तिलझरिया पृथ्वी की संरचना ब्रह्मांड की वह पूंजी है
पर्यटन विशेष-अंक 17-लेखन एवं प्रस्तुति
बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव
प्रकृति की गोद में
मनेंद्रगढ़ एमसीबी :– आनंद से परिपूर्ण तीन धाराओं का संगम तिलझरिया पृथ्वी की संरचना ब्रह्मांड की वह पूंजी है जिसे
प्रकृति नियंता ईश्वर ने बड़े मनोयोग से गढा है. इसमें जीव, जंतु, पहाड़ ,जंगल एवं नदियों का वैभव और सुंदरता भरी हुई है. इस पृथ्वी पर रहने वाले हर वासी को एक दूसरे का जीवन रक्षक एवं कहीं कहीं जीवन पोषक भी बनाया गया है. इसकी प्राकृतिक व्यवस्था के अंतर्गत एक ऐसा जीवन चक्र बनाया गया है जहां प्रकृति को बिना नुकसान पहचाये सभी स्वच्छंद जीवन जी सकते हैं, लेकिन इस प्राकृतिक संतुलन चक्र को यदि किसी ने तोड़ने की कोशिश की तब प्रकृति विचलित होती है और इसके गंभीर परिणाम हमें दिखाई पड़ते हैं. इस प्रकृति के अंतर्गत रहने वाले कारक अर्थात पशु, पक्षी, मानव एवं पेड़ पौधे भी इससे प्रभावित होते हैं. सीधी भाषा में यदि पेड़ है तब हमारी जीवन वायु ऑक्सीजन है. ऑक्सीजन है तब मानव है. जीवन जंतु का जीवन भी इसी पर निर्भर है. मानव का धर्म है प्रकृति को बचाए रखना. अपनी संयमित जीवन हेतु इसे बचाते और संरक्षित करते हुए इसे खर्च करना. प्रकृति का हर हिस्सा मानव के लिए समर्पित है. इसी प्राकृतिक जंगल पहाड़ और नदियों के बीच जानवरों से ज्यादा विकसित मस्तिष्क के स्वामी मानव के लिए प्रकृति ने चिंतन मनोरंजन के लिए प्राकृतिक सौंदर्य की विरासत के प्रदान की है. इसी चिंतन मनोरंजन और प्रकृति के गोद में आंखें मूंदकर आनंद के कुछ यादगार पलों को समेट लेने का एक स्थान है. बिहारपुर से सोनहत मार्ग पर पर्यटन स्थल तिलझरिया
जी हां नाम ही तिलझरिया की अपनी पहचान है. यहां आनंद से परिपूर्ण तीन छोटी-छोटी जल – धाराओं का संगम होकर आगे बढ़ता है. जब बिहारपुर – सोनहत मार्ग पर पड़ने वाले पुल से आप गुजारते हैं तब तिलझरिया की नदी की शांत धीरे-धीरे बहती जलधारा का मधुर संगीत आपको कुछ देर ठहरने हेतु आकर्षित करता है. आज हमारी यात्रा के इस पड़ाव में हमारे साथ शामिल है. साहित्यकार गौरव अग्रवाल, पर्यावरण चिंतक साइकिल यात्रा के चर्चित सतीश द्विवेदी एवं गरुड़ डोल गांव के कृषि पुत्र मदन सिंह. तिलझरिया को पर्यटकों तक पहुंचाने के प्रयास में गांव वालों से बातचीत में पता चला कि आगे ढूलकू गांव की पहाड़ी से निकलने वाला तुर्रा का निरंतर पानी तथा पड़ेवा गांव का कउवा खोह नाला और बिहारपुर सिसौली पारा नाला मिलकर जब आगे बढ़कर सड़क पार करते हैं तब इसे तिलझरिया के नाम से जाना जाता है. जो आगे चलकर घुनैटी स्थल पर ऊंची नीची बाधाएं पार करते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई हसदो नदी में मिल जाती है.
