
भाषा पर राजनीति करना दुखद है – सतीश जायसवाल
एमसीबी:- भाषा पर राजनीति करना दुखद है भाषा को साहित्य के लिए ही रहने दिया जाए. भाषा साहित्य में अपनी श्रेष्ठतम भूमिका निभा सकती है वर्तमान समय में आपका साहित्यिक योगदान प्रश्न का उत्तर देते हुए सतीश जायसवाल ने कहा की एक कलमकार का जीवन इतना बड़ा होता है कि मैं एक स्वयं कहानी बन गया हूँ, जिस पर कई कहानियां लिखी जा सकती है जिसकी शुरुआत मै जल्द ही करुँगा.
उक्ताशय के विचार छत्तीसगढ़ वनमाली सृजन पीठ बिलासपुर के अध्यक्ष सतीश जायसवाल ने निदान सभागार मे वनमाली सृजन केंद्र मनेन्द्रगढ़ द्वारा आयोजित परिचर्चा में व्यक्त किये, उन्होंने भाषा के संबंध में कहा की भाषा पर राजनीति दुखद है भाषा को साहित्य के लिए रहने दिया जाए. प्रेमचंद का साहित्य भाषा का मोहताज नहीं उनकी कहानी उर्दू हिंदी भाषा मे लिखने के बाद भी सभी भाषाओं में सम्मान पा रही है.
बनमाली सृजन केंद्र कोरिया के संयोजक एवं कार्यक्रम संचालक वीरेंद्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए उपस्थित साहित्यकारों से सतीश जायसवाल को पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करने का अनुरोध किया. तत्पश्चात
“सतीश जायसवाल साहित्यकार या पत्रकार”
विषय पर आयोजित परिचर्चा मैं पत्रकारों को आमंत्रित किया. पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा की पत्रकारिता से प्रारंभ अपने जीवन के बीच मैने अपनी साहित्यिक कलम को मैंने हमेशा जिंदा रखा. तत्कालीन धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, हंस, जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से प्रारंभ मेरी साहित्य की यात्रा वर्तमान साहित्यिक पत्रिकाएं वागर्थ, समकालीन भारतीय साहित्य ,जैसी पत्रिकाओं में स्थान पाती रही है. पत्रकारिता में मैंने कुछ दैनिक अखबारों के संपादन का उच्च दायित्व भी निभाया है. वहीं राजकमल प्रकाशन सहित कई प्रकाशको ने अब तक मेरी लगभग बारह.चुनिंदा पुस्तकों को अपने प्रकाशन में स्थान दिया है. वर्तमान में मैंने अपनी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की यात्रा संस्करण को “सूर्य का जलावतरण” पुस्तक में व्यक्त करने का प्रयास किया है
मनेन्द्रगढ़ के साहित्यिक परिवेश को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यहां की मिट्टी का अपनत्व मुझे हमेशा खींचता रहा है. 1981- 82 में माता चरण मिश्रा एवं बीरेन्द्र श्रीवास्तव के संपादन में निकलने वाली संबोधन संस्था की साइक्लोस्टाइल पत्रिका “शुरुआत” में मेरी एक सवक्तव्य कालम में विशेष कविता को स्थान मिला था. मनेन्द्रगढ़ एवं बैकुंठपुर के नए सृजनात्मक कार्यो एवं पुस्तकालय सहयोग के कारण 2022 का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय बनमाली सृजन केंद्र का सम्मान मनेन्द्रगढ़/ कोरिया को दिया गया था. साहित्यकारों को जोड़ने एवं सतत सक्रियता को बल देने का श्रेय मैं अंचल के साहित्यकार बीरेन्द्र श्रीवास्तव को देना चाहूंगा.
परिचर्चा में अपना पक्ष रखते हुए साहित्यकार सतीश उपाध्याय ने कहा कि मुझे खुशी है कि सतीश जायसवाल जी की जो कविता हमने छत्तीसगढ़ पाठ पुस्तक चयन समिति के माध्यम से पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए अनुशंसा की थी, वह आज कक्षा दसवीं की पाठ्यक्रम में शामिल है. इस चयन समिति का मैं भी एक सदस्य था.
“गृह प्रवेश” कविता उनके साहित्यिक यात्रा की ऊंचाइयों का प्रतिबिंब है. आज उनके साथ मैं इस मंच पर गौरव का अनुभव कर रहा हूं.
पिपरिया हाई स्कूल के प्राचार्य एवं जिला पुरातत्व एवं पर्यटन प्रभारी श्री विनोद पांडे ने कहा की यात्रा संस्मरण लेखन के धनी श्री सतीश जायसवाल की मनेन्द्रगढ़ में उपस्थिति उनकी आत्मीयता और यहां की मिट्टी मे बसी रचनात्मक उर्वरा उनकी कहानियों का हिस्सा बनेगी.
देर रात तक संचालित इस चर्चा में सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक परमेश्वर सिंह, व्याख्याता टी गोपाल राव, रिटायर्ड कृषि विज्ञानी, पुष्कर तिवारी, डॉ विनोद पांडे, साहित्यकार सतीश उपाध्याय, बनमाली सृजन केंद्र कोरिया के संयोजक बीरेंद्र श्रीवास्तव, आईसेक्ट विद्यालय के प्राचार्य संजीव सिंह, समाज सेवी नरेंद्र श्रीवास्तव, सतीश द्विवेदी, साहित्यकार प्रमोद बंसल एवं डॉक्टर निशांत श्रीवास्तव सहित पत्रकार प्रशांत तिवारी, राजेश सिन्हा ने मुख्य रूप से अपनी सहभागिता दर्ज करते हुए अपने अपने विचार रखें.
राजेश सिन्हा 8391654988