
सरदार भगत सिंह की पुण्यतिथि तथा समाजवाद के प्रणेता स्व. डा राम मनोहर लोहिया की 113वी जन्म तिथि मनाई गई
गोरखपुर कार्यक्रम की अध्यक्षता संघ के अध्यक्ष माधव प्रसाद शर्मा ने किया ।इस अवसर पर बोलते हुए संस्थान के अध्यक्ष राधेश्याम सिंह ने कहा कि देश के दोनों महान सपूतों ने अपने अपने तरीके से भारत की राजनीतिक को प्रभावित किया।उन्होंने कहा कि आज के दौर में ये दोनों महान नायक सबसे अधिक प्रासंगिक है , क्यों कि जिस तरह बंदिशें कलम और जुबान पर लगाए जा रहे हैं वो भारत के लोकतंत्र का पहरुआ होने पर सवालिया निशान लगाते हैं ।
उन्होंने कहा कि सरदार भगत सिंह ने मात्र 23 साल आठ महीने के जीवन में जिस तरह भारत की राजनीतिक को झकझोरने का काम किया वो दुनियां के गुलाम और सताए गए लोगों के संघर्षों का अमिट शिलालेख है ।
राधेश्याम सिंह ने कहा जुल्म शोषण और दमन के खिलाफ डा लोहिया का संघर्ष भारत में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में मजबूत क़दम था । उनके सिद्धांत देश की जनता को साम्राज्यवादी शासकों के सामने आज भी सीना तान कर खड़े होने की प्रेरणा देते थे ।
उन्होंने कहा कि डा लोहिया कहते थे कि पूरी दुनियां में श्रमिकों को एक समान मज़दूरी मिले ।
राधेश्याम सिंह ने बताया कि आज अमेरिका में एक श्रमिक को एक घंटे के काम के बदले 15 डालर मिलता है और भारत में 8 घंटे काम के लिए 200 हमें इस अंतर को कम करने की लड़ाई लड़नी है उन्होंने कहा कि डॉ लोहिया ने कहा की किसी भी कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले के वेतन में 10 गुना से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए उन्होंने कहा कि आज अदाणी की एक दिन की कमाई 1500 करोड़ और मजदूर की 200 यह कितनी बड़ी विषमता है ।इसीलिए लोहिया ने तीन आना बनाम 13 आना का सवाल ,संसद में उठाया था , डा लोहिया क्रांति के अग्रदूत थे उनके अंदर जनता को उत्प्रेरित करने और मुद्दे गढ़ने की अद्भुत क्षमता थी ।इस कार्यक्रम में बोलते हुए मजदूर आंदोलन के राष्ट्रीय नेता अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि सरदार भगत सिंह कोई नाम नहीं, एक जीवंत इतिहास है, इतनी कम उम्र में कायनात सरीखा आभामंडल बनाना और दुनियां की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत की चुलें हिला देना एक करिश्मा ही तो है, जो दुनियां के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है ।
आज कल के नये नये इतिहासकार भगतसिंह की व्याख्या उन्हें हिंसक सोच वाला व्यक्ति बताकर उन्हें महिमा मंडित करने की कोशिश करते हैं , इस व्याख्या के जरिए ये लोग लोग नई पीढ़ी के लोगों को गुमराह कर गांधी, नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद और लोहिया की शख्शियत को कमतर करने में लगे हैं, हालांकि लाख कोशिश के बावजूद जनता इनके नैरेटिव को स्वीकार नहीं कर रही है ।
ए के सिंह ने कहा कि आज की पीढ़ी को सरदार भगत सिंह और लोहिया द्वारा लिखी गई पुस्तकों और लेखों को पढ़ना चाहिए।जिससे वे जान सकेंगे कि भगतसिंह और लोहिया के साम्प्रदायिक फासीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों के बारे में क्या विचार थे । भगतसिंह ने सेंट्रल असेम्बली में इसीलिए तो बहुत कम क्षमता का बम ऐसी जगह फोड़ा था जिससे कोई आहत न हो । दुनियां के बेहतरीन से बेहतरीन लेखकों और विचारकों की किताबें पढ़ने और नौजवानों को अपने विचारों से प्रभावित करने वाला शख्स कभी हिंसक हो ही नहीं सकता है ।
जो लोग उन्हें हड़पने की कोशिश कर रहे हैं, वो मुंह की खाएंगे ।
ए के सिंह ने कहा सरदार भगत सिंह ने अपने अंतिम दिनों में किर्ति पत्रिका में अपने लेख में लिखा था कि इस देश के नौजवान को भविष्य की राह बनाने के लिए नेहरू से संवाद करना चाहिए और इसके पक्ष में उन्होंने बहुत ही तार्किक बातें कहीं थी वो कहते थे कि नेहरू की सोच वैश्विक है और वो केवल भारत ही नहीं दुनिया की राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं । हिंसा से कोई समस्या नहीं सुलझाई जा सकती है। हमें संवाद करने के लिए मेज पर आना ही पड़ेगा ।ए के सिंह ने कहा कि लोहिया अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के चलते आज भी जिंदा हैं ,हम उनसे कितना सीख पाते हैं,यह हमें सोचना है ।दुनियां में बढ रही आर्थिक असमानता को अब हमें बहस के केंद्र में लाकर लोहिया जी के सपनों को साकार करना होगा ।माधव प्रसाद शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दोनों नायकों को भारत के लिए सबसे शानदार नेमत बताया और कहा कि इनकी कुर्बानियों की बदौलत हम एक आजाद मुल्क है ।उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए सभी का आभार व्यक्त किया ।इस अवसर पर आर पी भट्ट, देवेंद्र यादव,आर के शर्मा, डी के तिवारी , विनीत कुमार सिंह, राजीव सिंह, गौतम लाल महेंद्र सिंह राणा, योगेन्द्र चौहान, आसिफ मेकरानी,अनवर अली, मनोज कुमार द्विवेदी, विश्व प्रकाश मिश्र, बिक्रम, बृजराज यादव, रमाकर कृष्ण त्रिपाठी , राजेन्द्र राय, परवेज खान, अजमत उल्लाह अंगद यादव आदि तमाम सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता उपस्थित थे ।