
वनमाली सृजन केंद्र मनेंद्रगढ़ द्वारा संगोष्ठी का हुआ आयोजन (छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद को जन्मदिन पर किया याद)
मनेंद्रगढ़-एमसीबी// हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, उन्होंने कामायनी, आंसू ,लहर, झरना, जैसे काव्य संग्रह दिए हैं वहीं उनकी कलम कहानी, नाटक, उपन्यास एवं निबंधों में भी चलती रही है. प्रकृति को चेतना मानते हुए सजीव मानवीय चित्र की कल्पना और व्यक्तिवाद की प्रधानता लिए श्रृंगार की भावना भरी कविताओं को छायावादी कविता कहा गया है. आलोचक रामचंद्र शुक्ल की भाषा में अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर चित्रमयी भाषा में प्रेम को अनेक प्रकार से प्रस्तुत करना ही छायावाद है. स्व अनुभूति की वेदना आधारित अभिव्यक्ति छायावादी रचनाकारों की रचनाओं में दिखाई पड़ता है. रीतिकालीन कवियों ने जहां नारी को सौंदर्य की वस्तु बनाकर उपभोग के साथ जोड़ दिया था, वही छायावाद ने नारी को भरपूर सम्मान दिया है.नारी सौंदर्य को श्रृंगार के माध्यम से सम्मान सहित छायावादी रचनाओं में व्यक्त किया गया है. रहस्य जीवन दर्शन एवं अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम पर लिखी हुई छंद विधान,एवं मुक्तक रचनाएं छायावाद की विशेषता रही है. उपरोक्त विचार वनमाली सृजन केंद्र के संयोजक वीरेंद्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किए.
वनमाली सृजन केन्द्र मनेन्द्रगढ़ द्वारा निदान सभागार में “जयशंकर प्रसाद एवं छायावाद” विषय पर आयोजित संगोष्ठी मे अपने विचार रखते हुए अनिल जैन ने कहा सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी, निराला एवं महादेवी वर्मा छायावाद के सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य को दिशा दी है उनकी रचनाओं की महत्ता के कारण ही हिंदी साहित्य का यह दौर छायावाद के नाम से जाना गया.
कार्यक्रम अध्यक्ष साहित्यकार पुष्कर तिवारी ने संगोष्ठी में अपनी भागीदारी के साथ कहा कि जय शंकर प्रसाद की कामायनी, आंसू, लहर और झरना जैसे काव्य संग्रह आज हिंदी साहित्य की धरोहर है. वहीं इसी काल की महादेवी वर्मा की रचनाएं विशेषकर नीरजा, और सांध्य गीत , संग्रह की सशक्त रचनाएं हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाती है.
साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने कहा कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद और आधुनिक कविताओं के बीच की एक ऐसी कड़ी थे जिन्होंने दोनों विधाओं पर अपनी रचनाएं लिखी है. अनामिका, परिमल और गीतिका जैसी काव्य संग्रह के रचनाकार निराला ने आधुनिक साहित्य में मुक्त छंद की रचनाओं को भी जन्म दिया “वह तोड़ती थी पत्थर इलाहाबाद के पथ पर” जैसी रचनाएं मुक्त छंद की रचनाएं थी.
साहित्यकार गंगा प्रसाद मिश्र ने अपने संदेश में कहा कि जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के ऐसे सशक्त
हस्ताक्षर थे, साहित्य मनीषियों ने जिनका मूल्यांकन समय पर नहीं किया गया.
कार्यक्रम के दूसरे दौर में वसंत के आगमन पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित रचनाकारों ने बसंत पर अपनी कविताएं प्रस्तुत कर का कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान की. कार्यक्रम में उपस्थित रचनाकारों एवं सुधी श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह के आयोजन पठन-पाठन संस्कृति को बढ़ावा देते हैं वन्माली सर्जन केंद्र इस तरह के आयोजनों को बढ़ावा देने के प्रति जागरूक है जो हिंदी साहित्य के प्रति जागृति पैदा करते है और साहित्य प्रेमियों का ज्ञान बढ़ाते हैं.
इस अवसर पर उपस्थित रचनाकारों सहित साहित्य प्रेमी नरेंद्र श्रीवास्तव ,अरविंद श्रीवास्तव, डॉक्टर निशांत एवं वर्षा की उपस्थिति ने कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान की।
संपादक – राजेश सिन्हा