
सूचना के अधिकार पर संकट: राज्य सूचना आयोग में अपीलों का अंबार, वर्षों से लंबित मामले
रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत जानकारी पाने के लिए आम जनता को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। द्वितीय अपील के मामलों का निपटारा होने में चार से छह वर्ष का समय लग रहा है, जिससे आवेदकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि जब तक अपील पर सुनवाई होती है, तब तक संबंधित जन सूचना अधिकारी (PIO) सेवा निवृत्त हो जाते हैं।
सूचना अधिकार अधिनियम की मूल भावना पर संकट
सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 का मुख्य उद्देश्य सरकारी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना और नौकरशाही में जवाबदेही तय करना था। लेकिन मौजूदा हालात में यह कानून सरकारी विभागों के लिए मजाक बनता जा रहा है। कई जन सूचना अधिकारी किसी न किसी धारा का हवाला देकर आवेदनों को नस्तिबद्ध (खारिज) कर देते हैं। वहीं, प्रथम अपील अधिकारी (FAA), जिनकी जिम्मेदारी होती है कि वे आवेदकों को संतोषजनक जवाब दिलाएं, वे भी जन सूचना अधिकारियों के प्रभाव में आकर सूचना उपलब्ध कराने में टालमटोल कर रहे हैं।
राज्य सूचना आयोग में अपीलों का अंबार
पहली अपील से निराश होकर लोग द्वितीय अपील के लिए राज्य सूचना आयोग का रुख कर रहे हैं, लेकिन यहां भी नियुक्तियों की कमी के कारण अपीलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राज्य सूचना आयोग में पर्याप्त संख्या में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने के कारण मामलों की सुनवाई समय पर नहीं हो पा रही। इससे सूचना का अधिकार कानून अपने उद्देश्य से भटकता दिख रहा है।
राज्य सूचना आयोग के आदेशों की अनदेखी
स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब राज्य सूचना आयोग दोषी जन सूचना अधिकारियों पर धारा-20 के तहत जुर्माने का आदेश जारी करता है, लेकिन संबंधित विभाग इसे लागू करने में लापरवाही बरतते हैं। कई मामलों में आयोग द्वारा लगाए गए दंड की वसूली तक नहीं हो पाती। इससे जन सूचना अधिकारियों में भी कानून का भय समाप्त होता जा रहा है।
सरगुजा संभाग में वन विभाग की लापरवाही
ऐसा ही एक मामला सरगुजा संभाग के वन मंडलों में सामने आया है। यहां के वनमंडल अधिकारी, जिनकी जिम्मेदारी राज्य सूचना आयोग के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने की थी, वे न केवल आयोग के पत्रों को संधारित करने में असफल रहे, बल्कि दोषी अधिकारियों से दंड वसूली करने में भी लापरवाही बरती गई। इससे राज्य के राजस्व को भी नुकसान हुआ है।

इस पूरे मामले को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता अशोक श्रीवास्तव (निवासी मनेंद्रगढ़) ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री कार्यालय और राज्य सूचना आयोग को लिखित शिकायत पत्र भेजकर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो सूचना का अधिकार अधिनियम केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
समाधान की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके साथ ही सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का सही ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। ताकि आम जनता को समय पर और सही जानकारी मिल सके तथा शासन-प्रशासन में पारदर्शिता बनी रहे।
राजेश सिन्हा
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