“भौतिक विकास के लिए पृथ्वी का जीवन दांव पर” (जबकि मानव जीवन पृथ्वी के अलावा और कहीं नहीं है?)
पर्यावरण एवं समाज चिंतन क्रमांक – 20 (बीरेंद्र श्रीवास्तव की कलम से)
विशेष आलेख । श्रीमद् भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य स्वरूप महाभारत के कौरव पांडव युद्ध में दिखाया था। जब पांडव सेवा के धनुर्धर अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष रख दिया और उन्होंने सारथी बने भगवान कृष्ण को कहा कि मैं यह युद्ध कैसे कर सकता हूं यहां पर सभी मेरे अपने हैं इसमें मेरे तात् श्री भीष्म है जिनकी गोद में मैं खेल हूं, अपने गुरु द्रोणाचार्य जिनसे मैंने शिक्षा पाई है। अपने पिता धृतराष्ट्र के पुत्रों को मार कर मुझे क्या मिलेगा। अपने परिवार के बिना अकेला मैं यह सब कुछ जीतकर भी इस सिंहासन को लेकर क्या करूंगा, यह सब सुनकर कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देकर कहा था प्रकृति के नियम में सब कुछ तय है, केवल तुम्हें अपना कर्म करना है और यदि कर्म नहीं करोगे तब यही परिवार और समाज के लोग तुम्हें डरपोक और युद्ध से भागने वाला योद्धा कहेंगे तब तुम क्या यह सब सहन कर पाओगे और यही कहते-रहते उन्होंने अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिया था जिसमें हजारों सूर्य एवं कई आकाशगंगा घूम रही थी। जो इस अलौकिक ब्रह्मांड की एक झलक मात्र थी।
इसी तरह जब माता यशोदा ने बालक कृष्ण को आंगन में मिट्टी खाते देख लिया था और कृष्ण के मुख से मिट्टी निकालने के लिए जब कृष्ण को मुंह खोलने के लिए कहा तब उनके मुंह में घूमते विशाल ब्रह्मांड को देखकर माता यशोदा मूर्छित हो गई थी। बाद में माता यशोदा के होश में आते ही भगवान कृष्ण ने यह घटना उनके मस्तिष्क से विस्मित कर दी। इस विशाल ब्रह्मांड की चर्चा करते हुए हमारा चिंतन परत परत नए-नए प्रश्न और उत्तर के ताने-बाने में उलझता जाता है। यह ब्रह्मांड कितना विशाल है, हमारे सूर्य की स्थिति हमारे ब्रह्मांड में क्या स्थान रखती है। हमारे सौरमंडल में घूमते ग्रह में या ब्रह्मांड के किसी अन्य ग्रह में क्या जीवन है, यदि है तब वह कैसा है और यदि नहीं है तब क्या इतने विशाल ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी पर ही केवल मानव जीवन है। इस सच को स्वीकारने के साथ ही साथ हमें अपनी प्रकृति अर्थात पृथ्वी और मानव जाति को बचाए रखने के लिए हमारी नैतिक जिम्मेदारियां केप्रति कितने जागरुक हैं इस पर विचार आवश्यक है।
विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही इस ब्रह्मांड की जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं जिसमें इस ब्रह्मांड के कई अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास शामिल है। विज्ञान की अब तक खोज में छोटे-छोटे ग्रह और नक्षत्र की जानकारी आश्चर्यजनक है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार ब्रह्मांड की उम्र अनुमानत: लगभग 14 अरब वर्ष है। इस अनुमान एवं खोज में 5 करोड़ वर्ष के कम या ज्यादा होने की संभवना शामिल हैं। इस ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी लगभग साढे चार अरब वर्ष पहले स्थापित हो चुकी थी कहा जाता है कि 4.6 अरब वर्ष पूर्व सूर्य के निर्माण के साथ-साथ सूर्य के आसपास जमीं धूल और गैस से मिलकर पृथ्वी का निर्माण हुआ था। अरबो वर्ष तक लगातार उल्का पिंड के टकराने से पृथ्वी पर जहां गर्मी बढ़ती गई और पृथ्वी पर लावा तरल रूप में बहता रहा, समय के बीतने के साथ कुछ पानी भरे उल्का पिंडों के टकराव से पृथ्वी पर पानी आया जो करोड़ों वर्ष तक लगातार बरसता रहा और यह पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होनी प्रारंभ हो गई। बाद में बर्फ से ढकी पृथ्वी में ज्वालामुखी ने गैस के साथ कुछ ऑक्सीजन और पृथ्वी को ऐसा वातावरण दे दिया जिसमे जीवन धीरे-धीरे प्रारंभ होने लगा। एक कोशीय जीवन से बहुकोशीय मछली, कछुआ तथा कशेरुकी प्राणी प्राणियों का पृथ्वी पर जन्म लेना एक क्रमिक प्रक्रिया बन गई। आध्यात्मिक कहानियां में भी हम मत्स्य वराह अवतार की कहानियों की जानकारी सुनते हैं। विकास के क्रम में इसी तरह लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर डायनासोर जैसे उड़ने वाले एवं पृथ्वी पर चलने वाले विशालकाय प्रजाति के जीवन में पृथ्वी पर लगभग 15 करोड़ वर्ष तक राज किया और एक बड़े उल्का पिंड से टकराने के बाद करीब 6 करोड़ वर्ष पहले यह सब एकाएक समाप्त हो गए। कुछ स्तनधारी जीव जंतु इसमें बचे रह गए जिसमे वैज्ञानिक डार्विन के सिद्धांत के आधार पर विकास के क्रम में आदिमानव एवं वर्तमान मानव का जन्म हुआ।
यदि हम महाभारत एवं कृष्ण जन्म के आध्यात्मिक पृष्ठ को सही मानते हैं तब आध्यात्मिक हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण ने अपने मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड को दिखाकर यह साबित कर दिया था कि ब्रह्मांड का संचालन करने वाले देवों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात त्रिदेव द्वारा अब तक की जाती रही है।
ऋग्वेद के “नासदीय सूक्त” में ब्रह्मांड से जुड़ी जानकारी सूक्ति के माध्यम से बताई गई है जो वैज्ञानिकों के बिग बैंक सिद्धांत का समर्थन करती है। ऋग्वेद की सूक्ति में स्पष्ट है कि ब्रह्मांड की रचना होने से पहले न पृथ्वी थी, ना आकाश लोक था और ना ही पाताल लोक, जैसा कुछ था। इसी तरह वेदों के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माण के समय जो ध्वनि अर्थात नाद उत्पन्न हुआ उसे एंबेस कहा गया जिसे ओम भी कहा गया जो आज भी परम ब्रम्ह ईश्वर का ध्यान लगाने हेतु स्मरण किया जाता है। विज्ञान के पृथ्वी उत्पत्ति के संबंध में बिग बैक सिद्धांत ने इस नाद के उत्पत्ति का समर्थन किया है। ब्रह्मांड के कई तथ्य ऐसे हैं जहां तक हमारी सोच पहुंचने-पहुंचते विराम ले लेती है लेकिन छोटी-छोटी जानकारियां जो विज्ञान द्वारा हमें प्राप्त हुई है उसे जानकर भी आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। जबकि अभी हम ब्रह्मांड के मात्र एक चौथाई हिस्से की कुछ जानकारी ही एकत्र कर पाए हैं। इसमें से मात्र पांच प्रतिशत ब्रह्मांड का हिस्सा हम देखने में सफल हो पाए हैं। अपने सौरमंडल की जानकारी से आप काफी परिचित होंगे। अपने सूर्य से पृथ्वी की दूरी 152 मिलियन अर्थात 15.2० करोड़ किलोमीटर दूर है। इसके विशाल क्षेत्र में 13 लाख पृथ्वी समा सकती है, इसी तरह बृहस्पति ग्रह जैसे विशाल क्षेत्र में 1300 पृथ्वी समा सकती है और हमारे से वरुण ग्रह पांच अरब किलोमीटर दूर है। क्या आप जानते हैं की इसी ब्रह्मांड के मेगा स्टार में 20 सूरज समा जाएंगे। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी में सूरज जैसे 400 तारे मौजूद है और इसे पार करने में एक लाख प्रकाश वर्ष लग जाएंगे। टेलिस्कोप की मदद से हम अब तक सात आकाशगंगा तक देख पाए हैं। हमारी पृथ्वी की तुलना में सूर्य से पेन की नोक के बराबर हिस्सा भी हमें जलाने के लिए पर्याप्त है, और इससे उसकी गर्म तापमान का पता चलता है। इसी तरह ब्रह्मांड के कई आंकड़े हमारी गिनती को समाप्त कर देते हैं और हमे प्रकाश की गति से उसकी विशालता मापना पड़ता हैं। आपको मालूम है कि प्रकाश की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड है ऐसी स्थिति में आप इन ग्रहण और आकाशगंगा की दूरी तथा उनके फैलाव के बारे में जानकारी की कल्पना कर सकते हैं। सबसे बड़ी आकाशगंगा अल्काइनोसिस एक करोड़ 60 लाख प्रकाश वर्ष के व्यास में फैली हुई है जिसमें हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा) जैसी 40 लाख गैलेक्सी (आकाशगंगा) समा जाएंगी।
