवले के घने जंगल अब यहां नहीं रह गए हैं. वन-एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को इसे पुनर्जीवित करना होगा किंतु अब तक इस दिशा में प्रयास लगभग नगण्य है. यहां के वातावरण में फलने फूलने वाले अवल की कई प्रजातियां यहां विकसित की जा सकती है हमारा सुझाव है वन विभाग इस दिशा में जरूर ध्यान दें.
सामान्य शब्दों में जैव विविधता हजारों लाखों वर्षों में होने वाली विकास एवं स्थानीय परिवर्तन के अनुकूल स्वयं को ढालकर जिन्दा रखने की प्रक्रिया का परिणाम है दूसरे पक्ष मे भौतिक एवं जैविक विविधता के बीच उनके अनुकूल स्थितियों में स्वयं को परिवर्तित कर वन एवं वन प्राणियों का जीवित रहना तथा समय एवं परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेना ही जैव विविधता है इसके अंतर्गत केवल पेड़ पौधे ही नहीं बल्कि उनके साथ वन क्षेत्र में रहने वाले पेड़ पौधे, पशु पक्षी, जानवर, सूक्ष्म जीव, कवक, की विविधता और उनसे जुड़ी अनुवांशिक विविधता भी इसमें शामिल होती है. ” भारत वर्ष में जैन धर्म का भी यही सिद्धांत है.”जियो और जीने दो” वास्तव में इसी सिद्धांत पर दुनिया कायम है और आगे भी कायम रहेगी. कोविद 19 के समय में जब मानवीय गतिविधियों पर अंकुश कुछ समय के लिए लगा दिया गया था तब गंगा जैसी नदियां अपने आप स्वच्छ हो गई थी. इसके बाद भी हम कोई सबक नहीं ले सके हैं प्रकृति की यह घटनाएं इस बात का प्रतीक है कि मानव हस्तक्षेप और उसकी सुख सुविधा ही जैव विविधता को नष्ट करने का मुख्य कारण है अतः हमें भौतिक सुखों के लिए प्रकृति से सीमाओं के अंदर ही लेना होगा ज्यादा लेना प्रकृति और हमारा जीवन दोनों को समाप्त कर देगा
अमृतधारा बायोडायवर्सिटी पार्क अर्थात जैव विविधता पार्क जो प्राकृतिक बदलाव के बीच जीव जंतुओं एवं वनों को संरक्षित करने का एक प्रयास है. इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में पाई जाने वाली जड़ी बूटियां पौधे एवं जीव जंतुओं को संरक्षित करना है इसी प्रकार इस क्षेत्र में पाए जाने वाले लुप्त पर प्राय प्रजातियां जो केवल इसी जलवायु में विकसित हो रही है उनका संरक्षण एवं विकास भी इसमें शामिल है. भविष्य में इसे एक बोटैनिकल गार्डन के रूप में विकसित कर आम जनता में स्वच्छ वातावरण एवं जलवायु परिवर्तन के सिद्धांत समझाने और उनके बीच जन- जागृति पैदा करने के लिए इसे विकसित किया गया है. इसके माध्यम से एक ग्रीन बुक तैयार करने की भी योजना है जिसमें यहां पाई जाने वाली प्रजातियों का संरक्षण एवं उनका विकास भी में अब तक की गई उपलब्धियां को संचित कर एक पुस्तक के रूप में एकत्र करना इसके उद्देश्यों में शामिल है.
