
उत्तरी छत्तीसगढ़ का पर्यटन उड़ान पर है आप जरा पंख तो दीजिए
पर्यटन-अंक 36 बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से
एमसीबी – भारत देश अपनी सांस्कृतिक ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के कारण पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है. धरती के जिस देश में भगवान राम और कृष्ण ने जन्म लिया है निश्चित ही वह भूमि पुण्य धरा है, यही कारण है कि सूर्य अपने उदय के साथ ही रामकृष्ण की जन्मस्थली भारत भूमि को अपनी किरणों से प्रथम स्पर्श कर प्रणाम करता है और फिर अपनी दिन भर की आगामी यात्रा के लिए निकल पड़ता है. इस देश के विशाल आंचल में फैली पूर्वी छोर की ऊंचाई पर स्थित अरुणाचल प्रदेश के डोंग कस्बे मे सबसे पहला सूर्योदय हमें दिखाई पड़ता है.
धरती के पूर्व में बसा भारत एक अनसुने लेकिन गम्भीर संदेश का संचार करता है – पूर्व हमेशा ऊंचाइयों तक पहुंचने का पथ प्रदर्शक है और पश्चिम आपको अस्ताचल की ओर जाने का मार्ग दिखाता है. इस संदेश का अंतर सामाजिक पृष्ठ पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है. भारतीय संस्कृति शांति सद्भावना”, “जियो और जीने दो” जैसे आदर्श सिद्धांत पर चलती है. हम “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” जैसे विचारों के पोषक है. हमारी वाणी और विचारों में “वसुधैव कुटुंबकम्” की कल्पना साकार रुप लेती है, यही कारण है कि भारतीय संसद के मुख्य द्वार पर यह स्लोगन बड़े सम्मान के साथ उत्कीर्ण किया गया है. हमारी भावनायें और विचार विश्व एकता और मानवता की स्वतंत्रता को पूरे विश्व में स्थापित करना चाहती है.
. सांस्कृतिक विरासत का यह भारत छोटे-बड़े कई राज्यों में बटा हुआ है. इनमें से कई राज्य ऐसे भी हैं जो विश्व के कई देशों के क्षेत्रफल और आबादी से बड़े हैं. मध्य भारत का राज्य मध्य प्रदेश एक विशाल भूभाग में फैला हुआ है लेकिन बदलते समय में पिछड़े क्षेत्र के विकास का संतुलन बनाने हेतु राज्य का कुछ हिस्सा अलग कर छत्तीसगढ़ राज्य को जन्म दिया गया. विशाल भारत का मध्य प्रांत छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध खनिज संपदा के साथ 44% हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य का विरासत लिए हुए एक परिपूर्ण राज्य है. छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन धरोहरों को वर्ष 2022 से यूनेस्को में दर्ज कराने की प्रतिबद्धता एवं प्रयास ने अस्थाई तौर पर ही सही लेकिन 2024-25 में सफलता पाई है. इस तरह दो कदम ही सही पर्यटन एवं धरोहरों के विकास के प्रति हमारी प्रतिबद्धता प्रमाणित हुई है. छत्तीसगढ़ का उत्तरी क्षेत्र पर्यटन के अपार संभावनाओं का अकूत खजाना अपने आंचल में समेटे हुए हैं लेकिन अभी तक पारखी नजरों की कमी के कारण पर्यटन विकास का में यह अंचल वह मुकाम नहीं बन पाया है जो उसे मिलना चाहिए. पर्यटन के बारे में कुछ लेखकों की पंक्तियां बहुत सार्थक दिखाई पड़ती है –
” पर्यटन एक ऐसा अनुभव है जो व्यक्ति को देश-विदेश के प्राकृतिक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विकास के विभिन्न पहलुओं से जोड़ता है.
“पर्यटन मात्र किसी स्थान विशेष की यात्रा नहीं बल्कि आपकी सोच ज्ञान और दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का एक सशक्त माध्यम है.
