बाल्मिकी रामायण की दंडकारण्य देवभूमि अंचल का सीतामढ़ी हरचौका आश्रम
मनेंद्रगढ़ एमसीबी// नदी पहाड़ों एवं घनघोर जंगलों के बीच बसा छत्तीसगढ़ राज्य अपने उत्तरी छोर में मध्य प्रदेश की सीमा से मिलता है. कई हजारों वर्ष पूर्व त्रेता युग में भारत भूमि पर ईश्वरीय शक्ति भगवान राम का अवतार हुआ था. जो समय काल के आध्यात्मिक आध्यात्मिक पन्नों मे एवं वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार कहे जाते हैं. भगवान राम को लेकर बुजुर्ग हमेशा कहते रहते हैं
“जब-जब ही धर्म की हानि, बढे़ असुर महा अभिमानी.
और इन असुरों की समाप्ति के लिए ईश्वर हमेशा अवतार लेते रहते हैं. बालकांड में इस तरह के कई तथ्य आते हैं जिसमें अदृश्य शक्ति के रूप में स्थित विष्णु के अवतार की कल्पना को सती जी ने भी संदेह के रूप में व्यक्त किया था और उसे रामचरितमानस के बालकांड में गोस्वामी जी ने लिखा है
“विष्णु जो सूर्य हित नर्तनु धारी सोउ सर्वज्ञ जथा त्रिपुरारी.
खोजई सो कि अग्य ईवं नाही, ग्यान धाम श्रीपति असुरारी.”
उक्त चौपाई से यह स्पष्ट है कि शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु का अवतार हमेशा असुरों की समाप्ति के लिए इस धरती पर हुआ है.
इसी अंचल के सोन नदी के तट पर देवासुर संग्राम में माता कैकई को राजा दशरथ के प्राण बचाने के लिए उनके द्वारा दिए गए वरदान में माता के कैकई ने भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास एवं पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी मांगा था. तत्कालीन ऋषि वाल्मीकि के वाल्मीकि रामायण एवं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस में इसका विस्तृत विवरण प्राप्त होता है. हिंदू धर्म की आस्था भगवान विष्णु के मानव अवतार भगवान राम से प्रारंभ होती है, जो आज तीन युगों के बाद भी मर्यादा पुरुषोत्तम एवं राम राज्य की सामाजिक स्थापना के लिए हमें प्रेरित करती रहती है.
भगवान श्री राम की वनवासी यात्रा माता कैकई के वरदान के क्रियान्यवन के साथ ही तीनों माता एवं पिता दशरथ से आशीर्वाद प्राप्त कर प्रारंभ हुई थी, जिसमें सबसे पहले अयोध्या से निकलकर बनवासी वेशभूषा में अपनी पत्नी सीता एवं लक्ष्मण के साथ तमसा नदी तट पर उन्होंने पहला पड़ाव डाला था. जहां अयोध्या वासियों के द्वारा आगे जाने का मार्ग रोक दिए जाने के कारण उन्हें बिना बताए ही वे सोते हुए छोड़कर आगे बढ़ गए. मित्र निषाद राज की नगरी श्रृंगेश्वरी होते हुए प्रयागराज पहुंचे. जहां मुनि भारद्वाज से अनुमति लेकर वे आगे की यात्रा में चित्रकूट चले गए. यहां अत्रि मुनि एवं माता अनुसूईया के आशीर्वाद की छाया में उन्होंने एक लंबा समय बिताया था. यहीं उनकी मुलाकात भाई भरत से हुई थी. जिसमें भरत ने उन्हें वापस चलकर राजगद्दी संभालने की बात कही थी किंतु भगवान श्रीराम ने परिस्थितियों को समझाने के बाद उन्हें वापस अयोध्या भेज दिया, किंतु भरत ने राजगद्दी संभालने से इनकार कर दिया और उनके खड़ाऊ लेकर वे राज्य संभालने के लिए वापस अयोध्या चले गए. 14 वर्षों तक भगवान राम के प्रतीक खड़ाऊ को राजगद्दी सौंप कर उन्होंने अयोध्या का कार्यभार संभाला.
