केवई नदी पर बने अलौकिक जलप्रपात शिव धारा
धरोहर एवं पर्यटन अंक -11
लेखन एवं प्रस्तुति-बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव
मनेंद्रगढ़ एमसीबी// केवई नदी सुमेर पहाड़ के पत्थरों के बीच जगह बनाती हुई एक जलधारा के रूप में आगे बढ़ती है. बहुत पतली धार होने के कारण ग्रामवासी इसे सुआधार अर्थात तोते के मुंह जैसी धार कहते हैं. सुमेरु मतलब हिमालय पहाड़ की एक चर्चा शिव पुराण में भी आती है जिसमें विंध्याचल एवं सुमेरू पहाड़ में अपनी अपनी ज्यादा ऊंचाई को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ी थी. इसी प्रतिस्पर्धा में जब विंध्याचल पर्वत आसमान छूने लगे . परिणामस्वरूप पृथ्वी पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंचने के कारण हाहाकार मच गया. तब देवताओं के अनुरोध पर विंध्याचल के गुरु महर्षि अगस्त ने तपस्या के लिए दक्षिण जाने के लिए विंध्याचल से रास्ता माँगा और यह भी निर्देश दिया कि जब तक मैं नहीं लौटू तब तक मेरा इंतजार करना. गुरु की आज्ञा मानकर विंध्याचल ने झुक कर महर्षि अगस्त को प्रणाम किया और आज तक अपने गुरु महर्षि अगस्त का लौटने का इंतजार कर रहे हैं. बिहारपुर – बैरागी मार्ग के दाहिनी ओर फैली स्थानीय सुमेर पहाड़ की फैली शाखा ने छत्तीसगढ़ के एम सी बी जिले को केवई नदी दी है. जो आगे चलकर एक जलप्रपात का निर्माण करती है जिसे गांव वाले शिव धारा कहते हैं. संभवतः आध्यात्मिक आस्था के कारण इसका नाम सुमेर पहाड़ रखा गया होगा.
– मानव और प्रकृति का संबन्ध बहुत पुराना है. पृथ्वी पर जीव जंतु की उत्पत्ति से पहले प्रकृति ने नदी नाले पहाड़ जंगल की रचना की गई ताकि जीवन उत्पत्ति के बाद उनके जीवन को बचाए रखने के लिए प्राणवायु और पानी के साथ-साथ भोजन की व्यवस्था उपलब्ध हो. प्रकृति के इसी संपूर्ण संरचना को मानव जाति अपनी-अपनी आस्था के अनुसार ईश्वरीय शक्ति की देन मानता है. सत्य भी यही है ब्रह्मांड में घूमते ग्रह, पिंड अपने-अपने परिधि में जाने कितने करोड़ो अरबो वर्षों से घूम रहे हैं लेकिन एक दूसरे को मार्ग में व्यवधान उत्पन्न नहीं करते. यदि यह माना जाए कि इसे संचालित करने वाली भी कोई शक्ति है तब निश्चित ही वह चमत्कृत करने वाली शक्ति ईश्वर ही हो सकती है क्योंकि उसके सब चमत्कार एवं संचालन शक्ति की सीमा मानव सोच के परिधि से बाहर है
छत्तीसगढ़ प्रांत का मनेन्द्रगढ़ एम सी बी जिला घने जंगलों और पहाड़ों से घिरा जिला है. जिला मुख्यालय से आप जैसे ही चार-पांच किलोमीटर बाहर निकलते हैं घने वनो का नैसर्गिक सौंदर्य आपका स्वागत करता है और आप वाह कहने लगते हैं. इसकी खूबसूरती आपकी यात्रा में आपकी गाड़ियों के पहिए रोक लेती है. हम सोचते हैं कि पत्थरों के पहाड़ केवल पत्थर दिल ही हो सकते हैं किंतु इस पर विराम लगाते हुए इन्हीं पहाड़ियों के बीच से जब कोई जलधारा का स्रोत निकालकर आगे बढ़ता है तब ऐसा प्रतीत होता है कि इन पत्थरों की पहाड़ियों में कितना दर्द छिपा है जो जल स्रोत के रूप में बाहर आ रहा है.