तिलझरिया नदी के इस संगम में शांत बहने वाली नदी जब दाहिने – बाएं मुड़ती हुई आगे बढ़ती है तब ऐसा प्रतीत होता है कि कोई छोटा नटखट बच्चा अपने छोटे-छोटे पैरों पर दौड़ने की कोशिश कर रहा हो और लड़खड़ा कर गिरने के बाद अपने आसपास चारों तरफ एक नजर देखकर पुनः उठ खड़ा होता है और फिर दौड़ने लगता है. इसी बहते पानी के शांत गुनगुनाते स्वर का आनंद लेना चाहे तब आसपास नदी के रेत के बीच पड़े चट्टानों पर लेट कर अपनी आंखें मूंद कर शांत मन से इस बहते जलधारा के गुनगुनाते गीत आप सुन सकते हैं. कहीं-कहीं यह बहता पानी अपने रास्ते में अचानक छलाँग लगाकर चट्टानों से नीचे किसी बच्चों जैसी कूद जाती है, और छोटे जलप्रपात का सौंदर्य बोध कराती है. इसी जलप्रपात के पास बैठकर अपने हथेलियां से पानी की धार की संवेदना को महसूस करना ऐसे क्षण है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है शब्दों में नहीं लिखा जा सकता. इन्हीं संवेदना के क्षणों से कवि की कल्पना कविता रचती है और कलाकार को कुछ नये निर्माण की प्रेरणा देती है. बहते पानी की धार में अपने पैर डालकर सूरज की किरणो के परावर्तन से बदलते पैरों के रूप का आनंद हमें भाव विभोर कर देता है पानी के बहने के साथ-साथ जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, जलप्रपात की क्रमशः बढ़ती ऊंचाई अर्थात पानी का ज्यादा गहराई में गिरने का रूप ऐसा प्रतीत होता है मानो आप किसी बढ़ते हुए बच्चे की किशोरावस्था का सौंदर्य देख रहे हो, और खुशी महसूस कर रहे हो. आगे बढ़कर यह जलप्रपात लगभग 15 फीट ऊंचाई से गिरती है. यहां आप अपने बच्चों को ऊंचाई से पानी का बहाव एवं नीचे गिरते पानी तक पहुंचकर जलप्रपात के निर्माण की भौगोलिक कहानी बता सकते हैं. परिवार के साथ गुनगुनी रेत पर कुछ घंटे की आपकी यात्रा आपको पूरी तरह तनाव मुक्त कर देती है. सूखी रेत को खोद कर स्वच्छ निथारा हुआ पानी पीना तथा गीले रेत को परौं के ऊपर थापकर छोटे-छोटे घरों का निर्माण बच्चों के स्मृतियों के वे पन्ने हैं जो आपको केवल यही मिलेंगे और एक बार रेत के इस घर को बनाने के बाद बच्चे इसे जीवन जीवन भर भूल नहीं सकते.
एमसीबी जिले के मनेन्द्रगढ़ मुख्यालय से आगे राष्ट्रीय राजमार्ग 43 कटनी गुमला मार्ग से आगे अंबिकापुर की ओर चलते हुए 9 किलोमीटर के बाद कठौतिया से पश्चिम दिशा की ओर मुड़कर हम छ.ग. राज्य मार्ग क्रमांक 8 में आगे बढ़ते है. पक्की सड़क पर घुमावदार जंगल के बीच से गुजरती यह राज्य मार्ग 08 की पक्की सड़क पेंड्री, घुटरा गाँव से होते हुए लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर तय करने के बाद बिहारपुर पहुंचती है, जहां उत्तर दिशा की ओर एक डामर रोड दिखाई पड़ती है . इसी मार्ग से मुड़कर हमें अपनी आगे की यात्रा तय करनी है. अतः इस मार्ग से मुड़कर आगे लगभग 3 किलोमीटर चलने पर हमें ऊंची ऊंची पहाड़ियों के बीच से सर्पिल आकार की पक्की सड़क पार करते ही मिलता है तिलझरिया नदी का पुल के नीचे बहता हुआ पानी और तिलझरिया का सौंदर्य. जहां पश्चिम दिशा से आई दो जल- धाराएं दिखाई पड़ती है जो आगे तिलझरिया बनकर आगे बढ़ती हुई दूर तक निकल जाती है. सड़क को पार करने से पहले ढुलकू गांव से आने वाली बेलहिया नाला पर एक छोटा सा बांध बनाकर पानी रोकने का प्रयास वन विभाग द्वारा किया गया है ताकि आसपास के पशुओं और पक्षियों को गर्मी में पीने का पानी मिल सके और पानी का बहाव अनवरत आगे की तिलझरिया में बना रहे.