चित्रकूट से आगे भगवान श्री राम का एक लंबा समय दंडकारण्य में बीता था. दंडकारण्य का एक बहुत बड़ा क्षेत्र देव भूमि के नाम से जाना जाता था. जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती एवं वन संसाधनों से परिपूर्ण होने के कारण सुरगुंजा के नाम से विख्यात था. इसकी खूबसूरती एवं संसाधन को देखते हुए असुर हमेशा इस पर आक्रमण करते रहते थे एवं ऋषि मुनियों की तपस्थली को भंग करने का प्रयास करते थे. जिसकी जानकारी बाल्मीकि रामायण के पन्नों में भी मिलती है.इस क्षेत्र में वनवासी श्रीराम की मुलाकात अगस्त ऋषि से हुई थी। देवभूमि का क्षेत्र होने के कारण यहां वामदेव, जमदग्नि, महरमुंडा, दंतौली ऋषि एवं धर्मग्य ऋषि शरभंग एवं सुतीक्ष्ण जैसे प्रकांड ऋषि निवास करते थे. इनका उल्लेख बाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के छठ में स्वर्ग में उपलब्ध है.
मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ के उत्तरी सीमा में में मवई नदी के तट पर बने हरचौका ग्राम में बने गुफाओं को सीतामढ़ी हरचौका कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री राम ने अपने वनवास काल का कुछ समय यहां बिताया था. प्राचीन समय में जंगलों में यात्रा का ज्यादातर मार्ग नदी मार्ग अर्थात नदियों के किनारे का मार्ग उपयोग किया जाता था क्योंकि नदियों का प्रारंभ एवं अंत गांव वालों को मालूम होता था. इस यात्रा के बाद का मार्ग अगली जोड़ने वाली नदी या पहाड़ पार करके तय किया जाता था. पुरानी मान्यताओं में चौमासा अर्थात बरसात के दिनों में यात्रा स्थगित कर दी जाती थी ताकि जीव जंतुओं की सुरक्षा के साथ बाढ़ एवं अन्य आपदाओं से दूर रहकर आगे की निश्चिंत यात्रा हो सके. सीतामढ़ी हरचौका भी चौमासा बिताने का एक आश्रय स्थल प्रतीत होता है. आगे की यात्रा में भी कई किवदंतियां जुड़ी हुई है जिसमें रापा नदी के किनारे हरचौका की तरह ही बनी गुफाएं और उसमें स्थापित शिवलिंग की स्थापना को भी वनवासियों द्वारा भगवान श्री राम की यात्रा से जोड़कर देखा जाताहै. इस यात्रा के विशिष्ट पहलू यह है कि वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में इस अंचल का जिक्र आता है प्राचीन काल में भगवान शिव के शिवलिंग की बनावट में जलहरी का प्रारूप चौकोर एवं बहु कोणीय हुआ करता था. सीतामढ़ी हरचौका में पाए जाने वाले बलुआ पत्थर के सभी शिवलिंग में चौकोर जलहरी की संरचना इसके प्राचीन शिवलिंग होने का प्रमाणिक दस्तावेज है. मवई नदी के रेत में दवा यह पत्थरों को काटकर बनी गुफा साफ-सफाई के बाद स्थानीय निवासियों तथा शासकीय सहयोग से ढूंढा गया. सीतामढ़ी हरचौका मंदिर तक पहुंचाने के लिए पत्थरों को काटकर हरचौका मंदिर तक पहुंचाने का रास्ता और साइड रैलिग लनाया गया है. जहां वर्तमान में अयोध्या से लाकर एक चरण पादुका रखी गई है ग्राम वासियों का कहना है कि कुछ अवशेष जो श्री राम चरण अंश पत्थरों पर अंकित थे वे कुछ निर्माण कार्यों के कारण रेत में दब गए हैं.
