इरी के विशेषज्ञ एवं महानिदेशक, उपकार द्वारा महायोगी गोरखनाथ के. वी. के. पर चल रहे कालानमक परीक्षण का किया अवलोकन
कालानमक प्राचीन काल से उगाई जाने वाली सुगंधित पारंपरिक धान की किस्म है और उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में इसकी खेती की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के लिए कालानमक पसंदीदा किस्म थी। सीमित जागरूकता और बीजों के गलत प्रबंधन के कारण, कालानमक में सुगंध और शुद्धता की गिरावट हुई है । इसके अलावा, आधुनिक उच्च उपज देने वाली किस्मों की तुलना में कम उपज के कारण समय के साथ खेती वाले क्षेत्रों में कमी आई है। अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आईसार्क), वाराणसी ने महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र (एमजी केवीके), गोरखपुर के सहयोग से बेहतर उपज, उच्च गुणवत्ता और बेहतर रूपात्मक विशेषतायुक्त गुणों की पहचान करने के लिए कालानमक जर्मप्लाज्म के मूल्यांकन में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
जारी किस्मों की तुलना में १० कालानमक जर्मप्लाज्म का मूल्यांकन करने के लिए एमजीकेवीके में एक विशेष परीक्षण किया जा रहा है। इन १० जर्मप्लाज्म के परीक्षण की पहचान और सत्यापन आईसार्क की CERVA प्रयोगशाला द्वारा उत्तर प्रदेश के GI (भौगोलिक संकेत) क्षेत्र से एकत्र किए गए ९१ जर्मप्लाज्म से किया गया था। बीज प्रणाली और उत्पाद प्रबंधन टीम की मदद से एक बेहतर फसल कैफेटेरिया मॉडल में परीक्षणों की एक श्रृंखला स्थापित की गई है। यही परीक्षण केवीके गोरखपुर, बेलीपार और सिद्धार्थनगर और कुशीनगर जिलों में किसानों के खेतों में भी स्थापित किये गए है। महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र में परीक्षण दो उपचारों के साथ कार्यान्वित किए गए है जहां कालानमक के उपयोग जैविक और रासायनिक खेती विधि के तहत उगाए गए है। कालानमक के परीक्षणों का निरीक्षण डॉ. संजय सिंह (महानिदेशक, उ.प्र.कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ), डॉ. डी. पी. सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्ध्यक्ष, केवीके, महराजगंज), एमजी केवीके के डॉ विवेक प्रताप सिंह (वैज्ञानिक एवं अध्ध्यक्ष), श्री अवनीश सिंह (एसएमएस, सस्य विज्ञान), डॉ संदीप सिंह (एसएमएस), और आईसार्क के डॉ कुन्तल दास (वरिष्ठ विशेषज्ञ) और श्री सर्वेश शुक्ला (कृषि अधिकारी) एवं श्री चंद्रप्रकाश (डाटा गणक) ने किया। डॉ. संजय सिंह ने इरी और एमजी केवीके की इस पहल को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने अन्य भौगोलिक सांकेतिक क्षेत्रो में परीक्षण करने की सलाह दी। यह परीक्षण चावल के उत्कृष्ट गुणवत्ता जैसे उच्च सुगंध और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ-साथ पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली किस्मों की तुलना में बढ़ी हुई उपज के साथ बेहतर कालानमक जर्मप्लाज्म की पहचान करेगा। परिपक्वता अवस्था के समय में एक भागीदारी मूल्यांकन कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जहां किसान अपनी पसंद के जर्मप्लाज्म के चयन करने में सक्षम हो सकते हैं। अधिकांश किसान अभी भी पारंपरिक कालानमक की खेती कर रहे हैं, लेकिन बीज सम्मिश्रण, और अतीत में उन्हें शुद्ध और विशेषता देने और बीज प्रणाली विकसित करने के लिए अधिक प्रयास नहीं किए गए है। आईसार्क और एमजी केवीके के सहयोग से भौगोलिक सांकेतिक क्षेत्र वाले स्थानों में गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन के लिए क्षमता विकास कार्यक्रम के साथ उच्च उपज देने वाली कलानामक किस्मों को बढ़ावा दिया जायेगा। यह प्रयास कालानामक चावल की विरासत के संरक्षण के लिए फायदेमंद होगा और निर्यात के अवसर भी खोलेगा जो उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए समृद्धि लाएगा ।
राजेश सिन्हा