(“छत्तीसगढ़ के अनदेखे पर्यटन स्थल” पुस्तक से साभार)
उत्तरी छत्तीसगढ़ अपने पर्यटन में एक ओर विंध्याचल पहाड़ की बिखरती पर्वत श्रेणियों से निर्मित सोनहत, देवगढ़, कैमूर एवं मैनपाट की पहाड़ियों के प्राकृतिक दर्शन की खूबसूरती में खो जाने का निमंत्रण देता है वही इन पहाड़ियों से निकलती छोटी-छोटी जलधाराएं अपनी सखि सहेलियों की धाराओं के जल के साथ आगे बढ़कर बड़ी नदियों का नाम पाती है. हसदो, गेज, झुमका, रेण उत्तरी छत्तीसगढ़ की ऐसी नदियां हैं जो इस अंचल के खेतों को धीरे-धीरे अपने जल से सींचती हैं और आगे बांगो बांध का नाम पाकर बिजली की शक्ति बन जाती है. पहाड़ों और जंगलों की ऊंचाइयों से ढलानों की ओर बढ़ती यही नदियां अपने मन मोहक सौंदर्य और सैकड़ों फुट नीचे गिरकर बने जलप्रपात से आपको आकर्षित करती है. कहीं कहीं इनका शांत भाव और मंथर गति से बहती जलधारा का मनुहार भरा आमंत्रण आपका रास्ता रोक लेती हैं. इस क्षेत्र ने अपने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में त्रेता युग में अवतरित भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम के वनवास काल के कई जाने अनजाने धरोहरों को समेट कर रखा है. जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों के बीच उनका जीवन दर्शन और परिवेश भी आदिवासी जनजीवन में यहां वहां दिखाई पड़ता है. कहीं-कहीं आदिवासी महिलाओं और पुरुषों के हाथों में गुदे हुए गोदने में सीताराम का नाम भी आपको दिखाई पड़ेगा. हजारों वर्षों बाद भी आज उनके स्मृतियों में राम बसे हुए हैं. अयोध्या से मध्य प्रदेश की यात्रा के बाद छत्तीसगढ़ में प्रथम पड़ाव जहां भगवान राम के चरण पड़े वह स्थान सीतामढ़ी हरचौका और किनारे बहती मवई नदी के गांव राज्य की सीमाओं को बाँटती है.
“छत्तीसगढ़ में वनवासी राम” पुस्तक में राम वन गमन मार्ग के शोध करने वाले डॉ. मन्नू लाल यदु ने इस क्षेत्र को दंडकरण्य का सबसे सुंदर स्थल निरूपित किया है. अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह स्थल देव भूमि कहलाती थी. देवभूमि का क्षेत्र होने के कारण विख्यात ऋषि मुनियों का निवास एवं यज्ञ स्थल इस क्षेत्र में स्थित रहे हैं. हसदो नदी के तट पर ऋषि वामदेव का आश्रम और पुलस्थ मुनि के पुत्र त्रिकालदर्शी, दिव्यास्त्त्रों के निर्माता तथा मंत्र शक्ति से बाणों में शक्ति पैदा करने का अद्भुत ज्ञान रखने वाले महामुनि निदाध का जटाशंकर आश्रम आज भी इसके गवाह हैं. रेण नदी के तट पर स्थित जमदग्नि ऋषि एवं उनकी पत्नी रेणुका का आश्रम के धरोहर इस क्षेत्र की पूंजी है.
वनवासी राम सीतामढ़ी हरचौका से प्रवेश करते हुए आगे त्रिकाल संध्या आरती के लिए घघरा सीतामढ़ी तक पहुंचे थे एवं अपने चौमासा के लिए उन्होंने छतौड़ा आश्रम जैसे दूरस्थ घनघोर जंगल में अपना विश्राम स्थल बनाया था. भगवान राम के चरण स्थलों के विकास स्थल क्रमांक 70-71– और 72 केंद्र सरकार के विकास सूची में शामिल है. धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की अपनी ऊंची विरासत लिए यह स्थल अभी भी राष्ट्रीय पर्यटन से जुड़ने हेतु वर्षों से रास्ता निहार रहे हैं. इन्हीं जंगलों के बीच से गुजरते हुए वन्य प्राणियों की चहल कदमी और नदियों का बहाव जगह आपको रोक लेते है. जनकपुर कोटाडोल स्टेट हाईवे क्रमांक 3 पर स्थित 14वीं सदी का घघरा मंदिर भी अपने सात सौ वर्षों की दास्तान कहता हुआ अपने जीर्णोद्धार की याचना भी करता है . पुरातत्व विज्ञानी डॉ. वर्मा के अनुसार इस मंदिर की कलाकृति 14वीं सदी की देन है. इस मंदिर की विशेषता है कि यह बिना सीमेंट के जोड़ा गया मंदिर है जो तात्कालिक समय की वास्तु शिल्प का ऐसा उदाहरण है जो आपको आश्चर्यचकित कर देगा. इसके प्रत्येक पत्थर पर अलग-अलग मानव आकृतियां उकेरी गई है. बड़े-बड़े पत्थरों की जोड़ाई एक दूसरे के ऊपर रखकर संभवत खाचे और उभार पद्धति से की गई है. इसी तरह भगवान राम के चौमासा विश्राम स्थल, की जानकारी उदयपुर के पास सीता बेंगरा की गुफाओं आज भी इस अंचल के निवासी मानते हैं. इस गुफा में बौद्ध कालीन ब्राह्मी लिपि में लिखी गई पंक्तियों इसे हजारों वर्ष पुरानी साबित करती है. छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग का बोर्ड भी इसे प्रमाणित करता है. यह भी जानकारी मिलती है यहां महाकवि कालिदास की रचना स्थली रही है और कालिदास ने यक्ष और उसकी प्रेयसी की कथा को माध्यम बनाते हुए संस्कृत का मेघदूत जैसी प्रसिद्ध रचना की थी. मुक्ताकाश रंगमंच में इसे भारत का सबसे पुराना रंगमंच होने की मान्यता प्राप्त है.
