
मनेंद्रगढ़ वन मंडल में रेंजर नियुक्ति को लेकर फिर उठे सवाल, डीएफओ की मनमर्जी पर उठी उंगलियां
एम.सी.ब. :- छत्तीसगढ़ का वन विभाग इन दिनों फिर एक बार सुर्खियों में है, और इस बार कारण है मनेंद्रगढ़ वन मंडल में रेंजरों की नियुक्ति प्रक्रिया, जिसे लेकर विभाग के अंदरखाने से लेकर स्थानीय लोगों के बीच चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। पहले भी निर्माण कार्यों से लेकर पदस्थापन में अनियमितता के आरोप झेल चुका यह विभाग अब फिर से अपने कारनामों की वजह से सवालों के घेरे में है।
दरअसल, हाल ही में छत्तीसगढ़ के विभिन्न वन मंडलों में रेंजरों का स्थानांतरण किया गया, जिसमें मनेंद्रगढ़ वन मंडल भी शामिल रहा। इस क्रम में बिहारपुर रेंज के रेंजर लवकुश पांडे और कुंवारपुर रेंज के रेंजर शिवप्रसाद ध्रुव का स्थानांतरण कर दिया गया। स्थानांतरण के बाद दोनों रेंजों में रेंजर का पद रिक्त हो गया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इन रिक्त पदों पर नियुक्ति का जो तरीका अपनाया गया, उसने विभाग की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़ा कर दिया।
बताया जा रहा है कि डीएफओ साहब ने सभी नियमों को दरकिनार कर अपनी पसंद के अधिकारियों को इन रिक्त पदों पर नियुक्त कर दिया। बिहारपुर रेंज में बैकुंठपुर से स्थानांतरित होकर आए बलराम सिंह को रेंजर बना दिया गया, तो वहीं कुंवारपुर में भूपेंद्र यादव को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। यह निर्णय इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि विभाग में ऐसे कई उपवन क्षेत्रपाल पहले से ही पदस्थ हैं, जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं और जिन्हें यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिए थी।
बिहारपुर में पूर्व में रेंजर रह चुके शंखमुनि पांडे, कुंवारपुर में लंबे समय से कार्यरत राजेंद्र तिवारी, रामविलास और उमाकांत उपाध्याय जैसे अधिकारी वर्षों से इसी वन मंडल में सेवा दे रहे हैं और रेंजर के लिए अनुभव व वरिष्ठता दोनों रखते हैं। कुछ तो पदोन्नति की कगार पर भी हैं, फिर ऐसे में बाहरी लोगों को अचानक रेंजर की जिम्मेदारी सौंपना, डीएफओ की मंशा पर संदेह पैदा करता है।
सूत्रों की मानें तो विभाग के भीतर भी यह चर्चा जोरों पर है कि आखिर डीएफओ साहब इतने मेहरबान क्यों हो गए कि अपने पसंदीदा अधिकारियों को बिना अनुभव और स्थानीय समझ के सीधे रेंजर बना डाला? क्या यह कार्यशैली विभागीय पारदर्शिता और योग्यता के मापदंडों को ठेंगा नहीं दिखा रही?
जब मीडिया द्वारा डीएफओ से इस संबंध में संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने ऐसी तकनीकी व्यवस्था कर रखी है कि केवल चुनिंदा नंबरों से ही संपर्क हो सकता है, बाकी सभी कॉल “बिजी” दिखाते हैं। यह रवैया बताता है कि डीएफओ साहब का मनमाना शासन किस हद तक बढ़ चुका है, जहाँ न मीडिया को जानकारी दी जाती है, न ही विभागीय पारदर्शिता का पालन किया जाता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या विभागीय उच्चाधिकारी इस प्रकरण का संज्ञान लेंगे या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दफ्न होकर रह जाएगा। लेकिन इतना तय है कि इस तरह की मनमानी से वन विभाग की साख पर बार-बार बट्टा लग रहा है, और इससे वन संरचना व प्रशासनिक ईमानदारी दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
राजेश सिन्हा,8319654988