हमारे आध्यात्म में ईश्वरी सत्ता को मान्यता दी गई है जिसमें ईश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड का नियंता है और इसका संचालन भी उसी के द्वारा किया जा रहा है। जीवन – मृत्यु का संबंध शरीर धारण करना और अलग-अलग रूपों में बदलने का एक कारण है जिसे शरीर धारण करना और शरीर छोड़ना कहा जाता है। आत्मा अमर है वह कभी नष्ट नहीं होती, केवल अलग-अलग रूपों में जन्म लेती है। अब तक के वैज्ञानिक अध्ययन में पृथ्वी से 20 प्रकाश वर्ष दूर ग्लिस – 581 ग्रह की जानकारी मिली है जिसमें प्राप्त पानी एवं तापमान की अनुकूल स्थिति किसी एलियंस के होने की संभावना को समर्थन देती है किंतु यह अब तक अज्ञात है । इस तरह यह निश्चित है कि अभी तक पृथ्वी को छोड़कर मानव जीवन की उत्पत्ति और कहीं भी नहीं है और यदि यह सही है तब अपनी पृथ्वी के प्राकृतिक सीमित संसाधनों के इस ग्रह के प्रति हमारी जिम्मेदारी मानव होने के कारण और बढ़ जाती है। इस प्रकृति के मानद औलाद होने के कारण यह प्रकृति हमारा पूरा ध्यान रखती है। आक्सीजन जैसी प्राण वायु सहित अपनी धरती के गर्भ में भारी खनिज को हम संतुलित मात्रा में उपयोग न कर अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं, जबकि पृथ्वी उसकी भरपाई अपने जैव विविधता और प्राकृतिक परिवर्तन से करने की कोशिश करती रहती है। नित्य बिगड़ते पर्यावरण को भी बचाने का प्रयास करती है लेकिन आध्यात्मिक भाषा में माता पृथ्वी भी कब तक हमारे अत्याचारों को सहन करती रहेगी। हम अपनी भौतिक विकास के लिए प्रकृति को लगातार सीमा से अधिक दोहन कर उसके साथ अन्याय कर रहे हैं। इस पर हमें विचार करना होगा।
अध्यात्म का एक पन्ना यह भी कहता है कि पृथ्वी पर जीवन कई बार अपने उत्थान की ओर बढ़ा है किंतु सीमा से ज्यादा दोहन होने पर उसी तरह समाप्त भी हो गया है। इसके बाद करोड़ों वर्ष के बाद पुन: जब पृथ्वी अपने आप को पूरी तरह प्राकृतिक रूप से समृद्ध कर लेती है तब फिर से जीवन प्रारंभ होता रहा है। हमारे सामने डायनासोर जैसे बलिष्ठ जीवन की समाप्ति एक उत्तम वैज्ञानिक उदाहरण है, इसी तरह जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश एवं मानव पर अंकुश का उदाहरण भी हम “करोना काल” की भीषण विभीषिका में देख चुके हैं ऐसे समय में हमारे भौतिक संसाधन ठप हो गए थे। पूरी मानव सभ्यता अपने आप को असहाय स्थिति में पा रही थी। प्रकृति की यह एक चेतावनी थी। एक चेतावनी देकर प्रकृति ने हमें आपसी सामंजस्य तथा भाईचारे के साथ रहने और एकता का संदेश दिया है, लेकिन आज हम परमाणु युद्ध की विभीषिका को निमंत्रण देने पर उतारू हैं। एक दूसरे देश की जमीन एवं संसाधनों पर आंख लगाये बैठे हैं। हमारे अध्यात्मिक संदेश कभी भी दूसरे का अहित करने का संदेश नहीं देते, फिर क्यों हम भौतिक वादी आवश्यकताओं के लिए अपने भाइयों से करते हैं दूसरे देश को सीमाओं में बांधते हैं और आपसी भाईचारा और सद्भावना से मुंह मोड़ रहे हैं
इस ब्रह्मांड में मानव जीवन हेतु आवश्यक संसाधनों से भरी पृथ्वी का सीधा संदेश है कि अपनी ज़रूरतें इतनी रखो जिसमें तुम्हारा भी जीवन अच्छा व्यतीत हो और आगामी पीढ़ी के लिए भी कुछ बचा कर रख सको। ब्रह्मांड की तरह संतुलन के सिद्धांत पर टिकी पृथ्वी में उपलब्ध संसाधन के प्रति आपकी स्वस्थ सोच आपको और प्रकृति को लंबा जीवन दे सकती है। हमारी भौतिकवादी विकास की सोच के साथ प्रकृति का विनाश कहें या मानव का विकास सब आपके अपने हाथों ही होना है।
भौतिक विकास के इस पैमाने पर एक बार विचार जरूर करें क्योंकि यह विचार आज की आवश्यकता है। जो यक्ष प्रश्न बनकर हमारे धैर्य और विद्वता की परीक्षा ले रहा है।
बस इतना ही फिर मिलेंगे किसी अगले वैचारिक पड़ाव पर
फिर मिलेंगे