वर्ष 2019-20 में प्रारंभ किए गए इस जैव विविधता पार्क में अपने उद्देश्यों के अनुरूप जंगल के साथ साथ वन्य जीव जंतु , पशु पक्षी, एवं समय के बदलाव के साथ नष्ट हो रही जड़ी बूटियां को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. अमृतधारा जलप्रपात मार्ग पर जलप्रपात से लगभग 2 किलोमीटर पहले ही इसका आकर्षक भव्य द्वार आपका ध्यान खींचता है. लेकिन स्वागत द्वार पर किसी वन कर्मचारी की अनुपस्थित होने से पूर्व की विशेष अनुमति से ही आप इसके भीतर प्रवेश कर सकते हैं, अपने उद्देश्य के अनुरूप आम जनता की जन जागृति के लिए यह अभी तक नहीं खोला गया है . लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में छोटे-छोटे बहते नालों को बांधकर वन्य पशुओं को पीने का पानी उपलब्ध कराने का प्रयास इसके भीतर किया गया है. वहीं इसके ढलान वाले क्षेत्रों में कई बहुमूल्य वन औषधीय के पौधे विकसित होते हुए देखे जा सकते हैं जो अपने जीवन के लिए लड़ते हुए पत्थरों पर भी पर जमाए खड़े रहते हैं. मृत संजीवनी धुंची (रत्ती) एवं लाजवंती जैसी वन औषधियां यहां आपको जीवन के लिए संघर्ष करती दिखाई पड़ती है. इस जैव विविधता पार्क के लगभग 10 एकड़ क्षेत्र में मनमोहक मलयागिरी चंदन का रोपण किया गया है जहां पहुंचने के बाद आपको हिमालय क्षेत्र में होने का एहसास होता है. जहां तक आपकी नजर जाएगी चंदन ही चंदन दिखाई पड़ता है. सतपुड़ा के जंगल की अपनी पहचान साल वनों के जंगल है लेकिन समय के बदलाव ने यहां साल सराय के जंगलों के स्थान पर धीरे-धीरे सागौन के जंगलों ने इनका स्थान ले लिया है साल (सरई) धीरे-धीरे यहां से समाप्त हो रहा है और इसी के साथ समाप्त हो रहा है साल के फूलों और फलों के झड़ने के समय वातावरण में दिखने वाला प्राकृतिक वह दृश्य जिसे देखने को कई लोग तरसते हैं. जिस साल (सरई) के पौधों की नर्सरी तैयार करने के लिएकरोड़ों की लागत से देश में कई शोध संस्थान खोले गए हैं उसी साल पौधों की विशाल नर्सरी इस पार्क के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए बनाई गई मार्ग की नई मिट्टी एवं आसपास के खुले स्थानों पर हजारों की संख्या में दिखाई पड़ती है. इसी साल बीज का अंकुरण एवं छोटे-छोटे पौधों का विकास जैव विविधता पार्क के उद्देश्य और उसके लक्ष्य को प्रमाणित करता है. लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैले इस जैव विविधता पार्क को कई खंडों में बांटा गया है जिसमें चंदन दृश्य, झरना दृश्य, मिश्रित वन दृश्य, एवं वन औषधि दृश्य, जैसे कई प्रजातियां इस पार्क में विकसित हो रही है. हमने इस जैव विविधता पार्क में दांतोंको स्वस्थ रखने के लिए उपयोग होने वाले जड़ी बूटी मिस्वाक के साथ-साथ चिड़चिड़ा, चिरायता ,शतावर, बच, अनंत मूल, गुड़मार, मृत- संजीवनी, मधुनाशिनी, लाजवंती, गटारन, एवं शुगर रोगों की दवा गुड़मार जैसी वन औषधि का विकास पार्क में देखकर खुशी होती है. नई-नई बानो साथियों एवं पशु पक्षियों से से परिचय प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त करना इस पार्क के उद्देश्यों में से एक है. इस जैव विविधता पार्क में अपना जीवन बिता रहे खरगोश,भालू ,जंगली मुर्गी, तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली सूअर, मोर मयूर ,कोटरी, तीतर ,सारस, बदक एवं रंग बिरंगी तितलियों का पूरा संसार यह दिखाई पड़ता है जो आपको शहरी जीवन सैथर शांति की तलाश में कुछ देर प्रकृति की गोद में बैठ जाने को आमंत्रित करता है. पौधों एवं फूलों का परागण करते हुए एक पेड़ के फूल से दूसरे पेड़ पौधों के फूल तक उड़ती रंग बिरंगी तितलियां आपका और आपके बच्चों का मन मोह लेती है. इस पार्क में आम नागरिकों को जैव विविधता की पक्रिया को समझाने और अध्य्यन से जोड़ने तथा उसकी समझ के लिए एक अध्ययन केंद्र भवन एवं स्वच्छता को ध्यान में रखकर सार्वजनिकक शौचालय का निर्माण भी किया गया है. वनरक्षकों द्वारा इस विशाल क्षेत्र में निगरानी रखने के लिए दो वॉच टावर (निगरानी मंच) बनाए गए हैं जिससे पूरे क्षेत्र में निगरानी रखी जाती है .
