
सूचना का अधिकार अधिनियम: पारदर्शिता की उम्मीद पर भारी देरी
छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में अपीलार्थियों को नहीं मिल रही समय पर जानकारी
रायपुर :- छत्तीसगढ़ में सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) आम जनता के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही का एक महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि राज्य सूचना आयोग में अपीलों के निपटारे में तीन से चार साल का समय लग रहा है। इस देरी के कारण आरटीआई के माध्यम से मांगी गई जानकारी का महत्व खत्म हो जाता है। जन सूचना अधिकारी (PIO) भी आयोग के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं, जिससे यह अधिनियम अपनी प्रभावशीलता खोता नजर आ रहा है।
अपील के निपटारे में हो रही देरी
राज्य सूचना आयोग में अपीलें दायर करने वाले नागरिकों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। एक अपील के निराकरण में तीन से चार वर्ष का समय लग रहा है, जिससे समय पर सूचना प्राप्त करने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। कई मामलों में जब तक सूचना मिलती है, तब तक उसका कोई उपयोग नहीं रह जाता।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता राजेश वर्मा कहते हैं,
“सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बना था, लेकिन आयोग में अपीलों के निराकरण में हो रही देरी से इसका असर खत्म हो रहा है। अधिकारी जानबूझकर सूचना रोक रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मामला आयोग तक पहुंचने पर भी कई वर्षों तक कुछ नहीं होगा।”
जन सूचना अधिकारियों पर खत्म हो रहा भय
सूचना का अधिकार अधिनियम लागू होने के शुरुआती वर्षों में जन सूचना अधिकारियों (PIO) पर पारदर्शिता बनाए रखने का दबाव था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। कई जन सूचना अधिकारी आयोग के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि आदेश का उल्लंघन करने पर भी कार्रवाई में वर्षों लग जाएंगे।
सूचना आयोग के आदेशों की अवमानना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के बाद भी मामलों के निराकरण में तीन से चार साल लग रहे हैं। इससे यह साफ हो रहा है कि पारदर्शिता की मूल भावना कमजोर पड़ रही है।
प्रथम अपील अधिकारी भी नहीं निभा रहे जिम्मेदारी
सूचना अधिकार अधिनियम में प्रावधान है कि यदि कोई आवेदक जन सूचना अधिकारी द्वारा समय पर सूचना न मिलने पर असंतुष्ट होता है, तो वह प्रथम अपील अधिकारी (FAA) के पास अपील कर सकता है। लेकिन प्रथम अपील अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल साबित हो रहे हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष दुबे बताते हैं,
“पहली अपील में ही यदि अधिकारी सही निर्णय लें, तो मामला आयोग तक पहुंचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन प्रथम अपील अधिकारी भी जन सूचना अधिकारियों का ही बचाव कर रहे हैं।”
आयोग के आदेशों का पालन नहीं कर रहे PIO
सूचना आयोग द्वारा बार-बार आदेश देने के बावजूद कई मामलों में जन सूचना अधिकारी (PIO) सूचना उपलब्ध नहीं करा रहे हैं। ऐसे मामलों में आयोग को इन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।
एक आरटीआई आवेदक अजय सिंह बताते हैं,
“मुझे एक सरकारी योजना से संबंधित जानकारी चाहिए थी। पहले जन सूचना अधिकारी ने सूचना नहीं दी, फिर मैंने प्रथम अपील अधिकारी से अपील की, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया। अंत में मैंने राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दायर की, लेकिन चार साल बाद भी कोई फैसला नहीं हुआ। अब जब सूचना मिलने की उम्मीद है, तब वह पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुकी है।”
सूचना के अधिकार अधिनियम का पूरा विवरण
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 एक ऐसा कानून है जो भारत के नागरिकों को सरकार से जुड़ी किसी भी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है। इस कानून का उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है।
प्रमुख प्रावधान:
1. सूचना का अधिकार:
कोई भी नागरिक किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना मांग सकता है।
सूचना प्रदान करने की समय-सीमा 30 दिन है।
2. जन सूचना अधिकारी (PIO):
प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी नियुक्त किया जाता है, जिसकी जिम्मेदारी सूचना प्रदान करना होती है।
यदि जन सूचना अधिकारी सूचना देने से इनकार करता है, तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
3. प्रथम अपील अधिकारी (FAA):
यदि कोई आवेदक जन सूचना अधिकारी के उत्तर से संतुष्ट नहीं है, तो वह 30 दिनों के भीतर प्रथम अपील अधिकारी के पास अपील कर सकता है।
4. राज्य सूचना आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग:
यदि प्रथम अपील अधिकारी भी सूचना प्रदान नहीं करता है, तो मामला राज्य या केंद्रीय सूचना आयोग के पास जाता है।
आयोग के पास अधिकार होता है कि वह अधिकारियों पर जुर्माना लगा सके।
5. जुर्माने का प्रावधान:
यदि कोई जन सूचना अधिकारी जानबूझकर सूचना रोकता है, तो उसे ₹250 प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम ₹25,000 तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
सूचना अधिकार अधिनियम का भविष्य
वर्तमान स्थिति में सूचना अधिकार अधिनियम की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जब अपील के निपटारे में वर्षों का समय लग रहा है और अधिकारी आयोग के आदेशों का पालन नहीं कर रहे, तो यह कानून निष्प्रभावी होता जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय:
सूचना आयोग को अपने फैसले तेजी से लेने होंगे।
आयोग को अधिकारियों पर सख्ती से जुर्माना लगाना होगा।
सरकार को सूचना आयोग की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता की उम्मीद लेकर आया था, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। यदि जल्द सुधार नहीं किया गया, तो यह कानून महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा।
राजेश सिन्हा 8319654988