रामायण कालीन ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का यह क्षेत्र वर्तमान में मध्य प्रदेश के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान को गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के तैमूर पिंगला से जोड़कर जोड़कर गुरु घासीदास तैमूर पिंगला बाघ अभयारण्य बना दिया गया है. इस अंचल में अभी दो नए शासको के जन्म की खबर ने बाघों के लिए इसे अपने नए बच्चों के लिए उपयुक्त स्थल निरूपित किया है. जो छत्तीसगढ़ के चार जिलों महेंद्रगढ़-चिरमिरी -भरतपुर,कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर की सीमाओं तक विस्तार पा चुका है. 14 बाघ के पद चिन्हों से भरा यह जंगल अब बाघ अभयारण्य में एशिया का सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बन गया है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के राज्य की सीमाओं से गुजरने वाला यह अभ्यारण्य मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र से प्रारंभ होकर छत्तीसगढ़ के तैमूर पिंगला टाइगर रिजर्व ,झारखंड (पलामू तक 209 कि.मी.) तक विस्तार पा चुका है जिसमें बाघ अपने-अपने क्षेत्र का बंटवारा कर सकते हैं. उत्तरी छत्तीसगढ़ के अचानक मार जंगलों का सौंदर्य चीतल, कोटरी नीलगाय, हिरण, लोमड़ी, पैंगोलिन नेवला जैसे वन्य जीव की शरण स्थली के साथ-साथ बाघ का अभ्यारण बनकर उभरा है. और पर्यटन की नई संभावनाओं का संकेत दे रहा है. राष्ट्रीय स्तर की कई एजेंसियां अब इस क्षेत्र में इको टूरिज्म तथा ट्रैकिंग टूर के लिए अपने पैकेज तैयार करने लगे हैं. वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग छत्तीसगढ़ द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार हिमालय पहाड़ी पर ट्रैकिंग करने वाली कंपनी इंडिया हाईक टूर एवं ट्रैक के लिए अनुबंध कर चुकी है. अक्टूबर से जनवरी माह में टूर एवं ट्रैकिंग के लिए पर्यटकों को इसमें शामिल किया जाता है. कोरिया में अब तक कुछ विदेशी पर्यटको सहित देश के अलग-अलग हिस्सों से पर्यटक आकर्षित हो रहे हैं. ट्रैकिंग के व्यवस्थापको की सोच है कि बैंक, कोल माइंस एवं आईटी सेक्टर की कंपनियां लोगों को यात्रा सुविधा उपलब्ध कराती है इसका उपयोग शहरी जीवन से दूर प्राकृतिक वादियों में फैली शांति और सुकून तलाशते पर्यटकों को एजेंसिंया उनकी इच्छा अनुसार शहरों की भाग दौड़ भरी जिंदगी से दूर प्रकृति की गोद में वन्य पशुओं जीव जंतुओं तथा आदिवासी जनजीवन से परिचित कराने हेतु मध्य प्रांत के इस क्षेत्र का रुख कर रही है. जंगलों के मैदानी इलाकों में टेंट लगाकर चार दिनों की यात्रा और 10 किलोमीटर की ट्रैकिंग नई उम्र के पर्यटकों में उत्साह और रोमांच भरती है. परिवार एवं बच्चों सहित पर्यटकों का यहां पहुंचना पर्यटन संभावनाओं के विकास की ऊंची उड़ान का विश्वास दिलाता है समय की मांग है कि शासन प्रशासन तथा निजी एजेंसियां पर्यटन को बढ़ावा दें तब निश्चित ही उत्तरी छत्तीसगढ़ का यह पर्यटन स्थल पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल होगा.