इस जैव विविधता पार्क तक पहुंचने के लिए आपको मनेन्द्रगढ़ जिला मुख्यालय पहुंचना होगा . अब अमृत धारा जलप्रपात को राष्ट्रीय पर्यटन में जोड़ा जा रहा है राष्ट्रीय पर्यटन में जुड़ जाने के बाद इस जैव विविधता पार्क का महत्व और बढ़ जाएगा. यहां पहुंचने के लिए आपको राष्ट्रीय राजमार्ग 43 कटनी- गुमला मार्ग से लगभग 18 किलोमीटर आगे अम्बिकापुर मार्ग मे चलना होगा. यहाँ से बाई और अर्थात उत्तर पूर्वी दिशा में अमृत धारा जलप्रपात का स्वागत द्वार आपका स्वागत करता है. यही से अमृत धारा जलप्रपात के लिए मुड़कर आगे 06 किलोमीटर चलने के बाद जैव विविधता पार्क का मुख्य द्वार दिखाई पड़ता है. सुंदर आकर्षक पशु पक्षी एवं वन्य जीव तथा जानवरों के चित्रों से सजे स्वागत द्वार से ही जैव विविधता का आकर्षण प्रारंभ हो जाता है .शहरी वातावरण को स्वस्थ जलवायु प्रदान करने तथि वन्य जीवन एवं पेड़ पौधों को जीवन प्रदान करने के उद्देश्य को पूरा करते हुए सुंदर एवं आकर्षक द्वार के साथ निर्मित इस पार्क में उद्देश्य के अनुरूप काफी कार्य किए जाने की अभी आवश्यकता है जिसमें मुख्य रूप से लाखों रुपए के इंफ्रास्ट्रक्चर मूल संरचना बनाने के बाद भी आम जनता को जैव विविधता की समझ विकसित करने तथा वनों और वन्य प्राणियों तथा जड़ी बूटियां के संरक्षण से जोड़ने हेतु वन विभाग की निगरानी में आम जनता को इसके विकास से जोड़ने का कार्य अब तक प्रारंभ नहीं हो सका है . सुविधानुसार सप्ताह में कम से कम 1 दिन के लिए इसे खोला जाना चाहिए ताकि वन, पर्यटन के साथ साथ बोटैनिकल गार्डन के रूप में इसकी पहचान बनाई जा सके. जो इसका मूल उद्देश्य है.
एक अच्छे उद्देश्य के लिए किए गए प्रयास में कुछ कमियां हो सकती है लेकिन इन्हें दूर करने के संकल्प के साथ प्रयास किया जाना जरूरी है. इसके अंतर्गत लोगों को इस जैव विविधता पार्क से जोड़ना बहुत आवश्यक है ताकि आसपास हो रहे वनों के विकास स्वस्थ पर्यावरण को बनाने एवं संरक्षित करने में वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की सक्रियता को आम जनता के बीच पहुंचाया जा सके. इस जैव विविधता पार्क के निर्माण से रचनात्मक पहल के एक कदम को प्रोत्साहित करते हुए हरिवंशराय बच्चन की चार पंक्तियां याद आ रही है …..
गहन सघन मनमोहन वनतरु, मुझको आज बुलाते हैं
किंतु किये जो वादे मैंने, याद मुझे वह आते हैं.
अभी कहां आराम बदा है, मूक निमंत्रण छपना है
अरे अभी तो मीलों हमको मीलों हमको चलना है.
राजेश सिन्हा 8319654988