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पहनावे से नहीं, सोच से पहचानिए इंसान
विशेष प्रस्तुति – पूजा खरे
समाज में प्राचीन काल से ही इंसान को उसके पहनावे से आँकने की प्रवृत्ति रही है। आज भी अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कोई महिला सलवार-सूट या साड़ी में दिखाई दे तो उसे संस्कारी मान लिया जाता है, वहीं यदि वही महिला जींस या आधुनिक पोशाक में दिखे तो लोग उसकी नीयत और चरित्र पर सवाल उठाने लगते हैं। लेकिन क्या सचमुच इंसान की अच्छाई या बुराई कपड़ों से परखी जा सकती है?
व्यक्तित्व की असली पहचान
एक ही व्यक्ति जब अलग-अलग वेशभूषा में सामने आता है, तब भी उसका दिल, मन, सोच और भावनाएँ वही रहती हैं।
सच्चाई यह है कि कपड़े बदलने से इंसान का व्यक्तित्व नहीं बदलता।
यदि किसी व्यक्ति का चरित्र स्वच्छ और सोच सकारात्मक है तो वह हर परिस्थिति और हर पहनावे में वैसा ही रहेगा।
इंसान का व्यक्तित्व उसके आचरण, व्यवहार और दृष्टिकोण से झलकता है, न कि उसके कपड़ों से।
समाज की छोटी सोच
दुख की बात है कि कई लोग दूसरों को केवल उनके पहनावे से आंक लेते हैं।
साड़ी या घूंघट में दिखने वाली महिला भी अपशब्द कह सकती है,
जबकि आधुनिक परिधान पहनने वाली महिला सबके प्रति आदर और मधुर व्यवहार रख सकती है।
यानी अच्छाई या बुराई पहनावे से नहीं बल्कि व्यक्ति की सोच और संस्कारों से तय होती है।
क्यों जरूरी है सोच में बदलाव
जब हम केवल कपड़ों के आधार पर दूसरों को आंकते हैं तो असल में हम अपनी ही मानसिकता की गंदगी दिखाते हैं। यह वही “गिरी हुई सोच” है, जो समाज को आगे बढ़ने से रोकती है।
हमें यह समझना होगा कि इंसान को उसके गुण, कर्म और व्यवहार से परखा जाना चाहिए।
यदि समाज सच में प्रगतिशील होना चाहता है तो कपड़ों के आधार पर निर्णय लेना बंद करना होगा।
निष्कर्ष
पहनावा हर किसी का व्यक्तिगत अधिकार है। यह संस्कृति, सुविधा और पसंद का विषय हो सकता है, लेकिन चरित्र और सोच का नहीं।
इसलिए, ज़रूरत है कि हम अपनी सोच और दृष्टिकोण बदलें, न कि सामने वाले को कपड़े बदलने का उपदेश दें। इंसानियत का मापदंड केवल यही होना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति कितना अच्छा, ईमानदार और संवेदनशील है।