यह सड़क बिहारपुर से सोनहत को जोड़ती है जो रामबन गमन मार्ग का भी एक रास्ता है. यही रास्ता आगे बनिया नाला के ऊपर से गुजरता है. यह वही बनिया नाला है जो हसदो नदी को तेज धार देने वाली सबसे तेज चलायमान जीवित नदियों मे से एक है. यह सड़क आपको छत्तीसगढ़ के हसदो नदी पर बने चर्चित गौरघाट जलप्रपात तक भी ले जाती है. आगे बैरागी गांव होकर छिछली पानी एवं जटाशंकर तक पहुंचाने का रास्ता भी इसी रास्ते में से जुड़ा हुआ है. किवदंतियों के अनुसार त्रेता युग में जटाशंकर में ऋषि निदाध का आश्रम रहा है जहां भगवान श्रीराम ने मंत्र शक्ति से धनुष बाण में शस्त्रशक्ति जागृत करने की शिक्षा प्राप्त की थी.
आम, महुआ, गूलर, हर्रा, कोशम और टेशु के मिश्रित वनों के रंग-बिरंगे पत्तों एवं फूलों से सजे जंगलों के बीच से गुजरती तिलझरिया नदी को आसपास फैली सदाबहार कठजमती के छोटे-बड़े पौधे नदी को छूकर उसे दुलारते हैं. इसी प्यार और दुलार से नदियां दुगने उत्साह के साथ आगे बढ़ती चली जाती है और आगे बढ़कर हस्दो जैसी नदी को एक विराट स्वरूप प्रदान करती है. प्रकृति के कहीं-कहीं कठजमती के पेड़ अपनी डालियो और पत्तों से धारा की गति मोड कर पत्थरों से दूर करने का प्रयास भी करती दिखाई पड़ती है. ताकि जलधारा को पत्थरों की चोट से बचाया जा सके. मित्रों के साथ छोटे वनभोज या पिकनिक के लिए बच्चों को साथ लेकर तिलझरिया पर्यटन का एक दिन आपको नई चेतना और स्फूर्ति का ऐसा दिवस प्रदान करेगा कि आप इसे भूल नहीं पाएंगे. ऐसा हमारा विश्वास है. लेकिन जब भी आप पर्यटन के लिए तिलझरिया आएं तब याद रखे कि ऐसे पर्यटन स्थलों को स्वच्छ और साफ-सुथरे रखने की जिम्मेदारी भी हमारे ऊपर है. इसलिए सिंगल उपयोग प्लास्टिक पन्नी के प्रयोग से दूर रहकर स्थानीय पत्ते से बने प्लेट दोने का उपयोग करें. सफरी घरेलू बर्तनों का उपयोग भी हम अपनी तैयारियों में रख सकते हैं. यहां आपको बर्तन धोने के लिए पर्याप्त पानी मिलता है. रेत मिलती है और साफ सुथरा जल का एक वातावरण. आनंद और पर्यटन के साथ-साथ इन स्थानों को इसी अवस्था में भावी पीढ़ी को सौपने के लिए जरुरी है कि इसे स्वच्छ रखने में अपना सहयोग प्रदान करें.
28 करोड़ वर्ष पुराने मैरिन फासिल्स , नागपुर से चिरमिरी नई रेल लाईन हेतु नागरिकों की आवाज तथा इसकी कठिनाइयों को सरकारों तक पहुंचाने में सशक्त भूमिका निर्वाह करने वाली अंचल की विगत पांच दशक की सांस्कृतिक एवं पर्यटन विकास हेतु प्रयासरत संस्था “संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान” मनेन्द्रगढ़ जल्दी ही एम सी बी जिले के मनेन्द्रगढ़ से पर्यटन स्थल घूमाने की योजना बना रही है. आप भी अपने परिवार सहित इसमें शामिल हो सकते हैं और मनेन्द्रगढ़ जिले के पर्यटन स्थलों के विकास के साथ-साथ इसे जानने में अपना योगदान दे सकते हैं बस इतना ही …….
अगली बार चलेंगे किसी नये पर्यटन स्थल की ओर-
राजेश सिन्हा-8319654988