सोनहत के जंगलों में भौगोलिक कर्क रेखां -ऐसा पर्यटन स्थल जहां आपकी छाया भी आपका साथ छोड़ दे
बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से
विशेष आलेख। विशाल ब्रह्मांड में विचरण करती निहारिका में हजारों लाखों सौरमंडल हैं। प्रत्येक सौरमंडल में उपस्थित ग्रह अपने सूर्य के आकर्षण से बंधे एक निश्चित दूरी पर सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं । हमारे सूर्य से जुड़े सौरमंडल में उपस्थित सात ग्रहों में हमारी पृथ्वी भी शामिल है जिसमें जीवन है लेकिन अब तक शेष किसी भी ग्रह में जीवन की जानकारी उपलब्ध नहीं है। पृथ्वी पर किसी भी देश की उपस्थिति एवं देश के गांव और स्थान की जानकारी प्राप्त करना एक जटिल प्रक्रिया है। इसके लिए वैज्ञानिकों द्वारा अलग-अलग देश की सीमाओं में बटे एक देश से दूसरे देश की दूरी की जानकारी के लिए एक वैज्ञानिक प्रक्रिया की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पृथ्वी को अक्षांश और देशांतर की काल्पनिक रेखाओं में बांट दिया गया है। जिसमें पृथ्वी से चलने वाली 180 समानांतर रेखाओं को अक्षांश रेखाएं माना गया जो भूमध्य रेखा ऊपर उत्तरी गोलार्ध एवं दक्षिण की ओर दक्षिणी गोलार्ध में फैली रेखाएं है। मुख्य रूप से पांच रेखाओं में बांटी गई यह रेखा भूमध्य रेखा के साथ उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा तथा आर्कटिक रेखा (उत्तरी मेंरेडियन) और इसी प्रकार भूमध्य रेखा से दक्षिणी गोलार्ध की तरफ मकर रेखा और अंटार्कटिक रेखा (दक्षिणी मेंरेडियन) की काल्पनिक रेखाओं के रूप में जानी जाती है। यह रेखाएं भूमध्य रेखा से 23.5 डिग्री पर उत्तर एवं दक्षिण में स्थित है इस रेखा की काल्पनिक उपस्थिति उस क्षेत्र विशेष की जलवायु एवं पर्यावरणीय प्रभाव को इंगित करती है।
इसी तरह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक 360 देशांतर काल्पनिक रेखाएं मान्यता प्राप्त हैं। यह देशांतर रेखाएं ध्रुव केदो पर शून्य से शुरू होती हैं और पृथ्वी की गोलाई की सतह पर गोलाकार बढ़ती हुई दक्षिणी ध्रुव में समाप्त हो जाती हैं प्रत्येक देशांतर रेखा की आपस में दूरी 10 डिग्री के अंतर पर होती है, जिससे पूर्व और पश्चिम को मिलाकर कुछ कल 360 रेखाएं मान्य है। इसी देशांतर रेखाओं के साथ अक्षांश रेखाओं के बनने वाले कोण से दूरी का आकलन किया जाता है। देशांतर रेखाएं शून्य से 180 डिग्री तक की पूर्व या पश्चिम में दूरी बतलाती हैं यही अक्षांश और देशांतर रेखाएं मिलकर पृथ्वी पर किसी स्थान का सटीक पता बतलाती है। इसी तरह एक काल्पनिक भारतीय मानक समय रेखा खींची हुई है जो उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से गुजरती है और भारतवर्ष में समय का मूल्यांकन करती है। भारत का समय ग्रीनविच रेखा से 5 घंटे 30 मिनट आगे है।
छत्तीसगढ़ के उत्तरी पश्चिमी सीमा क्षेत्र में जिला (एमसीबी) मनेन्द्रगढ़ एवं कोरिया जिले के जंगलों की सीमाओं से जुड़ी हुई है। इन्हीं जंगलों के बीच मध्य प्रदेश के पूर्व संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान की सीमाएं विस्तार पाती है जो आगे चलकर कोरिया जिले के गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ जाती हैं। वर्तमान में इसे गुरु घासीदास तैमूर पिंगला टाइगर रिजर्व के रूप में शामिल किया गया है। इस टाइगर रिजर्व की सीमा मनेंद्रगढ़, कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर, तथा झारखंड के जंगलों तक फैली हुई है। यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण है।
कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड से गुजरती स्थित कर्क रेखा और वर्तमान खोज के बाद भारतीय मानक समय रेखा की उपस्थिति सोनहत को विशिष्ट स्थान का गौरव प्रदान करती है। इसी तरह मध्य प्रदेश सहित आठ राज्यों से गुजरती यह कर्क रेखा छत्तीसगढ़, गुजरात,राजस्थान, झारखंड,पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, और मिजोरम से होकर आगे बढ़ती है। लेकिन छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां से गुजरने वाली भारतीय मानक समय रेखाएं भारतीय समय को निर्धारित करती हैं। कोरिया जिले के इस विशेष स्थान को इंगित करने के लिए छत्तीसगढ़ वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के कोरिया वन मंडल ने इस स्थान पर एक विशेष लाट स्तंभ लगाकर इसे पत्थरों से घेर कर विशिष्ट स्थल का रूप दे दिया है। सोनहत से रामगढ़ के मुख्य सड़क पर तीर का निशान बनाकर एक बोर्ड लगा दिया गया है जिस पर कर्क रेखा की दूरी 3 किलोमीटर इंगित भी किया गया है।
कर्क रेखा का यह विशिष्ट स्थल 21 जनवरी को पर्यटकों के लिए विशेष आगमन का दिन होता है क्योंकि पृथ्वी के अपनी धुरी से तिरक्षी ( Tilt) होने के कारण सूरज इस स्थान पर सीधा प्रकाशित होता हुआ आगे बढ़ता है। यही कारण है कि एक समय ऐसा भी आता है जब आपकी परछाई आपका साथ छोड़ देती है। इसका आशय यह है कि सूर्य की सीधी किरणें इस स्थान पर पढ़ने के कारण आपकी छाया नहीं बनती और वह आप में स्वयं समा जाती है। कहीं-कहीं लोग 21 जून के दिवस को no shadow day भी कहते हैं। इस दिन सूर्य ठीक सिर के ऊपर रहने के कारण दिन लंबा और। रात छोटी होती है।
इन्हीं खगोलीय घटनाओं के रहस्य को सामान्य जनमानस को समझाने एवं पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार ने कर्क रेखा के नीचे भौगोलिक जानकारी सहित “एस्ट्रो पार्क” विकसित करने की योजना बनाई है। इस एस्ट्रो पार्क को विकसित करने मानचित्र बनाने और स्थल का चयन करने हेतु डॉ. शिरीष सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों का एक दल इस कार्य के क्रियान्वयन के लिए सूरजपुर भेजा गया था। इसके तहत भारत देश में जहां-जहां से कर्क रेखा गुजरी है वहां इस तरह के एस्ट्रो पार्क बनाए जाएंगे। इसका उद्देश्य प्राकृतिक घटनाओं और पौराणिक विश्वासों को वैज्ञानिक तथ्यों से स्पष्ट करना होगा। इस योजना के तहत आने वाले जिलों को चिन्हित किया गया है जिसमें सूरजपुर, कोरिया, मनेंद्रगढ़ के एमसीबी जिला और बलरामपुर शामिल है।
केंद्र सरकार द्वारा घोषित एस्ट्रो पार्क की इस कार्य की शुरुआत सूरजपुर जिले से प्रारंभ की गई है जिसमें इस टीम के वैज्ञानिक डॉ. शिरीष सिंह ने पूर्व में घोषित सूरजपुर के भैंसामुड़ा स्थान को गलत बताते हुए डीजीपीएस सिस्टम से जब वहां कर्क रेखा और भारतीय मानक समय के कटाव बिंदु को खोजने की कोशिश की गई तब यह पता चला कि यह स्थल भैंसामुड़ा से 28 किलोमीटर दूर मायापुर गांव में है । लगभग 30 वर्षों से भैंसामुड़ा में एक प्रतीक चिन्ह सीमेंट का चबूतरा बनाकर अब तक हम एक गलत जानकारी से परिचित हो रहे थे। वैज्ञानिक डॉ. शिरीष सिंह ने छत्तीसगढ़ शासन से मायापुर ग्राम में चिन्हित स्थल पर दो एकड़ की भूमि मांगी है ताकि इस एस्ट्रो पार्क का कार्य प्रारंभ किया जा सके। उनकी रिपोर्ट के अनुसार यह स्थल 23.30 डिग्री उत्तरी अक्षांश के कर्क रेखा पर पाई गई है । इसी तरह भारतीय मानक समय रेखा का क्रॉस पॉइंट 82.30 डिग्री देशांतर पर कोरिया जिले के सोनहत के जंगलों में मिला है। डॉ शिरीष सिंह के अनुसार डीजीपीएस सिस्टम से 10 सेंटीमीटर तक की सटीक जानकारी प्राप्त होती है। इसलिए इस सिस्टम से सही एवं आधुनिक तकनीक पर आधारित सत्य जानकारी है। एस्ट्रो पार्क के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत इस योजना में स्वीकृत बजट 5 करोड़ 22 लाख रुपए से बनने वाले इस पार्क में छत्तीसगढ़ सरकार को अपनी हिस्सेदारी 50% का योगदान भी करना होगा। इस एस्ट्रो पार्क में वैज्ञानिक और खगोलीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी, जिसमें सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण जैसे वैज्ञानिक तथ्यों को समझाने के साधन उपलब्ध होंगे। इसका उद्देश्य नई पीढ़ी में विज्ञान के प्रति रुचि जागृत करना है। पौराणिक मान्यताओं का वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं स्पष्टीकरण के साथ-साथ ग्रहों नक्षत्रों और सौरमंडल के मॉडल भी इसमें शामिल रहेंगे।