चलिए पर्यटन के लिए परिवार के साथ बच्चों को कुछ नई जगह घूमने और प्रकृति से बातचीत करने के लिए चलें, केवई नदी पर बने प्राकृतिक जलप्रपात शिव धारा की ओर. एम सी बी जिले के मनेन्द्रगढ़ मुख्यालय से राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 43 से उत्तर की ओर संभाग अम्बिकापुर मार्ग पर चलते हुए हम पहुंचते हैं 08 किलोमीटर दूर ग्राम कठौतिया तिराहा. जहां से उत्तर पश्चिम दिशा की ओर राज्य मार्ग क्रमांक 08 कठौतिया से जनकपुर भरतपुर मार्ग जुड़ता है. कठौतिया से बाएं मुड़कर आगे इसी मार्ग से मनेन्द्रगढ़ से 27 किलोमीटर तक की यात्रा के पश्चात हम पहुंचते हैं, ग्राम बिहारपुर. इसी बिहारपुर से दो मार्ग दाहिनी और विभाजित होते हैं. पहला मार्ग बिहारपुर – सोनहत मार्ग कहलाता है जो रामवन गमन मार्ग भी है. वहीं जनकपुर मुख्य मार्ग में 200 मीटर और आगे बढ़ने पर पुनः दाहिने दिशा में जाने वाले मार्ग
बिहार पुर – बैरागी गांव के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की रोड है. इस इस रास्ते पर लगभग 02 किलोमीटर चलने के बाद बाई तरफ ग्राम पंचायत ने सीमेंट रोड शिव धारा तक बना दिया है., शिव धारा स्थल पर बने भव्य सांस्कृतिक मंच सामुदायिक शौचालय भवन एवं निर्माणाधीन मार्कंडेय शिव मंदिर के साथ आपकी मुलाकात बाबा त्रिलोकनाथ जी से होगी. जंगल पहाड़ों के बीच बाबाजी से वन एवं पहाड़ों के इतिहास से लेकर अध्यात्म और धर्म की चर्चा आपको शांति प्रदान करेगी.
सुमेर पहाड़ की यह श्रृंखला अपने पत्थर दिल होने की बात कहते हैं. लेकिन इन्हीं पहाड़ों का दर्द जब छोटे-छोटे जल स्रोत उद्गम बनकर पहले एक छोटे से नाले के रूप में आगे बढ़ती है और पशु पक्षियों और जंगली जानवरों की प्यास बूझाकर स्वयं को धन्य मानती है कि मेरा जल किसी जीवन को निरंतरता प्रदान करने में काम आया. दूसरों को सुख पहुंचाने की अभिलाषा लिए जब यही नदी – नाले आगे दूसरे नालों से गल बहिया मिलाकर आगे बढ़ते हैं तब यह नदी का नाम पाती है. जिसे लाखों करोड़ो जीव जंतुओं को प्यास से तृप्ति देने का अवसर मिलता है.
केवई नदी इसी सुमेर पहाड़ की पत्थरों के बीच जगह बनाती हुई एक जलधारा के रूप में निकलती है . बहुत पतली धार होने के कारण ग्राम वासी इसे सुआ – धार कहते हैं (अर्थात तोते के मुंह के बराबर की जलधारा) वहीं आसपास की छोटी-छोटी जलधारा के साथ एक बड़ी जलधारा कदमनाला को भी स्वयं में आत्मसात करती हुई यही सुआधारा जब आपस में बातें करती हुई आगे चलती है तब इन जलधाराओं की कल – कल, छल – छल आवाज को आगे गांव वासियों ने चहचही नाम दिया है. घटोल नाला आगे जुड़कर इस सुमेर पुत्री को केवई नदी का नाम देता है, जो धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई मध्य प्रदेश के मौहरी गांव में अमरकंटक पहाड़ से चलकर आती पवित्र सोन नदी में मिलकर विशाल आंचल का निर्माण करती है. जी हां यह वही सोन है जो आगे सोनभद्र कहलाती है और गंगा में मिलकर गंगासागर तक की लंबी यात्रा करती है.
