हल्दी के साथ अंतवर्तीय फसल बोकर किसान अपनी आय को बढावे – डॉ संदीप सिंह
बुरहानपुर पारंपरिक फसलों को आंधी तूफान बारिश वायरस और अन्य बीमारियों से हो रहे नुकसान को देखते हुए किसानों का रुझान अन्य फसलों की ओर बढ़ गया है इसमें हमारे जिले में हल्दी की फसल जो फिलहाल 25 हेक्टेयर में हो रही है इससे किसानों को अच्छा भाव मिल रहा है यही कारण है कि जिले में कई किसान हल्दी लगाने से प्रेरित हो रहे हैं सबसे अधिक सेलम प्रजाति लगाई जा रही है किसानों को नई-नई प्रजातियां जिसका कुरक्यूमिन प्रतिशत ज्यादा हो लगाने के लिए संगोष्ठी एवं प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों को जानकारी दी जा रही है कृषि विज्ञान केंद्र सांडसकला के प्रक्षेत्र पर गुवाहाटी आसाम से लाई गई लकाडोंग प्रजाति जिसमें 7 से 12% कुरक्यूमिन होता है का प्रदर्शन किया गया है जबकि जेनेरिक प्रजाति में 2 से 3% ही कुरक्यूमिन होता है इस प्रजाति में उचित कुरक्यूमिन को देखते हुए अधिक स्वास्थ्य सहायक गुण मौजूद है वैज्ञानिक मेघा विभूते ने कहा कि किसान आय को और अधिक बढ़ाने के लिए हल्दी के साथ अंतवर्तीय फसल के रूप में रबी मक्का तुवर और मिर्च सहित अन्य फसलें भी लगा सकते हैं हल्दी के लिए 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है खेत में लगाते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रख सकते हैं हल्दी लगभग 270 दिनों में तैयार हो जाती है नई प्रजाति के रूप में कृषि विज्ञान केंद्र बुरहानपुर द्वारा लाल भिंडी की प्रजाति काशी लालिमा जो भारतीय सब्जी अनुसंधान वाराणसी से बीज मंगवा कर ग्राम कारखेड़ा एवं सिंधखेड़ा में कृषकों के प्रक्षेत्र पर लगवाया गया है यह प्रजाति में कैल्शियम एवं आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है इस प्रजाति का उत्पादन 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है