छत्तीसगढ़ के घने जंगलों के बीच से गुजरने वाली यह कर्क रेखा और देशांतर रेखाओं के कटाव बिंदु मात्र एक बिंदु ना होकर छत्तीसगढ़ के घने जंगलों पहाड़ियों और उनके बीच रहने वाली आदिवासी संस्कृतियों के विकसित होते हुए क्षेत्र से परिचय कराती है जो इस क्षेत्र के पर्यटन और भूगोल की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कर्क रेखा उस उत्तरी अक्षांश को भी दर्शाती है जहां सूर्य की किरणें वर्ष में एक बार ग्रीष्म ऋतु 21 जून (जिसे हम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी कहते हैं) को यह सूर्य ठीक हमारे सिर के ऊपर रहता है। अनूठे प्राकृतिक स्थलों के चित्र पर्यटक और भूगोल प्रेमियों के लिए यह पर्यटन का स्थल एक आकर्षक पर्यटन स्थल साबित होगा।
अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के सोनहत के जंगलों में पाए जाने वाले इस मिलन स्थल पर कर्क रेखा की उपस्थिति 21 जून को विशेष भौगोलिक घटना के साथ उपस्थित होती है। आप भी इस बार इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अर्थात 21 जून को सोनहत के जंगलों में कर्क रेखा पर मिलने वाले देशांतर रेखाओं के मिलन स्थल पर आइए और अपनी छाया को स्वयं में समाहित होने की घटना या दूसरे शब्दों में आपकी छाया भी यहां आपका साथ छोड़ देगी जैसी घटनाओं के अनुभव को महसूस करें। रोमांच और रहस्य का यह एक दिन अपने जीवन के हिस्से में और जोड़ लें ।
पृथ्वी की भौगोलिक सीमाओं को रेखांकित करती अक्षांश और देशांतर रेखाओं का यह करिश्मा बैकुंठपुर से 35 किलोमीटर दूरी पर बसे सोनहत विकासखंड मुख्यालय में आपको मिलेगा। छत्तीसगढ़ राज्य मार्ग क्रमांक 15 के मुख्य मार्ग से आगे बढ़ने पर वन विभाग के रिहायसी आवास के पास एक बोर्ड पर तीर का निशान बाई और इंगित करता है जिस पर लिखा है कर्क रेखा बिंदु 3 किलोमीटर । यहां से बाई और मुड़कर आप इस स्थल तक पहुंच सकते हैं। इसी तरह देवी धाम की पहाड़ी से भी कुछ दूरी पर चलकर आप इस स्थल पर पहुंच सकते हैं। यहां पर आप भारतीय मानक समय रेखा की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
प्राकृतिक वन विरासत से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ के वन और जैव विविधता अपने आंचल में जाने कौन-कौन सी रहस्यमई किस्सों की किताबें समेटे हुए हैं। कहीं इन जंगलों के बीच एक कर्क रेखा गुजरती है वहीं देशांतर रेखा जिस स्थान को काटती है जहां पर सूर्य सीधी गर्मी से जंगलों को प्रभावित करने की कोशिश करता है। तेज धूप और गर्मी का प्रभाव छोड़ने वाला कर्क रेखा से गुजरने वाले सभी क्षेत्रों में सूर्य अपने प्रभाव के पर्यावरणीय प्रभाव को प्रदर्शित करता है लेकिन उत्तरी छत्तीसगढ़ के इन जंगलों के बीच ऊंची ऊंची पहाड़ियां और साल वनों की ठंडकता यहां के वातावरण को सूर्य की किरणों से बचा लेती है। समृद्ध जैव विविधता का यह उदाहरण कुछ स्थलों पर ही दिखाई पड़ता है जिसमें से सोनहत की पहाड़ियां अपना विशेष स्थान रखती हैं। प्रकृति की इस विरासत को भौगोलिक दृष्टिकोण से नए परिवेश में देखने की दृष्टि देने के लिए यह पर्यटन स्थल आपको आमंत्रित कर रहा है। एक बार इस स्थल पर पहुंचने और अपनी छाया के समाप्त हो जाने के रोमांच को आप जीवन भर अपने परिवार और मित्रों के साथ याद रखेंगे। फिर क्या सोच रहे हैं, निकल पड़िए इस बार पर्यटन के लिए सोनहत जंगलों के बीच कर्क रेखा के जादुई और भौगोलिक रोमांच को देखने और विशेष अनुभव प्राप्त करने के लिए। आइए कोरिया जिले के सोनहत के पहाड़ आपका इंतजार कर रहे हैं। यहां आने पर आपके पर्यटन के लिए बालमगढ़ पहाड़ का रोमांच, पवित्र हसदो गंगा का उद्गम, गांगी रानी का मंदिर, एवं देश का तीसरा सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण के बीच हरी भरी साल वनों की जैव विविधता से समृद्ध सोनहत की पहाड़ियां आपके पर्यटन के रोमांच को दुगनी कर देगी।
बस इतना ही फिर मिलेंगे किसी अगले पड़ाव पर ।
राजेश सिन्हा 8319654988