अलग-अलग स्थान पर 17 कक्षा से बना यह स्थल आज एक पवित्र आराधना स्थल के रूप में विकसित हो रहा है. जो आज रामबांगमन अयोध्या परिपथ के रूप में छत्तीसगढ़ की पर्यटन केदो में शामिल है. इस स्थल के प्रत्येक कक्ष में शिवलिंग एवं देवी दुर्गा की प्रतिमाएं रखी हुई है. आदिवासी जनजातियों के द्वारा इस स्थल के देखरेख एवं देवी सेवा किए जाने का एक लंबा समय इस स्थल का गवाह है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. आगे “लक्ष्मण बैठका” चट्टान के साथ ही सीतामढ़ी अर्थात सीता जी की मढैया एवं
हरचौका का तात्पर्य हरि का चौका (माता सीता की रसोई) जैसे शब्दों को जोड़कर इस स्थान का नाम दिया गया है. ऊपरी समतल मैदान से लगभग 10 फीट नीचे मव ई नदी तट पर बने भगवान श्री राम की इस स्मृति को संजोने का कार्य अब प्रगति पर है. छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के द्वारा “राम बनगमन पर्यटन परिपथ” के विकास कार्यों में संलग्न यहां कई कार्य किए गए हैं. जिसमें रुकने के लिए अतिथि गृह, सियाराम कुटीर, जन सुविधा केंद्र, पार्किंग स्थल के साथ-साथ पर्यटकों के बैठने के लिए पत्थरों से निर्मित आकर्षक कुर्सियां बनाई गई है. नदी के किनारे का आकर्षक दृश्य अपनी आंखों में भर लेने की आपकी इच्छा इस तरह के पत्थर की कुर्सियों पर बैठकर आप परिवार सहित पूरी हो सकती हैं. आकर्षक खंभे लगाकर स्थल पर लगे बोर्ड आपको सूचना देते हैं वहीं इसकी बनावट आपका मन मोह लेगी. रामबनगमन परिपथ के बड़े लाइटिंग बोर्ड आपको एक और शांति प्रदान करते हैं वहीं दूसरी ओर शांत सुरम्य स्थल पर पहुंचने का एहसास देते हैं. भगवान राम की लगभग 20 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना ने इस स्थल को और अधिक आकर्षक बना दिया है. श्वेत रंग के भगवान राम की इस प्रतिमा पर रात्रि कालीन विद्युत व्यवस्था की चमक का आकर्षक आपको सुकून और शांति प्रदान करता है. अंचल के वर्तमान विधायक श्री गुलाब कमरो का इस अंचल के विकास का श्रम दिखाई पड़ता है. दे आए दुरुस्त आए की कामना सहित अभी विकास के कई सोपान अधूरे हैं.
छत्तीसगढ़ के नए मनेन्द्रगढ़ (एम सी बी) जिला मुख्यालय से लगभग 140 किलोमीटर दूर स्थित तथा कोरिया बैकुण्ठपुर के रास्ते अंबिकापुर संभाग से 270 किलोमीटर दूर स्थित सीतामढ़ी हर चौका का यह स्थल जनकपुर विकासखंड पहुंचकर आगे माड़ीसरई रोड पर 30 किलोमीटर दूर स्थित है. माड़ीसरई रोड पर जाते समय वन विभाग के ऑफिस एवं शासकीय कार्यालय से गुजरते हुए देवगढ़ पंचायत से आगे चिड़ौला गांव होते हुए अंतिम ग्राम घुघरी पहुंचता है. घुघरी गांव के चौराहे पर लगा बोर्ड में लिखा मिलता है “रामवन गमन मार्ग सीतामढ़ी हरचौका” इसी चौक से दाहिनी और लगभग 800 मीटर दूरी पर बना विशाल द्वार सीतामढ़ी हरचौका आपका स्वागत करने हेतु तैयार मिलता है.
वनवासी भगवान श्री राम के यात्रा के मार्ग में उनके चरण धूलि की यह पवनस्थली आज भी अंचल के निवासी आदिवासी समाज जैसी सरल सहज प्राकृतिक जीवन की स्थली है, जिसमें उनके जीवन से जुड़े ऋषि मुनियों के सत्संग उनसे प्राप्त मंत्र शक्ति एवं आशीर्वाद की कई कुड़ियां जुड़ी है. वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित सरगुजा का यह अंचल 21 तरह के ऋषि मुनियों का आश्चर्य स्थल रहा है. जिसकी जानकारी अगले पर्यटन अंकों में हम किसी और पर्यटन स्थल की चर्चा में आपके साथ साझा करेंगे.इस धरोहर को स्वच्छ और निर्मल बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है. जै श्री राम के शब्दों के साथ हम इतना जरुर कहना चाहेंगे कि इस आध्यात्मिक धरोहर को आप भी देखकर आत्मिक शांति महसूस करेंगे. एक बार परिवार एवं मित्रों सहित पर्यटन के लिए इस आध्यात्मिक धरोहर को देखने की योजना बनाऐ.
धन्यवाद
लेखन एवं प्रस्तुति
बीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
मनेन्द्रगढ़,497442
संपर्क फोन. 9425581356