
वन मंडल मनेन्द्रगढ अंतर्गत आने वाले परिक्षेत्रों में RTI का बनाया लाबी, चाही गई जानकारी की विषय वस्तु स्पष्ठ नही,अपील अधिकारी भी सन मारे हुए…
कोरिया! जिले के झगराखाण्ड निवासी संजीव गुप्ता ने बताया कि वन मंडल मनेंद्रगढ़ के वन परिक्षेत्र केल्हारी एवं कुंवारपुर में इन दिनों आरटीआई के तहत आवेदन प्रस्तुत कर निर्माण कार्यो से संबंधित जानकारी मांगे जाने पर विषय वस्तु स्पष्ठ नही का जवाब जन सूचना अधिकारी आवेदक को दे रहे है। शासन की योजनाओं के तहत जानकारी प्राप्त करने के लिए मैंने आवेदन प्रस्तुत किया था। कई निर्माण कार्यो कि मैंने पूर्व में मौके स्थल पर निरीक्षण किया था । निर्माण कार्यो में अनियंमित्ता व सही माप दंड में तैयार न किया जाना प्रतीत होता रहा । जंगलों की मिट्टी,मुरुम,रेत,पत्थर का उपयोग बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। अगर शासन से निर्माण कार्य के लिए रुपये आते है मटेरियल के लिए तो जंगल से उपलब्ध निम्न स्तर के सामग्री का उपयोग क्यो ? अगर नही आते है तो निर्माण कार्यो के लिए भारी भरकम बजट प्रशासनिक स्वीकृति क्यो ? इन्ही सब सवालो के स्पष्टता के लिए आरटीआई के तहत मैंने आवेदन प्रस्तुत किया था । और कि माने तो ऐसा एक आवेदक को नही कई आवेदकों को ऐसे ही भ्रम में जानकारी दी जा रही । सबसे बड़ी बात तो ये है कि जन सूचना अधिकारी आरटीआई आवेदन का फैसला ऑन 1st आवेदन में ही कर निपटारा कर रहे है। आवेदक को विषय वस्तु स्पष्ठ नही का जवाब दे कर कारण बता कर आपका आवेदन नस्तीबद्ध किया जाता है। का फरमान जारी कर दिया जाता है जबकि आरटीआई की धाराओं के तहत आवेदक को समझ नही आता की आवेदन कैसे लिखे इसके लिए भी प्रावधान है। आवेदक जिस विषय पर जानकारी प्राप्त करना चाहता है उस संबंध में सहायक जन सूचना अधिकारी या अन्य संबंधित ऑफिस स्टाफ आवेदक के कहे अनुसार व प्रशानिक जानकारी के तहत आवेदन लिख कर कार्यालय में सबमिट कर 30 दिवस के भीतर आवेदक को चाही गई जानकारी उपलब्ध कराना भी आरटीआई के प्रावधानों के अनुसार जिम्मेदारी बनाती है । लेकिन मानो तो सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाना प्रशासनिक जिम्मेदारों का व्यवहार सा बन गया है। आवेदक को जानकारी के एवज में भ्रम जैसी स्थिति उत्पन्न कर घुमाया जाता है। समझ से परे तो तब हो जाता है जब आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी जन सूचना अधिकारी को आवेदन पत्र की लिखावट व विषयवस्तु को समझने में 25 से 30 दिन लग जाता है उसके बाद जवाब दिया जाता है विषय वस्तु स्पष्ट नही है। कमाल की बात है जब आवेदक स्वयं कार्यालय में उपस्थित हो कर आवेदन पत्र प्रस्तुत करता है। तब क्या जिम्मेदार आंख बंद कर आवेदन पत्र स्वीकार करते है । या फिर उन्हें तत्काल समझ नही आता कि जानकारी में क्या मांग की है जिसे समझने के लिए लगभग 30 दिन का समय व्यतीत करते है । या सीधे तौर से ये कहे की साहब जानकारी देना नही चाहते और अपने करामातों से चादर हटने देने नही चाहते । चादर हटी तो निर्माण कार्य दुर्घटना घटित हो सकती है। यही डर में सायद जन सूचना अधिकारी आवेदनों का कार्यालय में फाइल बना धूल जमा रहे है।
*मामले पर अपील अधिकारी सन*
30 दिनों बाद डाक के माध्यम से जब आवेदक को ऐसा जवाब मिलता है उसके बाद आवेदक ये सोच कर अपील अधिकारी के पास आरटीआई के तहत अपील आवेदन प्रस्तुत करता है कि मामले पर जरूर अपील अधिकारी संज्ञान लेंगे और चाही गई जानकारी देने जन सूचना अधिकारी को अदेश्य करेंगे पर इसके ठीक विपरीत परिस्थिति यहाँ व्यापत है । अपीलीय अधिकारी तो जन सूचना अधिकारी से भी ज्यादा घाग निकले अपील आवेदन का समय बीत गया । आवेदक राह देखते थक गया । साहब की कलम तक नही चली अपीलीय अधिकारी ने तो आवेदन पर सुनवाई करने का दिन,दिनांक,समय तक घोषित करके आवेदक को जानकारी नही दी। सुनवाई तो दूर की बात है। कोरिया में मिली भगत जोर सोर से होना प्रतीत होता है चाहे मामला कोई भी हो अधिकारियों की एक जुटता का परिचय कोरिया में बेमिशाल है। एक जुटता इतनी ज्यादा की कानूनों को भी इनके आगे माथा टेकना पड़ रहा । अब ऐसी स्थिति में आम आदमी कानून के सहारे ही मजबूत है। और अधिकारी कोई कसर नही छोड़ रहे जिससे आम आदमी मजबूत हो कानून को तोड़ फोड़ अपनी कानून चला कर आम आदमी को कमजोर बनाते जा रहे है।
राजेश सिन्हा
संपादक
खबर जागरण न्यूज़