कोरिया की सुंदरता में शामिल है कानों की दो बालियाँ
पर्यटन केंद्र क्र.- 20 -लेखन एवं प्रस्तुति बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव
“गेज और झुमका बाँध”
–आज पर्यटन यात्रा के लिए चले झुमका बाँध–
एमसीबी छत्तीसगढ़:- सरगुजा के नदियों पहाड़ों एवं झरनों का सौंदर्य आदिकाल से मनुष्य को आकर्षित करता रहा है इसके नदी पहाड़ एवं जैव विविधता की कई वृक्ष ऐसे हैं जो पूरे भारत में नहीं पाए जाते एवं जिनके संरक्षण केवल इसी जलवायु के जंगलों में ही संभव हो सकता है अब तो मलियागिरी के हिमाचली चंदन वन की एक लंबी श्रृंखला एमसीबी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के समीप के जंगलों एवं छोटे-छोटे बगीचों में भी तेजी से विकसित हो रही है जो इस बात का प्रमाण है कि यह अंचल हिमाचली श्वेत चंदन के लिए उपयुक्त है इसकी नैसर्गिक सुंदरता हमेशा से देवताओं मनुष्यों एवं ऋषि मुनियों को आकर्षित करती रही है यही कारण है कि त्रेता युग के बाल्मीकि रामायण के साथ-साथ वर्तमान लेखक मन्नू लाल यदु “मन्नू” ने अपने शोध परक पुस्तक “देवभूमि सरगुजा में बनवासी राम” में इस कोरिया एवं सरगुजा अंचल को त्रेता युग की देवभूमि कहा है इसी देवभूमि में ऋषि मुनियों के योग एवं तपस्या के आश्रय स्थल होने का जिक्र मिलता है जो आज भी हमारे लिए पर्यटन एवं आस्था के केंद्र हैं.
प्रकृति के आंचल में कई सितारे इसके सुंदरता को निखारने का प्रयास करते हैं किंतु नदियों की सुंदरता उनमें सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है क्योंकि इसी नदी के जल और बहाव के किनारे जंगल पनपते हैं बढ़ते हैं और विकसित होते हैं पशु पक्षी अपनी प्यास बुझाते हैं और जीवन प्राप्त करते हैं. कवियों की कल्पना में नदी को बहती धारा को प्रगति का पर्याय माना गया है इसी तरह शांत गति से बहती नदी के लिए धीर गंभीर नदी की चाल तथा टेढ़े-मेढ़े बहाव को सर्पिलाकार नदी और चिंतन एवं विचार के लिए कहा जाता है कि ऊपर से नदी की शांति को विजय का पर्याय मत मान लेना अंदर के जल में लगातार संधर्ष और मंथन चल रहा है. जिसका निर्णय क्या होगा यह कहना मुश्किल है. नदिया जंगलों पहाड़ों और कभी-कभी खेतों के किनारे किसी वृक्ष की जड़ से या खेतों का सीना चीर कर (उपका पानी) पानी की धार के रूप में आगे की यात्रा के लिए निकल पड़ती है.
सरगुजा संभाग की नदियों में शामिल कनहर, मोरन, रिहंद, (रेण) एवं महान नदिया है इसी महानदी को कोरिया जिले के सोनहत पहाड़ से निकली हसदेव नदी एम सी बी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ को घेरती हुई आगे बढ़ती है और लंबी यात्रा के बाद आगे विशाल बांगो बाँध का निर्माण कर छ.ग. के विद्युत सूर्य का दर्जा पाती है. यह आगे महानदी मे मिलकर समुद्र तक की यात्रा तय करती है. कोरिया जिले से मुख्य रूप से हसदेव, गेज और गोपद नदी निकलती है हस्देव नदी कोरिया जिले के आसपास से निकलने वाली दो छोटी-छोटी नदियों से पानी प्राप्त कर बारहमासी जलधारा का सतत प्रवाह प्राप्त करती है इसकी सहायक नदियाँ गेज, झुमका, बेनिया और तिलझरिया नदी का प्रवाह घुनौटी में मिलकर आगे बढ़ती है. इस यात्रा मे तान, उतेंग, और चोरनई जैसी छोटी छोटी कई नदियाँ भी शामिल हो जाती है.
कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर की सुंदरता इसके चारों तरफ फैले प्राकृतिक संपदा कोयले के भंडार से परिपूर्ण पहाड़ियों और जंगलों के साथ-साथ हसदेव की सहायक नदियों से भी है. कोरिया के पृष्ठभूमि में रामायण के शोधकर्ता मन्नू लाल यादव के अनुसार देवगढ़ की पहाड़ियां ऋषि जमदग्नि का आश्रय स्थल रहा है जो परशुराम जैसे प्रतापी ऋषि की जन्मस्थली से जुड़ा हुआ है. नदियों के बहाव को लेकर गंगा बेसिन एवं दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली महानदी बेसिन का प्रवाह सोनहत की पहाड़ियों से ही प्रारंभ होता है. इस जिले के सोनहत पहाड़ का छोटा हिस्सा गंगा बेसिन में है तथा शेष हिस्सा महानदी बेसिन में शामिल है. हसदेव नदी का उद्गम स्थल सोनहत के मेंड्रा पहाड़ के दस मील उत्तर में गंगा बेसिन से शुरू होता है जबकि दक्षिण की ओर प्रवाहित महानदी बेसिन में गोपद तथा सोन नदियां समाहित है. कोरिया जिले का पूर्वी क्षेत्र सोन बेसिन में आता है यहां गोबरी नदी अपवाहित होती है जो सरगुजा के सूरजपुर से बहने वाली रेहण नदी में मिल जाती है गोबरी का उद्गम स्थल भी पटना के उत्तरी पहाड़ियों से है.
हसदेव की सहायक नदियों में बेनिया नदी धुनेटी के पास मिलकर आगे बढ़ती है किंतु इससे पहले गेज और झुमका जैसी दो छोटी-छोटी नदियां अपने जलप्रवाह से हसदेव को समृद्ध करती है इन्ही दोनों नदियां को बैकुंठपुर के आसपास गेज एवं झुमका बाँध बनाकर जहां जल संग्रहण का कार्य किया गया है वहीं इसका विशाल संग्रहण एक समुद्र की तरह दिखाई पड़ता है. ऐसा लगता है कि ये दोनो बाँध बैकुंठपुर की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाने के लिए कानों में पहनाई गई दो ऐसी बालियाँ है जो झुमके की तरह इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही है.
कोई भी नदी अपने उद्गम पर बहुत छोटे स्वरूप में प्रारंभ होती है झुमका एवं गेज भी दो छोटी-छोटी ऐसी नदियां है जो प्रारंभिक रूप में कुछ दूर ही चली है लेकिन किसी पारखी नजरों ने इसे छोटे-छोटे बांध बनाकर जहां इसका स्वरूप बदल दिया है वहीं हजारों एकड़ खेतों की सिंचाई ने कृषि कार्य से जुड़े किसानों को जीवन दान दे दिया. इस तरह के छोटे-छोटे बांध जहाँ आज की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने हैं वहीं दूसरी ओर भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं . कोरिया के केराझरिया ग्राम के केतकीझरिया पहाड़ियों से तुर्रा के रूप में निकली झुमका नदी की जलधारा ने इतने बड़े समुद्र को रचने का साहस किया है जिसके एक छोर से दूसरे छोर के पशु पक्षी भी दिखाई नहीं पड़ते. हां वहाँ के जंगलों के कुछ पेड़ अपनी ऊंचाई से कम अर्थात् बौने दिखाई पड़ते हैं . इस बांध के बीच में ऊंची नीची जमीन के टीले को एक बगीचे के रूप में विकसित कर दिया गया है, जिसे आइलैंड का नाम दिया गया है. यहां परिवार सहित पहुँचकर कुछ देर आसपास की विशाल जल राशि एवं हरे भरे बगीचे का आनंद लिया जा सकता है. इस आइलैंड तक पहुंचाने के लिए अलग-अलग तरह की नौकाएं उपलब्ध है जिसमें पैदल बोट, स्पीड बोट, एवं चप्पू बोट अर्थात पतवार से चलने वाली नाव से भी आप आईलैंड तक पहुंच सकते हैं. पानी के अंदर खंभे गाड़कर एक मचान की लंबी श्रंखला बना दी गई है, जो गहरे पानी में पहुंचकर मछलियां पकड़ने एवं मतस्य विभाग का मतस्य पालन भी किया जाता है .कहते हैं कि यहाँ अधिकतम 56 किलो वजन की विशाल मछली निकाली जा चुकु है. यहाँ पर्यटकों को घुमाने की व्यवस्था भी की गई है. इस तरह के निर्माण इस बाँध के आकर्षण को दुगुना कर देते हैं.
राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के कटनी से गुमला जाते समय मनेन्द्रगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 47 कि.मी. दूरी पर इसी मार्ग से झुमका बाँध तक पहुंचने के लिए मुड़ना होगा. उड़गी नाका मे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के सामने से मुड़ती सड़क आपको बैकुंठपुर से 2 किलोमीटर दाहिने दक्षिण पूर्व दिशा की ओर मुड़कर पक्की सड़क से झुमका बाँध पहुंचा देगी. . यहां पहुंचने पर दूर से ही एक फूलों और एवरग्रीन सदबहार पौधों का बगीचा आपको आकर्षित करता है. सड़क किनारे हरी भरी दूब के मैदान देखकर बच्चे घर के परिजनों का हाथ छोड़कर दौड़ने और खेलने का आनंद लेने की कोशिश करते हैं. इसी खुले बगीचे में बड़ी कृतिम मछली का निर्माण पर्यटकों को आकर्षित करता है और आपको मोबाइल निकाल कर परिवार सहित अलग-अलग एंगल से फोटोग्राफी के लिए उत्साहित करता है. लोहे और कंक्रीट से बना विशाल मछली का स्वरूप केवल बाहर से अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इसके भीतर रंग बिरंगी मछलियों के एक्वेरियम (मछलीघर) का संसार मौजूद है, जो छोटे से भुगतान के द्वारा प्राप्त टिकट से आप इसे सपरिवार देख सकते हैं. छोटे-छोटे बाँस एवं लोहे के बने छायादार स्थल आपको इसके नीचे बैठकर चाय कॉफी पीने के लिए रोमांचित करते हैं . इस परिसर में स्थित रेस्टोरेंट में पूर्व भुगतान कूपन प्राप्त कर आप अपने चाय नास्ते एवं वर्तमान समय के फास्ट फूड के बर्गर पिज्जा और बच्चों के लिए कुरकुरे, चिप्स की पर्याप्त व्यवस्था कर सकते हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार झुमका नदी पर बने इस बांध का नाम “रामानुज प्रताप सागर बांध” है, जो बैकुंठपुर स्टेट के सुचरित्र तेजस्वी राजा स्वर्गीय रामानुज प्रताप सिंह देव की स्मृति में उनके पुत्र एवं तत्कालीन वित्त मंत्री माननीय स्वर्गीय रामचंद्र सिंह देव के प्रयास एवं भविष्य की दूर दृष्टि को ध्यान में रखते हुए इस बांध का निर्माण कराया गया था. जिसका उद्घाटन 1982 में तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय अर्जुन सिंह के हाथो से संपन्न हुआ था. स्वर्गीय रामचंद्र सिंह देव की सोच में यह विचार शामिल था कि “प्राकृतिक संसाधन हमें केवल अपने उपभोग के लिए नहीं बल्कि यह ऐसी विरासत है जो हमें भविष्य की पीढ़ी को भी सौंपना है. उनकी यही सोच इस रामानुज प्रताप सागर बांध के निर्माण में क्रियान्वित दिखाई पड़ती है.
“रामानुज प्रताप सागर बांध” के और ज्यादा विकास की चिताओं के बावजूद हजारों एकड़ सिंचाई के साथ मछली पालन का यह विशाल केंद्र आज हमारी धरोहर है. झुमका बांध को पर्यटन केंद्र बनाकर पर्यटको के मनोरंजन के साथ एक अतिरिक्त आय का साधन बनाने की हमारी कोशिश जरुर रंग लाएगी. हमारे विश्वास की यह ऐसी विरासत है जिसे हम भावी पीढ़ी के लिए भी एक धरोहर के रूप में सौंप रहे हैं. इसके विकास के लिए निरंतर गंभीरता के साथ हमारा चिंतन इसे और खूबसूरत बना सकेगा. हमारे चिंतन एवं विकास की सोच इस पर्यटन स्थल को प्रदेश का नंबर वन पर्यटन स्थल बनने से रोक नहीं पाएगी. बच्चों को प्राकृतिक नदियों से बनते बाँध की तकनीक और इसके विशाल पाट के साथ समंदर जैसी अथाह जल राशि का कौशल, बोटिंग, फिशिंग से भरपूर यह झुमका बाँध आपके पर्यटन में रोमांच और मनोरंजन की यादें जीवन के ऐसे यादगार पल बन जायेंगे जिन्हे भूलना संभव नहीं होगा. ऐसा हमारा विश्वास है.
1982 में उद्घाटित यह झुमका बांध सिंचाई तथा भूजल संरक्षण को बढ़ाने के लिए विकास के पन्नों की वह तस्वीर है जो किसी स्वप्नदृष्टा द्वारा देखी गई थी. आज 42 वर्षों बाद हम इसका सिंचाई के लिए कितना उपयोग कर पा रहे हैं इसकी जानकारी के आंकड़े सरकारी फाइलों में बंद है किंतु पर्यटन स्थल विकसित करने हेतु किए गए प्रयासों में अभी भी हम पर्याप्त पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाए हैं. पर्यटकों का इस पर्यटन स्थल से बनी दूरी हमारी चिंता में शामिल होनी चाहिए. हमें ऐसी योजनाएं बनानी होगी कि इस पर्यटन स्थल पर खर्च किए जाने वाले धन पर कोई प्रश्न चिन्ह ना लगने पाए. सामान्य चाय नाश्ते की मांग पर भी नास्ते उपलब्ध नहीं होना पर्यटकों को निराश करता है. एक्वेरियम की स्थिति को और अच्छा करने एवं बच्चों के खेलकूद के आधुनिक खिलौनों से आकर्षक बनाने की कोशिश पर्यटकों को आकर्षित करने में सहायक होगी. सप्ताह के कुछ विशेष दिनों में विशिष्ट कार्यक्रमों के आयोजन भी पर्यटकों को आकर्षित करने का सशक्त माध्यम बन सकते है
आज की यात्रा को इसी पड़ाव पर विराम देते हैं…..
अगली बार चलेंगे नए पर्यटन की ओर…….