सरगुजा राजाओं की शान कहे जाने वाले हाथियों के झुंड का आवागमन मार्ग होने के कारण इस स्थल का आकर्षण दुगना हो जाता है यह अंचल हाथियों का कॉरिडोर के रूप में भी बहुत जाना जाता है लेमरु हाथी अभ्यारण्य सरगुजा में हाथियों का गलियारा है. यह अभ्यारण कोरबा सरगुजा और धर्म जयगढ़ वन मंडल के क्षेत्र से गुजरता है वन्य संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 36 ए के तहत अधिसूचित यह क्षेत्र 1995 वर्ग किलोमीटर है किंतु हसदो अरण्य के कोयले से भरे जंगल का क्षेत्र आ जाने के कारण केंद्र सरकार द्वारा इसका क्षेत्रफल घटकर 450 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया है.
उत्तरी छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक पर्यटन विकास अब आगे बढ़ने की तैयारी कर रहा है. पर्यटन की संभावनाओं के बीच पर्यटकों के आने-जाने से स्थानीय बाजार को समृद्धि के आसार बढ़ेंगे. आवश्यकता इस बात की है कि पर्यटन स्थल के आसपास ग्रामीण परिवेश में स्वच्छ एवं सुरक्षित विश्राम स्थल, भोजन एवं जलपान व्यवस्था के ऐसे स्थल विकसित किये जाए जहां निर्माण एवं परिवेश में ग्राम्यांचल की झलक दिखाई पड़ती हो. सोफा एवं गद्दों में जीवन गुजारने वाले पर्यटक ग्रामीण परिवेश के मोढ़े और रंगबिरंगे पट्टों से बनी कुर्सियों में ज्यादा आराम और खुशी महसूस करते हैं. घरों की दीवार एवं बैठक में ग्रामीण भित्ति कला एवं आंचलिक परिवेश की साज सज्जा तथा भोजन व्यवस्था पर्यटकों के सामने परिवर्तन का नया आयाम प्रस्तुत करती है तथा पर्यटकों को बांधकर रखती है.
उत्तरी छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र अपने पर्यटन में वनवासी भगवान राम के पैरों में चुभे कांटों का गवाह है ,वही मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिले एवं कोरबा जिले के सीमा छोर में स्थित “बाजन पथरा” के पत्थरों मे उभरते संगीत की स्वर लहरी का गवाह है . मैनपाट के टुनटुनिया पत्थर और ढलान से ऊंचाइयों की ओर बहते “उल्टा पानी” के रहस्य के साथ-साथ “दलदली पत्थर” के आश्चर्य एवं रोमांच से भरा हुआ है. जशपुर के जंगलों से गुजरती राष्ट्रीय राजमार्ग 43 की लोरो घाटी के रास्ते ऊपर से देखने पर बच्चों की स्लेट पर खींची आड़ी- तिरछी रेखाओं जैसी दिखाई पड़ती है लेकिन इसका सौंदर्य आपके अवचेतन मस्तिष्क में वर्षों तक कैद हो जाता है. जशपुर की हरी भरी वादियों के आकर्षण ने यहाँ के तस्वीरों को इंडिगो की हेलो 6 की पत्रिका के मार्च अंक में स्थान दिया है, ताकि देश-विदेश के पर्यटक जशपुर की वादियों का आनंद ले सके. “देश देखा क्लाइंबिंग सेक्टर” जैसी एजेंसियां” के जुड़ जाने से रॉक क्लाइंबिंग के रोमांच भी अब इस क्षेत्र के पर्यटन में शामिल हो चुके हैं. प्रशिक्षित अनुभवी लोगों के साथ खुले आसमान में टिमटिमाते तारों को देखने का यह अवसर प्रदान करती है. प्राचीन जंगलों के बीच 275 मीटर की ऊंचाई लिए मधेश्वर पहाड़ का प्राकृतिक शिवलिंग दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है, जो इसी उत्तरी छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक अंचल में आपको प्राप्त होता है.
रांची, वाराणसी और बांधवगढ़ जैसे मुख्य पर्यटन केदो से कुछ घंटे की दूरी पर उत्तरी छत्तीसगढ़ का यह पर्यटन क्षेत्र पर्यटकों को बांधने और आकर्षित करने की क्षमता रखता है. राज्य और केंद्र सरकार इसे एक पर्यटन कॉरिडोर के रूप में जोड़ सकती है. यहां के प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पर्यटन नई ऊंचाइयां की उड़ान भरने की तैयारी में है लेकिन इसे उड़ान भरने के लिए जो पंख चाहिए वह आप इसे दे सकते हैं.
बस इतना ही फिर मिलेंगे किसी अगले पड़ाव पर
राजेश सिन्हा 8319654988