सुमेर पहाड़ की एक चर्चा शिव पुराण में भी आती है जिसमें विंध्याचल एवं सुमेर पहाड़ में अपनी-अपनी ज्यादा ऊंचाई को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ी थी और जब विंध्याचल पर्वत आसमान छूने लगे परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचने के कारण हाहाकार मच गया. तब देवताओं के अनुरोध पर विंध्याचल के गुरु महर्षि अगस्त्य से इसकी ऊंचाई घटाने का अनुरोध किया महर्षि अगस्त ने अनुरोध स्वीकार करते हुए विंध्याचल के पास जाकर तपस्या के लिए दक्षिण जाने का रास्ता मांगा जिस पर झुक कर विंध्याचल छोटे हो गए और झुक कर प्रणाम करते हुए अपने गुरु महर्षि अगस्त का लौटने का आज भी इंतजार कर रहे हैं. आध्यात्मिक आस्था के कारण इस स्थानीय पहाड़ का नाम संभवतः सुमेर पहाड़ रखा गया होगा. इसी पहाड़ ने छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिले को केवई नदी दी है जो आगे बढ़कर एक जलप्रपात का निर्माण करती है. जिसे गांव वाले शिव धारा कहते हैं. क्योंकि यह धारा शिव की जटाओं से निकलने वाली एक धारा के रूप में जमीन पर लगभग 100 फीट नीचे गिरकर एक जलप्रपात का निर्माण करती है. ऊपर से गिरते जलप्रपात के आसपास फैली बरगद एवं पेड़ों की जड़ों ने इसे भगवान शिव की जटाओं का स्वरूप पैदा कर दिया है. इसके बीच बहने के कारण इस जलप्रपात का नाम शिवधारा जलप्रपात रखा गया है हालांकि प्राकृतिक असंतुलन के कारण कुछ पत्थरों के टूटने से अब यह कई चौड़ी धाराओं में बट गई है. प्राकृतिक चट्टानों के बीच बनी एक गुफा से इस जलप्रपात की अलौकिक छटा का आनंद लिया जा सकता है ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान शिव की जटाओं के बीच से यह धारा नीचे आ रही है. यहां बनी गुफाएं किसी सिद्ध पुरुष या संत के साधना स्थल होने की कहानी का आभास कराती है.
शिव धारा के विकास के लिए मानव कल्याण विकास संस्थान शिवधारा बिहारपुर के अध्यक्ष परमेश्वर सिंह से मुलाकात कर हमने उन्हें विकास की इस जिम्मेदारी के लिए धन्यवाद दिया उनसे जानकारी लेने पर पता चला कि ग्रामीणों के सहयोग से नवरात्रि में यहां दुर्गा पूजन का विशाल आयोजन किया जाता है जो आसपास के गग्रामीण जनों के भक्ति भाव एवं सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा का कार्य करती है. पर्यटन एवं लोगों के सुविधाओं के लिए यहां एक सांस्कृतिक मंच और सामुदायिक शौचालय की व्यवस्था ग्राम पंचायत एवं ग्रामीणों के सहयोग से की गई है. एक अर्ध निर्मित मारकंडेय महादेव मंदिर को देखकर जब चर्चा आगे बढ़ी और हमने प्रश्न किया कि यह कब तक पूरा होगा. ऐसे प्रश्नों पर केवल एक ही उत्तर मिला, जब भोले बाबा की मर्जी होगी. प्रति प्रश्न करते हुए उन्होंने कहा आप ही बताइए जब भोले बाबा की मर्जी के बिना एक पत्ता नहीं हिलता तब आराधना के लिए मंदिर निर्माण तो बहुत बड़ा कार्य है. इसलिए जब भोले बाबा का मन इसे पूरा करने को होगा तब कोई ना कोई उनका उपासक भक्त यहां जरूर आएगा और इसे पूरा करेगा. हम सब तो केवल एक माध्यम है जो कोशिश करते रहते हैं और हमारी कोशिश ही भगवान शिव के प्रति सच्ची आराधना है. ऐसे शिवभक्तों का सानिध्य एक न सोच को जन्म देता है. ई
भगवान शिव के इस आराधना स्थल एवं प्रकृति के द्वारा प्रदत्त जलप्रपात की शांति और अध्यात्म का यह वातावरण बहुत मुश्किल से मिलता है कभी इस जगह पर जाकर आप भी इस प्राकृतिक चिंतन स्थल का आनंद ले सकते हैं. खुशियों और आराधना का यह अवसर आपके स्वागत के लिए आपका रास्ता निहार रहा है. शेष फिर कभी.